यूपी की दलित राजनीति में उभरते दो युवाओं की रस्साकसी देखने लायक होगी

उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव में अभी समय है। यह 2027 में होंगे। इस चुनाव से पहले यूपी की दलित राजनीति में दो युवा नेताओं के बीच रस्साकसी का दौर चलने वाला है।

Oct 4, 2024 - 13:07
 0  213
यूपी की दलित राजनीति में उभरते दो युवाओं की रस्साकसी देखने लायक होगी

एसपी सिंह
आगरा। उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में आने वाले दिनों में बहुत रोचक मुकाबला देखने को मिलने वाला है। दलितों पर किसकी पकड़, इसके लिए दो नौजवान नेताओं के बीच रस्साकसी देखने को मिलेगी। ये दो चेहरे हैं बसपा के राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर आकाश आनंद और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद। यह तय है कि इन्हीं दोनों में से कोई एक यूपी के अंदर भविष्य का दलित नेता स्थापित होना है। 

दलित समाज में भी अपने इन दोनों युवा नेताओं को लेकर हलचल शुरू हो चुकी है। चूंकि दोनों ही नौजवान हैं, इसलिए ऊर्जा से भरपूर हैं। खुद को स्थापित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले। 

आकाश आनंद बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे हैं। मायावती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है। यानि भविष्य में बसपा की कमान आकाश आनंद के हाथों में ही आनी है। दूसरी ओर उनके प्रतिद्वंद्वी चंद्र शेखर आजाद हैं, जो सेल्फ मेड हैं। चंद्रशेखर ने जमीनी स्तर से संघर्ष कर राजनीति में अपनी पहचान बनाई है। 

आकाश आनंद को बसपा के दलित वोटों का बड़ा आधार विरासत में मिलने जा रहा है जबकि चंद्रशेखर आजाद अपना जनाधार अपने बूते पर खड़ा करने लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कर रहे हैं। 

बसपा सुप्रीमो मायावती देश की दलित राजनीति में सबसे बड़ा नाम हैं, इसमें किसी को शक नहीं। यूपी के दलितों के दिलों पर तो मायावती पिछले तीन दशक से एकछत्र राज करती आ रही हैं। यह बात अलग है कि यूपी के पिछले विधान सभा और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के दलित जनाधार में बहुत कमी आई है। 

2007 में बसपा ने जब अपने बूते पर यूपी में सरकार बनाई तो वह बसपा का पीक टाइम था। यही वह दौर था जब मायावती ने बसपा को देश के कोने-कोने में पहुंचा दिया था। देश भर के दलित मायावती को अपने नेता के रूप में देखने लगे थे। 2012 में यूपी की सत्ता से बाहर होने के बाद से अचानक हालात बदले और तब से अब तक बसपा निरंतर अपने जनाधार को खोती जा रही है। 

बसपा के इस गिरते जनाधार ने ही बसपा सुप्रीमो मायावती के समक्ष ऐसे हालात बना दिए कि वे अपने भतीजे आकाश आनंद को आगे लाएं। मायावती को शायद खतरा दिखने लगा था दलितों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए वेस्ट यूपी का एक दलित नौजवान चंद्रशेखर आजाद दिन-रात एक किए हुए है। 2012 में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद मायावती की जनता के बीच सक्रियता बहुत कम हो गई थी। इसी का लाभ चंद्रशेखर आजाद ने उठाया। 

हालांकि चंद्रशेखर ने कभी भी मायावती को चेलैंज नहीं किया। बल्कि वे उन्हें अपनी बुआ बताते रहे। यह भी चंद्रशेखर की रणनीति ही थी क्योंकि वे जानते थे कि दलितों के दिलोदिमाग पर मायावती हावी हैं, इसलिए उनके खिलाफ बोलना बैक फायर कर सकता है। अभी भी मायावती को लेकर कोई बात आती है तो सबसे पहले चंद्रशेखर ही इसका प्रतिकार करते हैं। 

चंद्रशेखर ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी से नजदीकी भी एक रणनीति के तहत ही बढ़ाई थी। 2022 के चुनाव में जयंत चौधरी ने चंद्रशेखर को सपा नीत गठबंधन का हिस्सा बनवाने की कोशिशें कीं, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें ज्यादा भाव नहीं दिया था। ऐसे में चंद्रशेखर ने खुद को चर्चा में लाने के लिए गोरखपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव लड़ा। भले ही वे हार गए, लेकिन उनका नाम पूर्वी उत्तर प्रदेश के दलितों के बीच भी चर्चाओं में आ गया। 

विधान सभा चुनाव के बाद चंद्रशेखर आजाद ने नगीना लोकसभा क्षेत्र को अपने लिए चुना और जनता के बीच सक्रिय हो गए। लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर ने खुद को साबित किया और उन्होंने भाजपा, सपा-कांग्रेस तथा बसपा के प्रत्याशियों को हराकर यह सीट अपने बूते पर जीत ली। 

चंद्रशेखर की यह जीत बसपा के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि चंद्रशेखर ने अपने आप को सिद्ध कर दिया है। इस जीत से उत्साहित चंद्रशेखर आजाद अब यह ऐलान कर चुके हैं कि 2027 में यूपी विधान सभा चुनाव में राज्य की सभी सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे। 

चंद्रशेखर का यह ऐलान एक तरफ बसपा सुप्रीमो की नींद उड़ा रहा है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव को मजबूर कर रहा है कि वे चंद्रशेखर को अपने साथ जोड़ लें। चंद्रशेखर आजाद की ओर से पेश की जा चुकी चुनौती से निपटने के लिए बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को आगे कर दिया है। दलित युवाओं को पार्टी से जोड़े रखने के लिए यह पहल की गई है। 

अब यह तो दलित ही तय करेंगे कि वे आकाश आनंद और चंद्रशेखर आजाद में से अपने नेता के रूप में किसे चुनते हैं। इन दोनों ही नौजवान नेताओं के व्यक्तित्व में जमीन आसमान का अंतर है। आकाश आनंद के पास जमीनी स्तर पर संघर्ष करने का कोई अनुभव नहीं है। वे लंदन में पढ़े हैं। बसपा में मायावती के बाद दूसरे नंबर की हैसियत पर पैराट्रुपर की तरह पहुंचे हैं। 

दूसरी ओर चंद्रशेखर आजाद ने अपने गांव के स्तर से संघर्ष कर अपनी पहचान बनाई है। दोनों युवाओं के तेवरों की बात करें तो चंद्रशेखर आजाद इसमें भी आकाश आनंद पर भारी दिखते हैं। चंद्रशेखर आजाद जैसे तेवर कभी मायावती के हुआ करते थे, जिनके जरिए वे दलितों की निर्विवाद नेता बन गई थीं।

आकाश आनंद ने लोकसभा चुनाव के दौरान चंद्रशेखर जैसे तेवर दिखाने के प्रयास में ऐसा कुछ बोल दिया कि मायावती को बीच चुनाव में उन्हें सारी जिम्मेदारियों से मुक्त करना पड़ा था। अब मायावती स्वयं आकाश आनंद को राजनीति के ककहरे सिखा रही हैं। आकाश आनंद जनता के बीच वैसे सक्रिय नहीं दिखते, जैसी सक्रियता चंद्रशेखर आजाद की है। दलितों की बात आती है तो दलित समाज फिलहाल चंद्रशेखर को ही अपने बीच खड़ा पाता है। 

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

SP_Singh AURGURU Editor