मुस्लिमों की करीबी ने उद्धव को चुनाव में डुबा दिया
नई दिल्ली। महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों ने शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया उद्धव ठाकरे को जोर का झटका दिया है। एक ओर जहां एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 57 सीटें आई हैं, वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना महज 20 सीट पर ही सिमट गई है। ऐसा क्यों हुआ, इस पर उद्धव ठाकरे मंथन तो जरूर कर रहे होंगे। शिवसेना की स्थापना बाला साहब ठाकरे ने जिन उद्देश्यों के लिए या जिन विचारधाराओं पर केंद्रित होकर किया था, उद्धव ठाकरे ने उन सबसे किनारा कर लिया था। अपने पिता के निधन के बाद उद्धव ठाकरे ने खुद को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया और हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर दावा ठोका था, उस पर वह कायम नहीं रह सके। बाला साहब ठाकरे ने कभी सत्ता में खुद को ननहीं उलझाया लेकिन उद्धव इसके ठीक विपरीत कुर्सी के लोभ में किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गए।
महा विकास अघाड़ी में शामिल होकर उद्धव ठाकरे ने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपना ली और खुद को मुस्लिमों के करीब ले जाने की कोशिश की। इसके कारण उनका कोर हिंदू वोट बैंक छिटक कर एकनाथ शिंदे की पार्टी की ओर चला गया। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे पर मुसलमानों ने भी भरोसा नहीं किया। यही कारण है कि इस चुनाव में उनकी पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। महाराष्ट्र चुनाव के फाइनल नतीजे आ चुके हैं। इन नतीजों को देखकर उद्धव ठाकरे को यही सवाल कचोट रहा होगा कि आखिर उनसे गलती कहां हो गई। क्या मुसलमानों के प्रति उदार होने से शिवसेना (यूबीटी) के हिंदू वोट बैंक पर असर पड़ा। महाराष्ट्र की जनता ने विधानसभा चुनावों में जिस तरह से अपना फैसला सुनाया और बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्ताधारी महायुति गठबंधन को दो तिहाई से ज्यादा सीटें दी, वो बेहद अहम है। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। बीजेपी को 132 सीटें आई हैं, वहीं कांग्रेस को महज 16 सीट मिली है।
महाराष्ट्र चुनाव में विपक्षी एमवीए गठबंधन को बड़ा झटका लगा है। इसमें शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किलें और बढ़ गई हैं। शिवसेना में टूट के बाद बीजेपी गठबंधन के साथ गए एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना को 57 सीटें आई हैं। एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना का आंकड़ा पूरे महा विकास अघाड़ी यानी कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी)-एनसीपी (शरद पवार गुट) तीनों की सीटें मिला लें तो भी ज्यादा है।
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