22 साल बाद मां-बेटे के मिलन ने हर किसी को भावुक कर दिया

आगरा। जब वह अपने परिजनों से बिछड़ा था, तब चार वर्ष का अबोध बालक था। पूरे 22 साल के बाद जब वह अपने परिजनों से मिला तो 26 वर्ष का नौजवान था। वीडियो काल पर आमना-सामना हुआ तो न तो माता-पिता अपने बेटे को पहचान पाए और न ही बेटा अपने मां-बाप को पहचान पाया। जीआरपी पुलिस ने जब फोटो दिखाकर साबित किया कि यही उनका खोया हुआ बेटा है तो मां अपने बेटे से लिपट गई। दोनों भाव विह्वल थे। पिता की आंखों में भी खुशी के आंसू थे।

Oct 1, 2024 - 15:18
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22 साल बाद मां-बेटे के मिलन ने हर किसी को भावुक कर दिया

दिल्ली पुलिस को जो काम करना था, वह आगरा की जीआरपी ने कर एक घर में खुशियां लौटा दीं

यह भावुक क्षण पैदा किया जीआरपी ने। रेलवे पुलिस आपरेशन मुस्कान चलाए हुए है। इसके तहत रेलवे क्षेत्र से गुम हुए बच्चों को तलाश कर उनके परिजनों तक पहुंचाया जा रहा है। 26 साल के बबलू और परिजनों के चेहरों पर भी मुस्कान लौट आई है, लेकिन बहुत देरी के बाद। पूरे 22 साल तक एक बच्चा अपनी मां की ममता से वंचित रहा तो मां-बाप अपने बेटे के लिए आंसू बहाते रहे। 

आपरेशन मुस्कान के तहत जीआरपी आगरा की टीम के समक्ष 22 साल पहले लापता हुए बबलू का मामला आया। चुनौती बड़ी थी, पर जीआरपी ने इसे अंजाम तक पहुंचाने की ठान ली। 

एसपी रेलवे अभिषेक वर्मा ने बताया कि बुलंदशहर के रहने वाले सुखदेख का चार वर्ष का बेटा बबलू दिल्ली में रेलवे स्टेशन पर मां-बाप से बिछड़ गया था। मां-बाप ने दिल्ली पुलिस में इसकी गुमशुदगी दर्ज कराने के साथ ही अपने स्तर से भी बबलू को तलाशा लेकिन कहीं पता नहीं चला। मां-बाप ने कोई कसर नहीं छोड़ी और बाद में नियति का खेल मानकर अपने मन को समझा लिया। 

एसपी जीआरपी ने बताया कि 22 साल पहले स्टेशन पर घूमते चार साल के बबलू को संभवतः वहां की पुलिस ने दिल्ली के ही प्रयास बाल सुधार गृह पहुंचा दिया था। बबलू पूरे 22 साल तक इसी बाल गृह में रहा। 14 साल तक उसने यहां शरणार्थी के तौर पर गुजारे। जब वह 18 वर्ष का हो गया तो प्रयास बाल गृह प्रशासन ने उसे अपने यहां ही नौकरी पर रख लिया। 

इधर बबलू और उधर उसके माता-पिता थकहार कर अपने मन को समझा चुके थे। 
आपरेशन मुस्कान में जुटी जीआरपी आगरा अनुभाग की टीम किसी गुमशुदा की तलाश में दिल्ली स्थित प्रयास बाल सुधार गृह पहुंची थी। यहीं टीम को बाल सुधार गृह में 22 साल से रह रहे बबलू के बारे में जानकारी मिली। जीआरपी टीम से बबलू ने स्वयं अनुरोध किया था कि मेरे परिजनों की भी तलाश कर दें। जीआरपी टीम को बबलू महज इतना बता पाया कि उसके गांव का नाम धनौरा है। 

सी प्लान ऐप और गूगल मैप का लिया सहारा

मामला दिल्ली का था, लेकिन आगरा की जीआरपी टीम ने इस मामले को अपने हाथों में लिया। सी-प्लान ऐप और गूगल मैप की मदद से उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में धनौरा गांव की खोजबीन की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। जीआरपी टीम ने एक बार बबलू से बात कर कुछ और यादों के बारे में पूछा। तब उसने बताया कि उसके गांव के पास रेलवे स्टेशन है और वह उसी ट्रेन से मां-बाप के साथ दिल्ली आया था। 

अब पुलिस ने धनौरा के नजदीकी स्टेशन की खोज की तो बुलंदशहर के चोला रेलवे स्टेशन का नाम सामने आया। जीआरपी टीम ने रेलवे चोला स्टेशन के पास स्थित  धनौरा गांव के किसी व्यक्ति से संपर्क कर बबलू के बारे में बताया। इसी व्यक्ति ने जीआरपी से पुष्टि की कि हां, उनके गांव के सुखदेव शर्मा का बेटा सालों पहले खो गया था।

इसके बाद बबलू की तस्वीर गांव में भेजी गई और परिवार ने उसे पहचान लिया। सुखदेव शर्मा से संपर्क कर पुष्टि की गई कि बबलू उनका ही बेटा है। इसके बाद वीडियो कॉल के जरिए बबलू की उसकी मां अंगूरी से बातचीत कराई। वीडियो काल में 22 साल के अंतराल के बाद न तो मां अपने बेटे को पहचान पाई और न ही बेटे को मां की शक्ल याद रही थी। खैर, बबलू के माता-पिता आगरा पहुंचे और जीआरपी टीम दोनों को लेकर दिल्ली स्थित प्रयास बाल सुधार गृह पहुंची और इस प्रकार एक बेटे का अपने माता-पिता से मिलन हो गया।

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