विश्व खाद्य दिवसः खाने की बर्बादी रोकनी ही होगी
आज दुनिया खाद्य दिवस मना रही है। हमें भी इस मौके पर विचार कर ठोस उपाय सोचने होंगे कि कैसे खाने की बर्बादी रोगी की जा सकती है। विश्व खाद्य दिवस पर हम सभी सौगंध लें कि उतना ही अन्न लें थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में! सार्थकता है जीवन की इसमें, कोई भूखा नहीं सोए जीवन में!
एक स्वस्थ जीवन के लिए और हर जीव के लिए अन्न उतना ही जरूरी है जितना हवा, पानी और सूरज। जिस तरीके से आज समाज में पढ़े-लिखे और स्मार्ट लोग भी अन्न की बर्बादी करते हैं, यहां तक कि फाइव स्टार होटल में भी करते हैं तो चिंता ही नहीं, सोचने व मंथन का विषय हो जाता है। भारत में अन्न झूठा छोड़ना महापाप होता था। कई दफ़ा हम भी पिटे हैं झूठा छोड़ने पर मां के हाथ से। उस देश में अन्न की बर्बादी की प्रवृत्ति भौतिकवाद के कारण बढ़ रही है।
मेरा मानना है कि समाज ये कुछ उपाय कर खाने की बर्बादी को रोक सकता है-
1- बफ़े में आदमी पर पाबन्दी नहीं होती लेकिन भीड़ से बचने के लिए एक बार में अधिक ले लेता है। कई कारण से पूरा नहीं खा पाता है। अच्छा हो कि दो बार नहीं, चार बार लो पर उतना ही लो, जितना खा सको।
2- सभी उत्सवों को कराने वाले और सभी होटल वालों को कम से कम 5-10 आदमी ऐसी लगाने चाहिए जो उन प्लेटों को अलग रखते चलें जिनमें लोग खाना छोड़ देते हैं। उसकी प्लेट का यह अन्न किसी भी जीव को दिया जा सकता है।
3- जो व्यक्ति अन्न झूठा छोड़ते हैं, उसकी कैमरामैन द्वारा तस्वीर खींची जाए और मेहमाननवाजी वाले को वह तस्वीर उसके व्हाट्सएप पर भेजी जाए ताकि शायद वह आगे इसकी पुनरावृत्ति न कर सके।
4- जो भी काउंटर लगाए जाएं, उन पर खाना परोसने के लिए एक व्यक्ति खड़ा किया जाए ताकि वह क्वांटिटी में परोसे। इससे भी खाने की बर्बादी रोकी जा सकती है।
5- अगर हम ऐसी कोई व्यवस्था कर सकें कि जो झूठा छोड़ता है, उसे ऐसे आयोजनों में बुलाने से रोक दिया जाए तो यह उपाय कारगर होगा क्योंकि ऐसे व्यक्ति आगे से शर्म के मारे अपनी प्लेट में झूठन नहीं छोड़ेंगे।
6- विदेश की तरह से भारतवर्ष में भी आयोजनों में पहले से ही कन्फर्मेशन होनी चाहिए कि इतने आदमी आएंगे ताकि मेहमाननवाजी करने वाला और इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले लोग इस तरीके की व्यवस्था कर पाएं कि या तो मेहमानों को बैठकर खिलाया जाए या एक काउंटर पर अनाप-शनाप भीड़ नहीं हो।
7- जिन उत्सवों में बैठकर पंगत खिलाई जाती है, उसमें अपना प्यार जरूर दिखाएं, पर ऐसा प्यार भी नहीं दिखाएं कि जबरदस्ती एक खस्ता कचौड़ी यार मेरे हाथ से, मेरे हाथ की कहते हुए प्लेट में रख दें। दिल से खिलाओ और यह सोच कि खिलाओ कि सामने वाले को प्रोब्लम भी ना हो और खाने की बर्बादी भी ना हो।
- राजीव गुप्ता जनस्नेही की कलम से
- लोकस्वर आगरा।
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