यूपी मेट्रो का दावा: मोतीकटरा के मकानों में दरारें टनल की वजह से नहीं
यूपी मेट्रो प्रबंधन ने मोती कटरा में मकानों में दरार को लेकर फैल रहीं भ्रांतियों को लेकर कहा है कि कई मकानों में असर की बात पूरी तरह भ्रामक है। निर्माण के प्रभाव वाले क्षेत्र जोन के स्थित मकानों का सर्वे हुआ था। इसमें से जिन मकानों में निर्माण से पहले ही दरारें चिन्हित हुई थीं, उनमें से 90 फीसदी मकानों को रिपेयर कर दिया गया है।
-मेट्रो प्रबंधन ने कहा- अंडरग्राउंड निर्माण कार्य पूरी तरह सुरक्षित, टीबीएम से सुरंग निर्माण से किसी प्रकार की क्षति की आशंका नहीं
-अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरुप अत्याधुनिक तकनीक से हो रहा है सुरंग का निर्माण
आगरा। मोती कटरा और आसपास के इलाके में मेट्रो से टनल निर्माण का कार्य लगभग पूर्ण होने की ओर है। मेडिकल कॉलेज से मनकामेश्वर मेट्रो स्टेशन के बीच अंतिम दौर की टनलिंग का कार्य चल रहा है।
यूपी मेट्रो की ओर से जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार मेट्रो के निर्माण के प्रभाव वाले क्षेत्र में निर्माण शुरु होने से पहले संयुक्त सर्वे में 39 घर जर्जर हालत में पाए गए थे, जिनमें से 26 को नगर निगम ने रहने के लायक नहीं होने का नोटिस दिया है।
मेट्रो ने मानवता के नाते अब तक 23 घरों को रिपेयर किया है और बाकी पर कार्य जारी है। इस इलाके में ज्यादातर घर आरसीसी या कंक्रीट के न होकर पुराने समय की पटिया से निर्मित अर्थात बीम पर पत्थर रखकर बनाए गए हैं।
मेट्रो द्वारा ज़मीन के अंदर टनल निर्माण अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट की देखरेख में पूरी तरह सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है। सामान्यत: टनल जमीन से 12-20 मीटर नीचे निर्मित होती है और मशीन से उत्पन्न कंपन का असर न के बराबर होता है। यह कंपन अंतर्राष्ट्रीय मानकों से लगभग 100 गुना कम है।
इसी कारण टनल बनाना सुरक्षित होता है और सामान्य बिल्डिंग पर कोई असर नहीं आता है। समय-समय पर विभिन्न परियोजनाओं में मेट्रो टनल निर्माण के पूर्व व बाद में मेट्रो के कारण मकानों में दरारें पड़ने की बातें कही जाती हैं, जो पूरी तरह भ्रामक हैं।
सभी मेट्रो द्वारा टनल बनाने से पहले उन इलाकों में पड़ने वाले बहुत पुराने व जर्जर घरों का सघन निरीक्षण किया जाता है। इन जर्जर व दरारों वाले घरों को पहले से पहचान कर सीमेंट से दरारों को भरकर और टूटे हुए छज्जों को सपार्ट लगाकर मजबूतीकरण किया जाता है। क्योंकि इन घरों को खाली कराना संभव नहीं होता।
जबकि ऐसे जर्जर मकानों के निवासियों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरुप ही घर खाली करवाकर कभी कभी कुछ दिनों के लिए होटल या सुविधाजनक स्थानों पर मुआवजे के साथ शिफ्ट भी किया जाता है। ऐसे घरों को लगातार निगरानी में भी रखा जाता है।
सभी मेट्रो में निर्माण के दौरान यह पाया जाता है कि ऐसे पुराने इलाकों में पड़ने वाले ऐसे जर्जर घरों में छतों, परछत्तियों, पैरापेट, दीवारों में पहले से ही पुरानी छोटी मोटी दरारें होती हैं। ऐसे मकानों में मकान मालिकों द्वारा मरम्मत न कराए जाने से सीवेज लाइन के न होने, पुराने कुएं या गड्ढे वाले शौचालय ( सोक पिट) के ऊपर मकान बनाने से, एक ही क्षेत्र में कई साले ट्यूबवेल द्वारा ज्यादा पानी की निकासी होने इत्यादि से नींव की संरचना लगातार कमजोर होती रहती है।
सालों तक न मरम्मत होने से मकानों की स्थिति जर्जर हो जाती है जो सेटलमेंट की वजह से दरारों का कारण बन रही है। समय के साथ तथा बहुत बारिश होने से ऐसे मकानों की दीवारें और छज्जे के गिरने के मामले सामने आते रहते हैं। हालांकि मेट्रो की टीम प्रभावित मकानों की मरम्मत का कार्य भी लगातार कर रही है।
इन इलाकों में कार्य करने से पहले अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार अतिरिक्त सुरक्षा का ध्यान रखते हुए मकान को सपोर्ट देकर मजबूत किया जाता है। यह भी देखा गया है कि इन पुराने और जर्जर मकानों की नीव भी बेहद कमजोर होती है जो आमतौर पर एक मंजिल के लायक होती है, पर समय के साथ उसी में दो या तीन मंजिल के मकान बनने से जर्जर होने की स्थिति और खराब हो जाती है।
सभी मेट्रो द्वारा इन जर्जर मकानों को और मजबूतीकरण करने के लिए लिए जियोलॉजिकल एक्सपर्ट या भूगर्भ वैज्ञानिकों से जमीन के नीचे छिपे हुए कुओं, शौचालय, सोक पिट व दलदली जमीन का निरीक्षण किया जाता है। समय समय पर जरूरत पड़ने पर आईआईटी इत्यादि की सलाह ली जाती है। आगरा के भूगर्भ विशेषज्ञों ने जमीन का परीक्षण किया है व आईआईटी रुड़की सलाहकार का काम कर रही है।
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