खैर में सवाल तो यह है कि क्या भाजपा पुरानी स्थिति ला पाएगी?

अलीगढ़ जिले की खैर विधान सभा सीट पर जल्द उप चुनाव होने जा रहा है। भले ही तारीख की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन इस क्षेत्र में राजनीतिक दलो की चुनावी गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं।

Sep 3, 2024 - 13:57
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खैर में सवाल तो यह है कि क्या भाजपा पुरानी स्थिति ला पाएगी?

खैर में सवाल तो यह है कि क्या भाजपा पुरानी स्थिति ला पाएगी?


- एसपी सिंह-
अलीगढ़। जाटलैंड के नाम से मशहूर जिले की खैर विधान सभा सीट के उप चुनाव में इस बार सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होना है। एनडीए की ओर से इच्छा तो रालोद की भी है कि वह इस सीट से लड़े, लेकिन भाजपा यह सीट रालोद के लिए नहीं छोड़ने वाली। उधर सपा की ओर से इस सीट पर कोई गतिविधि नहीं है, इसलिए माना जा रहा है कि यहां से कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस के पर्यवेक्षक यहां का दौरा भी कर चुके हैं। 

भाजपा को पकड़ साबित करनी होगी

खैर के इस उप चुनाव में असल परीक्षा तो भाजपा की होनी है। भाजपा के लिए परीक्षा इस बात की होगी कि पिछले दो विधान सभा चुनाव एक लाख से अधिक मतों से जीतती रही भाजपा इस बार भी मतों का इतना अंतर रख पाएगी या नहीं। यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि क्योंकि हाल में हुए लोकसभा चुनाव में इस विधान सभा सीट से भाजपा प्रत्याशी की लीड हजारों में सिमट गई थी। 

खैर विधान सभा सीट राष्ट्रीय लोकदल का गढ़ रही है। स्व. चौधरी चरण सिंह के समय से ही यहां रालोद का बोलबाला रहा है, तब भी जब कांग्रेस के पास यूपी में व्यापक जनाधार था। 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने रालोद के इस गढ़ को ढहा दिया। अनूप वाल्मीकि ने पहली बार भाजपा के लिए यह सीट जीती। 2022 के विधान सभा चुनाव में भी अनूप वाल्मीकि विधायक चुने गए। 

इन दोनों चुनावों के अलावा 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस विधान सभा सीट से भाजपा की लीड एक लाख मतों से अधिक रही थी। इस प्रकार देखा जाए तो यह सीट अब भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है। इन तीनों ही चुनावों में भाजपा की निकटतम प्रतिद्वंद्वी रालोद रही थी। अब रालोद एनडीए का हिस्सा है। यानि भाजपा के साथ। 

लोकसभा चुनाव में लगा था तगड़ा झटका

भाजपा को रालोद का साथ मिलने के बाद भी 2024 के लोकसभा चुनाव में खैर क्षेत्र में भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज गई। इस सीट पर सपा-कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। यहां सपा-कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाई। दलित मतों का बड़ा हिस्सा भाजपा के हाथ से निकल गया। भाजपा की यह स्थिति तब बनी जब पिछले चुनावों में उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी रहे रालोद के वोट भी भाजपा प्रत्याशी को मिले। दो बार के दलित विधायक अनूप वाल्मीकि भी इस सीट के दलितों को सपा-कांग्रेस की ओर जाने से नहीं रोक पाए। 

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा कैंप से कहा गया कि सपा-कांग्रेस गठबंधन ने संविधान और आरक्षण समाप्त होने जैसा दुष्प्रचार कर दलितों को गुमराह किया। सपा-कांग्रेस की काठ की हांडी एक बार चढ़ चुकी है। अब नहीं चढ़ेगी। उप चुनाव में भाजपा को यही सिद्ध करना है कि लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने दलितों को गुमराह कर जो गुब्बारा फुलाया था, वह फूट चुका है। 

भाजपा के साथ रालोद को भी यह साबित करना होगा  कि उसकी अपने वोट बैंक पर पकड़ पहले की तरह बरकरार है। खैर से दो बार विधायक रहने के बाद अब सांसद चुने जा चुके अनूप वाल्मीकि पर भी यह जिम्मेदारी होगी कि वे भाजपा को इस सीट पर उतने ही वोट दिलवाएं जितने उन्हें मिले थे। 

कांग्रेस सपा के जनाधार पर आश्रित

पिछला विधान सभा चुनाव कांग्रेस ने अकेले लड़ा था और खैर सीट पर उसका प्रत्याशी हजारों वोटों तक सिमट कर रह गया था। यह सीट अब कांग्रेस को ही मिलने जा रही है। कांग्रेस को सपा के जनाधार का ही भरोसा रहेगा। 

वैसे लोकसभा चुनाव से उत्साहित कांग्रेस यहां के चुनाव को बहुत गंभीरता से ले रही है। कांग्रेस के बड़े नेता यहां की फीडबैक ले रहे हैं। संगठन के स्तर पर भी कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जा रहा है। कांग्रेस की कोशिश रहेगी कि उप चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दे, लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा, यह नतीजे आने पर ही पता चल सकेगा। 

लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो यहां भाजपा पहले से ही बहुत मजबूत है और अब तो रालोद का भी साथ उसे मिलेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां के उप चुनाव पर सीधे नजर बनाए हुए हैं। सीएम यहां का दौरा भी कर चुके हैं। साफ है कि भाजपा की कोशिश रहेगी कि इस बार यहां से इतनी बड़ी जीत दर्ज की जाए कि 2017, 2019 और 2022 का रिकार्ड भी टूट जाए। 

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SP_Singh AURGURU Editor