लंका में सीता जी की व्यथा की कथा सुन श्रद्धालुओं की बही अश्रुधारा
-श्रीराम कथा में आज संत श्री विजय कौशल जी ने लंका काण्ड का भावमय वर्णन किया
आगरा। जैसे ही हनुमान जी ने सीता के समक्ष मुदिरा डालने का विचार किया, रावण पहुंच गया। भक्ति और भक्त के बीच विघ्न बनकर रावण खड़ा था। इसलिए शुभ कर्मों को तुरन्त कर डालो। रावण भी भक्ति का पुजारी है, चाहता है कि भक्ति स्वरूपा जानकी जी की कृपादृष्टि मिल जाए। परन्तु उसका रास्ता गलत था। भक्ति लोभ, लालच, भय से नहीं विनम्रता, कृपा और समर्पण से आती है।
रावण लोभ का प्रयोग करता है। लोभ से दुनिया तो मिल सकती है, लेकिन दीनानाथ नहीं मिल सकते। सम्पत्ति भोग मिल सकती है, परन्तु भक्ति और भजन समर्पण, हाथ जोड़ने और शीश झुकाने से मिलता है। जुगनू के प्रकाश से कमल नहीं खिलते। रावण अपनी सभी रानियों को सीता जी की दासी बनाने को तैयार था, परन्तु गलत रास्ते से भक्ति को न पा सका।
संत श्री विजय कौशल महाराज ने कहा कि रावण में हजार दुर्गुण होने पर भी कुछ विशेषताएं थीं। रावण कभी सीता जी से अकेले और रात में मिलने नहीं आया। सीता मैया का भ्रम मिटाने के लिए हनुमान जी द्वारा कहे रामदूत में मातु जानकी, सत्य शपथ करुणानिधान की दोहे का वर्णन करते हुए कहा कि करुणानिधान नाम श्रीराम को माता गौरी ने दिया था।
संतश्री ने कहा कि सीता जी उपवन में पति स्वरूप में श्रीराम को मांगने पहुंचीं, तब माता गौरी ने, मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो, करुनानिधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो.. का आशीर्वाद दिया। लंका दहन की कथा पर कथा परिसर में जयश्रीराम और बीर बजरंगी के जयकारे गूंजने लगे। वहीं श्रीराम को हनुमान जी द्वारा लंका में माता सीता के दुखों के वर्णन की कथा में हर भक्त की आखों से अश्रुधारा बहने लगी।
आरती के उपरान्त कथा ने विश्राम लिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मुख्य यजमान सलिल गोयल, उषा गोयल, घनश्यामदास अग्रवाल, राकेश अग्रवाल, महेश गोयल, महावीर मंगल, पीके भाई, रूपकिशोर अग्रवाल, महेश गोयल, विजय गोयल, अशोक हुंडी, कमलनयन फतेहपुरिया, मुरारीप्रसाद अग्रवाल, उमेश शर्मा, हेमन्त भोजवानी, प्रशान्त मित्तल, सरजू बंसल आदि उपस्थित थे।
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