हरियाणा के जाट इस बार क्या गुल खिलाएंगे?
-एसपी सिंह- चंडीगढ़। हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय का आजादी के बाद से अब तक बहुत अहम रोल रहा है। यह समुदाय न केवल सरकारें बनाता रहा है अपितु बिगाड़ता भी रहा है। वर्तमान में चल रहे हरियाणा राज्य विधानसभा के चुनाव में हर कोई यह जानने को जिज्ञासु है कि इस बार जाट समुदाय किसकी नैया पार लगाएगा और किसे किनारे पर ला खड़ा करेगा।
हरियाणा में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच आमने-सामने की लड़ाई मानी जा रही है। मैदान में डटे दो अन्य गठबंधन तथा आम आदमी पार्टी इस मुकाबले को पांचकोणीय बनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। इन पांचों राजनीतिक ताकतों की नजर 20% से ज्यादा के वोट बैंक जाट समुदाय पर है।
कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाटों को पार्टी के पाले में लाने के प्रयासों में जुटे हुए हैं। हुडा अपनी बिरादरी के बूते ही पहले भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
कांग्रेस को इस बार जाटों पर बहुत भरोसा है क्योंकि कांग्रेस के रणनीतिकार ऐसा मान रहे हैं कि किसान आंदोलन की वजह से जाट भाजपा से बहुत नाराज हैं और इसका लाभ उसे मिलेगा।
कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी भी जाटों पर डोरे डाल रही है। वैसे भाजपा ने राज्य में लगातार दो सरकारें गैर जाट फार्मूले के तहत ही बनाई थीं। इसके बावजूद चूंकि जाट बड़ा वोट बैंक है, इसीलिए भाजपा उसे पूरी तरह नजरअंदाज भी नहीं करना चाहती। जाट बहुल सीटों पर भाजपा ने ऐसे प्रत्याशी उतारे रहे हैं जो कि अपनी बिरादरी का वोट पार्टी के लिए जोड़ सकें।
लंबे समय तक जाटों पर मजबूत पकड़ रखने वाले इंडियन नेशनल लोकदल का भी जाट समुदाय के मतों पर खास फोकस है। इनेलो ने जाटों के साथ दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया हुआ है। यह देखना रोचक होगा कि इनेलो जाटों पर अपनी पुरानी वाली पकड़ सिद्ध कर पता है या नहीं। वैसे पिछले विधान सभा और लोकसभा चुनावों में जाटों के बीच भी इनेलो की स्थिति दयनीय रही थी।
इनेलो के संस्थापक ओमप्रकाश चौटाला के बड़े पुत्र डॉ. अजय चौटाला इनेलो से अलग होकर अपनी अलग पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बना चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने जाट मतों के बूते ही राज्य में 10 विधानसभा सीटें जीती और डॉ. अजय चौटाला के पुत्र दुष्यंत चौटाला भाजपा की मनोहर लाल खट्टर सरकार में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पाने में सफल रहे थे।
जेजेपी का भी इस चुनाव में पूरा फोकस जाट समुदाय पर है। जेजेपी ने भी इनेलो की तरह दलित वोटों के लिए आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया हुआ है। इनेलो की तरह जेजेपी भी लोकसभा चुनाव में औंधे मुंह गिर चुकी है। उसका वोट प्रतिशत एक के भी नीचे चला गया था।
आम आदमी पार्टी का वैसे तो जाटों में कोई बड़ा आधार नहीं है, लेकिन आप की चुनावी रणनीति में मुफ्त की योजनाएं हर किसी को आकर्षित करती हैं। आप की ओर से इस चुनाव में भी पांच गारंटियां दी जा रही हैं। देखना यह है कि अरविंद केजरीवाल की इन पांच गारंटी पर यहां के जाट मतदाता क्या रुख दिखाते हैं।
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