VIDEO ADVT IN NEWS : दिवाली इस बार कब मनाई जाएगी अभी तक कन्फ्यूजन है, खुद फैसला कर सकते हैं, ज्योतिषाचार्य अरविंद मिश्र से जानें
आगरा। दिवाली इस साल कब मनाई जाएगी, इस बात को लेकर हर कोई अभी तक कन्फ्यूज है। अभी तक लोग यह फैसला नहीं कर पाए हैं कि दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी या फिर 1 नवंबर को। भविष्य बनाओ ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान के ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि आप खुद भी निर्णय ले सकते हैं।
31 अक्टूबर को दोपहर 3:52 मिनिट पर अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी जो अगले दिन एक नवंबर को सायं 6:16 मिनिट तक रहेगी। एक नवम्बर को सूर्यास्त सायं 5:32 मिनट पर होगा। एक नवम्बर को शुक्रवार का दिन है जो माता लक्ष्मी के पूजन के लिए विशेष माना गया है। एक नवम्बर को तिथि का मान एक घटी अर्थात 24 मिनिट से अधिक 43 मिनट तक होगा। सूर्योदय की अमावस्या को साकल्यपदिका तिथि भी है। प्रदोष काल में भी व्याप्त है। प्रदोष को भी स्पर्श कर रही है। इस दिन प्रतिपदा तिथि से युग्म भी हो रहा है।
हमारे धर्म शास्त्रों में सूर्योदय के समय से ही तिथि होती है। उस तिथि को ही प्रभावी माना गया है। निशीथ काल अर्थात रात्रि का समय। इस समय में रात्रि जागरण का विधान है। माता लक्ष्मी जी के मंत्र जप और आराधना को भी किया जाता है, तो यह कार्य एक नवम्बर की रात्रि को भी किया जा सकता है। इसमें कोई बाधा नहीं है। एक नवम्बर को प्रदोष काल में व्याप्त अमावस्या का समय 43 मिनट मिल रहा है जो पर्याप्त है।
यदि ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त को देखा जाए तो गणेश जी और लक्ष्मी जी की स्थापना, आवाहन और दीपक प्रज्वलन 10 मिनिट के अंदर किया जा सकता है। इससे आपकी पूजा का शुभारंभ हो जाता है। इसके बाद चाहे आपकी पूजा पूरी रात चले, लेकिन आपकी पूजा का जो शुभारंभ है वो शुभ मुहूर्त में ही माना जाएगा।
निर्णय सिंधु, तिथि निर्णय, व्रत पर्व विवेक, वैवर्त पुराण, भविष्य पुराण, मुहूर्त चिंतामणि आदि सभी ग्रंथों में दो दिन अमावस्या पड़ने पर अगले दिन की ग्रहण करनी चाहिए। निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ 26 पर निर्देश है कि जब तिथि 2 दिन कर्म काल में विद्यमान हो तो निर्णय युग्म अनुसार करें । इस हेतु अमावस्या प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है । अर्थात अमावस्या को प्रतिपदा युता ग्रहण करना महाफलदाई होता है।
यह भी लिखा है कि अगर आप ऐसा नहीं करते तो उल्टा होता है। अर्थात आप पहले दिन की चतुर्दशी युता अमावस्या ग्रहण की जावे तो महादोष होता है और पूर्व में किए गए पुण्यों को नष्ट करता है। दीपावली निर्णय प्रकरण में धर्म सिंधु में लेख है। उसमें बताया गया है कि सूर्योदय में व्याप्त होकर अस्तकाल के उपरांत एक घटिका से अधिक व्यापी अमावस्या होवे तब संदेह नहीं है। इसके अनुकर एक नवंबर को दूसरे दिन सूर्योदय में व्याप्त होकर सूर्यास्त के बाद प्रदोष में एक घाटी से अधिक विद्यमान है।
निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद के पृष्ठ 300 पर लेख के अनुसार यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी होवे तो अगली ग्रहण करना चाहिए। तिथि तत्व ग्रन्थ में ज्योतिषी का कथन है कि एक घटी ( 24 मिनिट) रात्रि का योग होवे तो अमावस्या दूसरे दिन की होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन शुकरात्रि होती है। तिथि निर्णय का कथन उल्लेखनीय है। अर्थात यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श करें तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। इसमें यह अर्थ भी अंतरनिहित है कि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए।
व्रत पर्व विवेक में दीपावली के संबंध में अंत में निर्णय प्रतिपादित करते हुए लिखा गया है कि अमावस्या के दो दिन प्रदोष काल में व्याप्त अथवा अव्याप्त होने पर दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन होगा ।
इस प्रकार उपरोक्त सभी प्रमुख ग्रन्थों का सार यह है कि यदि अमावस्या दूसरे दिन प्रदोष काल में एक घटी (24 मिनिट ) से अधिक व्याप्त है तो प्रथम दिन प्रदोष में संपूर्ण व्याप्ति को छोड़कर दूसरे दिन प्रदोष काल में श्री लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। किंतु कहीं भी ऐसा लेख नहीं मिलता कि दो दिन प्रदोष में व्याप्ति है तो अधिक व्याप्ति वाले प्रथम दिन लक्ष्मी पूजन किया जाए। प्रतिपदा युता अमावस्या ग्रहण किए जाने का युग्म का जो निर्देश है, उसके अनुसार भी प्रदोष का स्पर्श मात्र ही पर्याप्त है। यदि एक घटी से कम व्याप्ति होने के कारण प्रथम दिन ग्रहण किया जाता है तो वह युग्म व्यवस्था का उल्लंघन होकर महादोष होगा।
What's Your Reaction?