.. तो इसलिए अंग्रेजी तिथि को पड़ती है विश्वकर्मा जयंती!
-गिरधारी लाल गोयल- बहुधा लोग प्रश्न करते हैं कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म अंग्रेजी तिथि के अनुसार क्यों हुआ जबकि भगवान विश्वकर्मा का जन्म तो माघ शुक्ला त्रियोदशी को हुआ था। यही दिन है तो 17 सितम्बर को विश्वकर्मा जी का जन्मदिन नहीं बल्कि पूजा का दिन है। और ये अंग्रेजी डेट नहीं बंगाली वर्ष है, जो कि सूर्य की अयन गति के अनुसार चलता है और पूर्णिमा तिथि को होता है। ये तिथि सिंह और कन्या संक्रांति के जोड़ के दिन होती है।
कुस दशकों पूर्व औद्योगिक क्षेत्र बंगाल हुआ करता था। वहां बिहार के मजदूर काम करते थे। बंगाल के कारखानों में भद्रो पूर्णिमा को होने वाली पूजा बिहारी मजदूरों के साथ सारे भारत में फैलती गई।
अभी कुछ समय पूर्व तक विश्वकर्मा पूजा 16 सितम्बर को मनाई जाती थी, जिस प्रकार मकर संक्रांति 14 जनवरी की 15 जनवरी हो गई, उसी क्रम में कन्या संक्रांति 16 सितम्बर से 17 सितम्बर होने से ये पूजा 17 सितम्बर को होने लगी है।
विश्वकर्मा पूजा का एक अन्य प्रमुख दिन दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा यानी गुजराती नव वर्ष का दिन है। उस दिन वहां सभी कारखानों में विश्वकर्मा की पूजा होती है
एक अन्य दिन ऋषि पंचमी भी है। विश्वकर्मा महर्षि अंगिरा के दौहित्र हैं, इसलिए अंगिरा पंचमी को विश्वकर्मा पूजा होती है।
देखा जाए तो ये भारतीय अभियांत्रिक दिवस ही है,
क्योंकि विश्वकर्मा जी स्वयं भी तो देव अभियंता ही थे। उनके पांच पुत्र भी वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं यथा मनु लोहे, मय लकड़ी, त्वष्टा कांसे -तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ सोने- चांदी की विधा में विशेषज्ञ थे।
भगवान विश्वकर्मा के दसभुज रूप बताए जाते हैं। द्विभुज, चतुर्भुज के साथ एक मुखी व पंचमुख वाले रूप को भी लोग पूजते हैं।
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