सच एक ही है, मृत्यु से पहले सबको बुड्ढा होना है
पुराने जमाने में तीर्थयात्राएं, पवित्र स्नान, अनुष्ठान बगैरह परिवार के बुजुर्ग लोग ही करते थे। अब टूरिज्म, एडवेंचर, फन के एलिमेंट्स जुड़ने से युवाओं से कंपटीशन बढ़ गया है। बुजुर्ग धक्के खाकर चोटिल हो रहे हैं। धार्मिक स्थलों पर उम्र के हिसाब से रिजर्वेशन का समय आ गया है।
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कुंभ मेला, जो भारत की सबसे बड़ी धार्मिक सभाओं में से एक है, इस बार बुजुर्गों के लिए कई चुनौतियों का सामना करता दिखा। मेले में बुजुर्ग साधु, नर और नारी, सभी को भारी भीड़ और सुविधाओं के अभाव में परेशान होते देखा गया। बढ़ती उम्र के साथ उनकी शारीरिक सीमाएं और आवश्यकताएं अधिक होती हैं, लेकिन इस बार उनके लिए विशेष प्रबंधन की कमी साफ दिखी।
अधिकांश बुजुर्गों को भीड़ में धक्के खाने, लंबी दूरी तय करने और बुनियादी सुविधाओं जैसे शौचालय, पानी और आराम करने की जगह के अभाव में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
यह स्पष्ट है कि महाकुम्भ में बुजुर्गों के हितों की अनदेखी हुई। उनके लिए अलग से इंतजाम किए जाने चाहिए थे, जैसे विशेष शटल सेवाएं, आराम क्षेत्र और चिकित्सा सुविधाएं। सभी को एक साथ रखने के बजाय, उम्र और जरूरतों के हिसाब से व्यवस्था होनी चाहिए। नौजवानों को तो कुंभ स्नान के अवसर मिलते रहेंगे, लेकिन बुजुर्गों की देखभाल और सम्मान भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस तरह की लापरवाही से भविष्य में सुधार की आवश्यकता है।