यूपी उप चुनावः मुकाबला सपा-भाजपा से कहीं ज्यादा योगी अखिलेश के बीच का है
यूपी में एक प्रकार से यह मिनी विधान सभा चुनाव हो रहा है और इसमें राज्य के दो मुख्य प्रतिद्वंद्विद्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आमने-सामने हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती मुकाबले को तीनकोणीय बनाने में पूरी ताकत झोंके हुए हैं।
-सपा की 2022 में जीती सीटें भी झटककर लोकसभा चुनाव की हार का बदला लेना चाहती है भाजपा
-तमाशबीन की भूमिका में नजर आ रही कांग्रेस, सपा को सहयोग की बात हुई पर दिखता कहीं नहीं
लखनऊ। महाराष्ट्र और झारखंड के विधान सभा चुनाव की तरह उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर भी पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं। लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन से झटका खा चुकी भाजपा नौ में से ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल कर गठबंधन, खासकर समाजवादी पार्टी को जवाब देना चाहती है।
बता दें कि राज्य में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना था, लेकिन अब नौ पर हो रहा है। अयोध्या की मिल्कीपुर सीट का मामला हाईकोर्ट में लंबित होने के कारण वहां चुनाव नहीं हो रहा। अब जिन नौ सीटों पर चुनाव हो रहा है, उनमें चार सीटें समाजवादी पार्टी, तीन भाजपा और एक एक सीट आरएलडी तथा निषाद पार्टी के पास थीं।
निषाद पार्टी ने मंझवा की सीट भाजपा के साथ गठबंधन कर जीती थी जबकि आरएलडी को मीरापुर सीट पर जीत सपा गठबंधन में मिली थी। निषाद पार्टी तो भाजपा के साथ है ही, राष्ट्रीय लोकदल भी अब भाजपा के साथ है। आरएलडी मीरापुर सीट से चुनाव मैदान में है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर 80 में से 43 सीटें जीतने वाली सपा के हौसले बुलंद हैं, लेकिन भाजपा उप चुनाव में सपा को जमीन पर लाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। सपा नेतृत्व लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद से ही यही प्रदर्शित करता आ रहा है कि उसने भाजपा को जमीन पर ला दिया है। उधर भाजपा लोकसभा चुनाव में सपा को मिली सफलता को अस्थायी मानकर उप चुनाव में उसका भ्रम तोड़ देना चाहती है।
राज्य में विधानसभा की नौ सीटों के उप चुनाव से यह तय होगा कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बारे में सपा और भाजपा में से कौन सही सोच रहा था। दोनों ही दलों ने उपचुनाव को लेकर पूरी ताकत झोंक रखी है।
समाजवादी पार्टी का सभी नौ सीटों पर भाजपा से सीधा मुकाबला है। दिखाने को कांग्रेस उसके साथ है, लेकिन अंदरखाने की बात तो यह है कि सपा की ओर से गठबंधन में अपेक्षित सीटें न मिलने से कांग्रेस खार खाए बैठी है। सभी नौ सीटों पर कांग्रेस के वर्कर सपा प्रत्याशियों के लिए काम करते नहीं दिख रहे। दिखावे को सहयोग की बातें अवश्य की जा रही हैं।
उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नौ में से ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल कर यह बता देना चाहते हैं कि सपा गलतफहमी में थी, जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा के बाद विधान सभा उप चुनाव में भी पिछली कामयाबी दोहरा कर यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि जनता के बीच सपा की स्वीकार्यता भाजपा के मुकाबले कहीं ज्यादा हो चुकी है।
यूपी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संबंधित विधानसभा सीटों का एक दौरा कर वहां विकास की तमाम नई योजनाओं की घोषणा की थी। चुनाव प्रचार के दौरान भी सभी विधान सभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्री की चुनावी सभाएं हो रही हैं। उधर सपा की ओर से अखिलेश यादव चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाले हुए हैं। इन दोनों नेताओं ने जिस तरह उप चुनाव में खुद को झोंक रखा है, उससे ही यह कहा जा रहा है कि यूपी में मुकाबला तो मुख्यमंत्री और सपा मुखिया के बीच है।
राजनीतिक पंडित भी मान रहे हैं कि सभी नौ सीटों पर भाजपा और सपा के बीच आमने-सामने का मुकाबला हो रहा है। करहल सपा का गढ़ है और वहां सपा की जीत को लेकर किसी को ज्यादा संदेह नहीं है, लेकिन भाजपा ने सैफई परिवार के दामाद को ही मैदान में उतारकर मुकाबला अवश्य रोचक बना दिया है। कुंदरकी, सीसामऊ, कटेहरी और संभल की विधान सभा सीटें बहुसंख्यक मुस्लिम वोट बैंक के कारण सपा का मजबूत गढ़ हैं, लेकिन भाजपा इन गढ़ों को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। कुंदरकी और सीसामऊ में तो चुनावी विशेषज्ञ भी नहीं समझ पा रहे कि क्या नतीजा आने वाला है।
मैदान में डटी बसपा और आसपा किसका खेल बनाएंगी और बिगाड़ेंगी
उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी के अलावा आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी भी मैदान में हैं। बसपा ने इससे पहले कभी उप चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन लगातार घटते जनाधार से चिंतित मायावती ने इस बार के उप चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया है। सभी नौ सीटों पर उसके प्रत्याशी मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में हैं। दलित वोट बैंक में बसपा की प्रतिद्वंद्वी आजाद समाज पार्टी के अध्य़क्ष एवं सांसद चंद्रशेखर आजाद भी अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर दलितों में अपना प्रभाव साबित करने में जुटे हैं।
इन नौ सीटों पर है उप चुनाव
गाजियाबाद- यह सीट अब तक भाजपा के पास थी।
खैर- अलीगढ़ जिले की यह सीट भी पिछले चुनाव में भाजपा ने जीती थी।
मीरापुर- यह विधानसभा सीट बिजनौर जिले का हिस्सा है और यहां के विधायक चंदन चौहान के बिजनौर सीट से एमपी बनने के बाद यहां उप चुनाव हो रहा है। भाजपा के सहयोग से यहां से रालोद ही लड़ रही है।
करहल- समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव यहां से विधायक थे जो अब कन्नौज से सांसद चुन लिए गए हैं। उनके इस्तीफे के बाद रिक्त हुई सीट से पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला अखिलेश यादव के ही बहनोई भाजपा प्रत्याश अनुजेश प्रताप यादव से है।
कटेहरी- यह सीट पिछली बार सपा ने जीती थी। इसे बनाए रखना सपा के लिए चुनौती है।
कुंदरकी- जिया उर रहमान वर्क के सांसद बनने के बाद रिक्त इस सीट को बनाए रखना भी सपा के लिए चुनौती है।
फूलपुर- पिछले चुनाव में यह सीट भाजपा ने जीती थी। यहां से उप चुनाव में भी जीत बनाए रखना भाजपा के लिए चुनौती है।
मझवा- पिछली बार निषाद पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए विनोद कुमार बिंद भदोही से भाजपा के सांसद बन चुके हैं। इस बार इस सीट से भाजपा चुनाव लड़ रही है। निषाद पार्टी की नाराजगी की चर्चाओं के बीच भाजपा को यहां जीत दर्ज करने की चुनौती है।
सीसामऊ- 2022 में सपा ने यह सीट जीती थी। विधायक इरफान सोलंकी को एक मामले में कोर्ट से सजा होने के बाद यह सीट रिक्त घोषित हुई है। यहां से जीत बनाए रखना सपा के लिए चुनौती है।
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