वसंत पंचमीः ऋतुराज का आगमन, बृज में शुरू हो जाएगा फाग

वसंत पंचमी का उत्सव माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष अंग्रेजी तारीख के अनुसार, 02 फरवरी 2025 रविवार को वसंत पर्व मनाया जाएगा। इस दिन प्रातः 9:14 मिनट तक चतुर्थी रहेगी, तत्पश्चात पंचमी शुरू होगी जो सोमवार को ही प्रातः 6:52 मिनट पर (सूर्योदय से पहले) समाप्त हो जाएगी। अतः पंचमी क्षय: है, इसलिए वसंत पर्व 02 फरवरी को ही मनाया जाएगा।

Feb 1, 2025 - 23:09
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वसंत पंचमीः ऋतुराज का आगमन, बृज में शुरू हो जाएगा फाग

वसंत पंचमी को श्री सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। रतिकमोत्सव, तक्षक पूजा, छोटू राम जयंती, दुर्वासा ऋषि मेला (मथुरा) भी होता है। बांके बिहारी होली उत्सव के साथ ही, ब्रज में फाग महोत्सव प्रारंभ हो जाता है।

इस अविधि में रहेगा सवार्थ सिद्धि योग

प्रातः 7:09 बजे से रात्रि 12:51 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा, जिससे इस दिन किए सारे कार्य सिद्ध होंगे। यह पर्व ऋतुराज वसंत के आने की सूचना देता है। इस दिन से ही होरी तथा धमार गीत प्रारंभ किये जाते हैं। गेहूं तथा जौ की स्वर्णिम बालियां भगवान को अर्पित की जाती हैं। नर-नारी, बालक-बालिकाएं सभी वासंती एवं पीत वस्त्र धारण करते हैं।

श्री पंचमी और श्री सरस्वती जयंती

वसंत पंचमी को श्री पंचमी और श्री सरस्वती जयंती के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के पूजन से अभीष्ट कामनाएं सिद्ध होकर स्थिर लक्ष्मी और विद्या-बुद्धि की प्राप्ति होती है। वसंत पंचमी के आगमन से शरीर में स्फूर्ति और चेतनाशक्ति जागृत होती है। बौराये आम वृक्षों पर मधुप (भौरे) गुंजार करते हैं तथा कोयल की कूक मुखरित होने लगती है। गुलाब, मालती आदि फूल खिल जाते हैं। मंद सुगंध वाली शीतल पवन बहने लगती है।

इस ऋतु के प्रमुख देवता काम तथा रति हैं। अतः वसंत ऋतु कामोद्दीपक होता है। चरक संहिताकार का कथन है कि इस ऋतु में काम तथा रति की विशेष पूजा करनी चाहिए।

इस मंत्र से होती है बच्चों की बुद्धि प्रखर

वेद में कहा गया है, 'वसंते ब्राह्मण मुपनयीत'। वेद अध्ययन का भी यही समय होता है। बालकों को इसी दिन विद्यालय में प्रवेश दिलाना चाहिए। केशर से कांसे की थाली में ऊँ ऐं सरस्वत्यै नमः' मंत्र को नौ बार लिख कर थाली में गंगाजल डालकर जब लिखित मंत्र पूर्णतया गंगाजल में घुल जाये तो उस जल को मंद बुद्धि बालक को पिला देने से उसकी बुद्धि प्रखर होती है।

पूजा विधि

माघ शुक्ल पंचमी को उत्तम वेदी पर नवीन पीत वस्त्र बिछाकर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाएं। उसके अग्रभाग में गणेश जी और पृष्ठ भाग में 'बसंत' जी, गेहूं की बाल का पुंज (जो जल पूर्ण कलश में इंठल सहित रख कर बनाया जाता है) स्थापित कर सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें। पुनः उक्त पुंज में रति और कामदेव का पूजन करें। उन पर पुष्प से अबीर आदि के छींटे लगा कर वसंत सदृश बनाएं।

इस मंत्र से करें ध्यान

तत्पश्चात् शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्यल भूषणा। नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता ।। वीणावादनशीला च मदकर्पूर चर्चिता।।' से 'रति' का और कामदेवस्तु कर्तव्यों रूपेणाप्रतिमों भुवि। अष्टबाहुः स कर्तव्यः शंखपदम विभूषणः ।। चापबाण करश्चैव मदादचिंत लोचनः। रति प्रीतिस्तथा शक्तिमं दशक्तिस्तथो ज्ज्थ्ला। चतस्त्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः। चत्वारश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः ।। केतुश्च मकरः कार्यः पंचबाण मुखो महान्। मंत्र से कामदेव का ध्यान करके विविध प्रकार के फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करें।

इससे गृहस्थ जीवन सुखमय होकर प्रत्येक कार्य में उत्साह प्राप्त होता है। वसंत ऋतु रसों की खान है और इस ऋतु में वह दिव्य रस उत्पन्न होता है, जो जड़ चेतन को उन्मत्त करता है।

ये प्रचलित कथा

भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की। स्वयं द्वारा सृष्टि रचना कौशल को जब इस संसार में ब्रह्मा जी ने नयन भरके देखा तो चहुंओर सुनसान निर्जनता ही दिखायी दी। उदासी से संपूर्ण वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी की वाणी ही न हो। इस दृश्य को देखकर ब्रह्मा जी ने उदासी तथा सूनेपन को दूर करने हेतु अपने कमंडल से जल छिड़का।

उन जल कणों के पड़ते ही वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दोनों हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में क्रमशः पुस्तक तथा माला धारण किये थी। ब्रह्मा जी ने उस देवी से वीणा बजाकर संसार की उदासी, निर्जनता, मूकता को दूर करने को कहा। तब उस देवी ने वीणा के मधुर-मधुर नाद (ध्वनि) से सब जीवों को वाणी प्रदान की।

इसीलिए उस अचिंत्य रूप लावण्य की देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या-बुद्धि देने वाली है। अतः इस दिन ऊँ वीणा पुस्तक धारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन करें। 

 

-डॉ० अरविन्द मिश्र

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद

भविष्य बनाओ ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान, संजय प्लेस आगरा।

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SP_Singh AURGURU Editor