यह आगरा को चमकाने का स्वर्णिम मौका, जरूरत माननीयों के संयुक्त प्रयासों की
भाजपा को आगरा ने सब कुछ दिया है, लेकिन क्या भाजपा उसी अनुपात में आगरा को कुछ दे पा रही है? यह यक्ष प्रश्न आगरा के लोगों की ओर से है। आगरा को चमकाने का यह स्वर्णिम मौका है। यह तभी संभव है जब यहां के सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधि अपने अहम को छोड़कर एक साथ बैठें। इसमें आगरा के बारे में सोचने वाले प्रबुद्ध लोगों को भी शामिल करें। ठोस रणनीति बने और फिर जनप्रतिनिधियों के स्तर से संयुक्त प्रयास हों।
आगरा। आगरा में जनता जनार्दन जितना दे सकती थी, सब का सब भाजपा को दे दिया। किसी भी राजनीतिक दल को जनता का इतना प्यार मिले तो उस राजनीतिक दल के साथ ही चुने हुए जनप्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने शहर या जिले को कोई ऐसा बड़ा तोहफा दें, जिससे आगरा की तकदीर और तस्वीर बदल सके, लेकिन आगरा में ऐसा नहीं हो पा रहा।
सांसद, विधायक और एमएलसी सब भाजपा के
पिछले दो चुनावों से लोकसभा की दोनों सीटें भाजपा जीती है। जिले की सभी नौ विधान सभा सीटों पर बीजेपी जीतती आ रही है। 1989 से मेयर पद की कुर्सी भी शहर की जनता भाजपा को सौंपती आ रही है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद भी भाजपा के पास है। स्थानीय निकाय सीट से एमएलसी भी भाजपा के हैं। स्नातक सीट के एमएलसी भी भाजपा के ही हैं। आगरा के पास एक और एमएलसी पद है। आगरा से एक राज्य सभा सांसद भी भाजपा के हैं। यानि जितने अहम पद हैं, सब के सब बीजेपी के पास।
एकला चलो की नीति पर हैं सब के सब
सारे के सारे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की ओर से संयुक्त रूप से अभी तक कोई ऐसा प्रयास नहीं किया गया है कि आगरा को कोई बड़ी सौगात दिला पाएं। यह तभी संभव है जब सभी जनप्रतिनिधि संयुक्त प्रयास करें। अलग-अलग स्तर पर मंत्री, सांसद-विधायक प्रयास जरूर करते रहते हैं और उनके नतीजे भी आ रहे हैं, लेकिन किसी बड़े काम के लिए तीन सांसदों, नौ विधायकों, तीन एमएलसी, मेयर और जिला पंचायत अध्यक्ष की ओर से संयुक्त रूप से एक बार भी नहीं हुए हैं।
भाजपा के रिटर्न गिफ्ट में भी कमी नहीं
जनता की ओर से मिले वोटों के लिहाज से देखा जाए तो भाजपा नेतृत्व ने अच्छा खासा रिटर्न गिफ्ट दिया है, लेकिन इस गिफ्ट को पाकर उच्च पदों पर पहुंचे आगरा के भाजपा नेता अपने शहर और ग्रामीण क्षेत्र को क्या दे पा रहे हैं? यह सवाल जरूर विचारणीय है।
आगरा से इस समय प्रो. एसपी सिंह बघेल और राज कुमार चाहर सांसद हैं। बघेल केंद्र सरकार में मंत्री हैं तो चाहर भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष। जिले की नौ सीटों से जीते भाजपा विधायकों में से बेबीरानी मौर्य और योगेंद्र उपाध्याय प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। एमएलसी धर्मवीर प्रजापति प्रदेश सरकार में स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री हैं।
अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन पद पर अशफाक शैफी और अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष पद पूर्व मंत्री डा. रामबाबू हरित कुछ समय पहले तक काबिज रहे हैं। बबिता चौहान महिला आयोग की अध्यक्ष हैं और राकेश गर्ग के पास लघु उद्योग विकास निगम के चेयरमैन का पद है।
इसके अलावा नवीन जैन राज्य सभा के सदस्य हैं। एत्मादपुर से डा. धर्मपाल सिंह, आगरा उत्तर से पुरुषोत्तम खंडेलवाल, आगरा कैंट से डा. जीएस धर्मेश, फतेहपुरसीकरी से चौधरी बाबूलाल, खेरागढ़ से भगवान सिंह कुशवाह, फतेहाबाद से छोटेलाल वर्मा, बाह से रानी पक्षालिका सिंह विधान सभा सदस्य हैं।
निकाय सीट से विजय शिवहरे, स्नातक सीट से मानवेंद्र सिंह एमएलसी हैं। मेयर पद हेमलता दिवाकर कुशवाह और जिला पंचायत अध्यक्ष पद डा. मंजू भदौरिया संभाल रही हैं। इन सबके अलावा जिला पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख, ग्राम प्रधान, नगर निगम के पार्षद, नगर पालिका परिषदों, नगर पंचायतों में सभासदों की संख्या तो सैकड़ों की संख्या में हैं जो भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुने गए हैं।
अब बारी बड़ी पंचायतों में पहुंचे नेताओं की है
बात आगरा के उन वरिष्ठ नेताओं की हो रही है जो देश की सबसे बड़ी पंचायत यानि लोकसभा, राज्यसभा, यूपी विधान सभा और विधान परिषद में बैठते हैं। यह सही है कि आगरा के हर जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने स्तर से अपने क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन क्या इतना भर पर्याप्त है?
क्या कभी आगरा के जनप्रतिनिधियों ने सोचा है कि वे एक साथ बैठकर इस बात पर मंथन करें कि आगरा के लिए केंद्र और राज्य सरकार के स्तर से क्या कुछ बड़ा काम कराया जा सकता है। आगरा की फाउंड्री इंडस्ट्री प्रदूषण की भेंट चढ़ चुकी है। पर्यटन उद्योग जो कुछ भी कर रहा है, अपने स्तर पर कर रहा है।
आगरा में बैराज, एयरपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम, हाईकोर्ट की बेंच मांग करते-करते पीढ़ियां गुजर चुकी हैं। कम से कम इन्हीं मुद्दों पर सारे जनप्रतिनिधि संयुक्त रूप से प्रयास करते तो केंद्र और राज्य सरकार के स्तर से आगरा को कुछ न कुछ अवश्य मिल गया होता।
आगरा में प्रदूषण रहित उद्योगों के विकास के लिए भी ये सारे जनप्रतिनिधि संयुक्त रूप से प्रयास करते तो काफी कुछ हासिल किया जा सकता था। अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में आगरा को देश के उन 12 शहरों में शामिल किया है जहां नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित होने हैं। एयरपोर्ट नहीं मिल पाया है, लेकिन सिविल एन्क्लेव के निर्माण का काम शुरू होना संतोष देता है।
ऐसा लगता है कि आगरा के सारे के सारे जनप्रतिनिधि अपनी ढपली और अपने राग में व्यस्त हैं। वे अपने क्षेत्रों तक सीमित हैं। सांसदों-विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों को नाली, सड़क, खरंजे, बिजली के बढ़े बिल, थाने और तहसील स्तर के जनता के काम भी निपटाने पड़ रहे हैं।
यानि जो काम पंचायत और निकाय प्रतिनिधियों के स्तर से निपट जाने चाहिए, वे विधायक-सांसदों तक पहुंच रहे हैं। यह भी एक सच्चाई है कि इसकी वजह से सांसद-विधायक कुछ बड़ा करने की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते। ऐसा भी नहीं है कि सारे जनप्रतिनिधि ही कुछ नहीं कर पा रहे। कुछ ऐसे भी हैं जो अपने स्तर से बड़े प्रोजेक्ट स्वीकृत करा रहे हैं।
कुछ अच्छे काम हुए हैं, लेकिन कुछ बड़ा होना बाकी
एत्मादपुर के विधायक डा. धर्मपाल सिंह यमुना पार क्षेत्र में आगरा का तीसरा वाटर वर्क्स स्वीकृत कराने में सफल रहे हैं। केंद्रीय राज्यमंत्री एस पी सिंह बघेल ने खेरिया एयरपोर्ट के सिविल एन्क्लेव के निर्माण के काम को शुरू कराया है। सांसद राज कुमार चाहर आलू अनुसंधान केंद्र स्थापित कराने में कामयाब हुए हैं।
आगरा पर चिंतन करने वालों के साथ बैठकर ठोस रणनीति की जरूरत
सरकारी बैठकों में ही साथ दिखते हैं जनप्रतिनिधि
ये सभी जनप्रतिनिधि एक साथ तभी बैठे नजर आते हैं जब कोई बड़ी सरकारी बैठक हो। अपने स्तर से इन्होंने एक साथ बैठकर आगरा के विकास पर चर्चा करने और फिर एक्शन प्लान बनाकर संयुक्त रूप से उस पर आगे बढ़ने की दिशा में कभी सोचा तक नहीं है।
सोचिए, इतने सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि अपने जिले के लिए कुछ बड़ी मांग लेकर केंद्र के किसी मंत्री या फिर मुख्यमंत्री के पास जाएंगे तो क्या ये संभव है कि उसके नतीजे न निकलें। भाजपा संगठन भी इसकी पहल कर सकता है, लेकिन संगठन और जनप्रतिनिधियों के बीच तो तालमेल दूर-दूर तक नजर नहीं आता।
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