टिकट से एंट्री देने वाला एक पार्क लोगों को डराता है
आगरा। पंडित दीनदयाल उपाध्यायपुरम यानि आवास विकास कालोनी में एक एक ऐसा पार्क है जिसे इस आवासीय योजना की शान कहा जाता था, लेकिन यह भी सरकारी सिस्टम की तरह बदहाल होने लगा है। सेंट्रल पार्क नाम के इस पार्क में प्रवेश टिकट और मासिक पास से मिलता है। इसके बावजूद नगर निगम इसे मेंटेन नहीं रख पा रहा।
-कभी सुकून देने वाला सेंट्रल पार्क में टॉयलेट ब्लॉक तक पर ताले पड़े हैं, दर्जनों पोल लैंप जलते ही नहीं
विकसित होने के बाद जब यह पार्क लोकार्पित किया गया था, तब यहां आने वाले लोग सुकून महसूस करते थे। मासिक पास धारक हों या टिकट लेकर प्रवेश करने वाले, हर किसी को पार्क की खूबसूरती मोह लेती थी। अब इन्हीं लोगों को मासिक पास की फीस और टिकट का शुल्क कचोटने लगा है। सुकून देने बजाय यह पार्क अब यहां आने वालों में भय पैदा करने लगा है। यहां रोजाना आने वाले लोग खुद को असुरक्षित भी महसूस करने लगे हैं।
इस पार्क में मुख्य गेट को बन्द रखा जाता है। दोनों तरफ के साइड गेटों में से भी एक को बन्द रखकर दूसरे गेट से प्रवेश और निकास कराया जाता है।
पार्क में प्रवेश करते ही आपको अव्यवस्थाओं का आलम देखने को मिलता है। वर्तमान में यहां खुलने का समय सुबह और शाम पांच बजे से नौ बजे तक का है।
800 मीटर के ट्रैक में से 500 मीटर पर अंधेरा
पार्क में एक बड़ा फुटपाथ, दो गोल फुटपाथ और एक मध्य से मिलन पथ है। मुख्य फुटपाथ की सर्किल गेट पर अंकित नहीं है। पूछने पर विंडो से कोई जवाब नहीं दिया जाता। यह फुटपाथ पार्क की बाउंड्री से अंदर की तरफ के किनारे किनारे लगभग 800 मीटर ट्रैकनुमा है। इसमें भी दो हिस्से ऐसे हैं जहां करीब 500 मीटर तक अंधेरा रहता है। पेड़ पौधों के झुरमुट भी हैं जिससे लोगों को यहां से गुजरते समय डर लगता है। खासकर महिलाओं और बच्चों को।
78 पोल लैंप, सभी बंद
पार्क के सबसे बड़े फुटपाथ के भीतरी हिस्से में 78 पोल लैंप तो लगे हुए हैं, मगर इनमें से एक जलता एक भी नहीं। पार्क के आउटर में लगी स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी ही पार्क को थोड़ा बहुत रोशन करती दिखाती हैं। पूरे पार्क में दो हाइमास्ट लाइट भी हैं, जिनकी कुल चार लैंप ही जलती हैं।
टॉयलेट्स ब्लॉक पर ताले
पार्क के अंदर महिला-पुरुष के लिए बने शौचालयों में ताले पड़े हुए हैं। टॉयलेट्स ब्लॉक के चारों और गन्दगी का आलम है। झूले, रैम्प और पोल भी सुरक्षित नहीं हैं। छोटे बच्चों के लिए बनाया गया पार्क ताला लगाकर पूरी तरह ब्लॉक कर दिया गया है।
शिकायत पुस्तिका भी नहीं
बुकिंग विंडो पर शिकायत पुस्तिका तक उपलब्ध नहीं है। विंडो पर बैठने वाले कर्मचारी पार्क के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दे पाते। हां, घास में पानी अवश्य लग रहा है। मगर पेड़ पौधों को रामभरोसे छोड़ दिया गया है।
फुटपाथों पर कभी झाड़ू नहीं लगती है। साथ ही पूरे पार्क में पीने के पानी की शुद्धता की भी गारन्टी नहीं है। पानी के लिए एक फाइबर की जो टंकी रखी गई है वह सही स्थिति में नहीं है। यहां लगे दो हैंडपंप भी सफेद हाथी साबित हो रहे हैं।
बाहर खूब दुकानें, अंदर की उठी ही नहीं
पार्क के अंदर सेल काउंटर तीन हैं, मगर एक भी आवन्टित नहीं है। पार्क के बाहर जूस और अन्य दुकानें तो खूब हैं लेकिन जो पार्क के अंदर बनाई गई हैं, वे उठी ही नहीं हैं या उठाई नहीं गई हैं।
सबसे अशिष्ट बात तो ये है पार्क के बाहर लगी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति पर कभी भी फूलों की एक माला तक नहीं दिखती।
क्षेत्र के निवासी मोहन जादूगर और विजतेंद्र गुप्ता ने पार्क को इन अव्यवस्थाओं से बाहर निकालने की अपेक्षा मेयर हेमलता दिवाकर से की है।
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