समय की मांग है कि आयकर अधिनियम में बदलाव

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस साल का बजट पेश करते समय यह संकेत दे चुकी हैं कि जल्द ही आयकर अधिनयम का नया स्वरूप देखने को मिलेगा। क्यों है ये जरूरी, जानिए इस आलेख में-

Sep 1, 2024 - 14:24
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समय की मांग है कि आयकर अधिनियम में बदलाव
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद पटल पर बजट प्रस्तुत करते हुए घोषणा की थी कि शीघ्र ही नया आयकर अधिनियम देश में लागू होगा। प्रस्तावित नये आयकर अधिनियम में वाद-विवाद और कानूनी कार्यवाही कम से कम करने की बात भी उन्होंने कही थी।
निर्मला सीतारमण कर अधिकारियों को करदाताओं के साथ धमकी वाले व्यवहार में बदलाव लाने की नसीहत के साथ नोटिस प्रक्रियाओं में सरलीकण को जरूरी बताते हुए देश में टैक्स बेस बढ़ाने पर भी जोर दे रही हैं। 
आयकर विशेषज्ञ लम्बे समय से सरकार से यह मांग करते आ रहे हैं कि आज के आधुनिकता के दौर में विभिन्न कर प्रणालियों में सजा एवं शोषण के नियमों में बदलाव लाया जाए। प्रोत्साहन और संरक्षणवाद की नीति को अपनाते हुए टैक्स बेस को बढ़ाया जाना चाहिए। वर्तमान में लागू आयकर अधिनियम 1961 में बना था। उस समय देश की आबादी और प्रति व्यक्ति आय 330 रुपये अर्थात न्यूनतम थी जबकि आज के दौर में आय 1,84 लाख प्रति व्यक्ति हो चुकी है। 
यह भी ध्यान देना होगा कि वर्तमान में लागू आयकर अधिनियम का आधार कर चोरी को रोकना है। आम जनता में करदाताओं के प्रति एक भावना पैदा हो चुकी है कि जो उद्योगों के माध्यम से आय अर्जित कर रहे हैं, वह चोर हैं। समाज में उनके प्रति घृणा का वातावरण है। स्पष्ट है कि वर्तमान में करदाताओं के प्रति सम्मान की भावना नहीं है। 
जबकि अन्य देशों में देखा जाये तो वहां करदाता को सम्मान की नजर से देखा जाता है। घृणा की भावना ने यह भुला दिया कि करदाता ही देश के युवाओं को भरपूर रोजगार देने में सर्वथा आगे रहते हैं। देश की जीडीपी को सर्वोत्तम अंक की ओर ले जाने में योगदान दे रहे हैं। 
निर्मला सीतारमण से पहले के वित्त मंत्री भी बजट प्रस्तुत करते समय 1961 के बने आयकर अधिनियम को आधार बनाते हुए प्रतिवर्ष संशोधन करते रहे हैं। देश में आयकर को लेकर हमेशा यह माहौल बनाया गया कि यदि सख्ती और कड़े नियम नहीं बनाए गए तो देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। देश में आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा। इसी डर में कभी भी बढ़ती प्रति व्यक्ति आय के साथ व्यक्ति के बढ़ते जीवन स्तर को आयकर के मामले में आधार बनाने का प्रयास नहीं किया गया।
यह भी सत्य है कि किसी भी देश में सामाजिक और सांस्कृतिक दौर में प्रत्येक बीस साल में जनरेशन गैप आ जाता है और इस जनरेशन गैप में व्यक्ति की सोच और कार्यप्रणाली में भी बदलाव आ जाता है। व्यक्ति समय-काल के साथ स्थान परिवर्तन करता है। अर्थात ग्राम से शहर की ओर और एक शहर से दूसरे शहर की ओर प्रस्थान होता है। भारत में 1947 के बाद कितनी जनता गांव से शहर में आ बसी। ऐसी स्थिति में सरकार को भी इस बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। 
उदाहरण के तौर पर माल ए और सेसाकर अधिनियम को देख लें। 1948 में राजस्व की दृष्टि से देश में लम्बे समय तक बिक्रीकर अधिनियम लागू और प्रभावी रहा। फिर 2000 में वैट प्रणाली लागू हुई और 2017 में जीएसटी लागू हुई। बिक्रीकर प्रणाली पूरी तरह से मैन्युअल थी। प्रारम्भ में वैट भी मैन्युअली था। परन्तु शनै:-शनै: कम्यूटराईजेशन की ओर देश आगे बढ़ा तो वैट 2012 में मैन्यूअली से आनलाईन की ओर बढ़ा और जीएसटी तो पूरी आनलाईन ही है। 
आयकर अधिनियम पहले पूरी तरह से मैन्युअली था परन्तु 2000 से आयकर प्रक्रिया कम्प्यूटराईजेशन की ओर बढ़ी और आज पूरी तरह से आनलाईन हो गई है परन्तु अधिनियम और नियमावली 63 वर्ष पुराने होने के कारण वाद-विवाद अधिक पैदा होते रहते हैं। 
विचार इस बिन्दु पर भी करना होगा कि आयकर अधिनियम का मुख्य आधार ‘कर चोरी और कर चोर’ को पकड़कर प्रताड़ित करना और सजा देना होने के चलते आम जनता के मन में यह डर बैठा बैठ गया है कि आयकर के चक्कर में न उलझो,  अन्यथा परेशानी में पड़ जाओगे। फिर देश में यह वातावरण भी पैदा किया गया कि तुम्हें टैक्स देने की जरूरत नहीं। तुम तो सरकार से यह अपेक्षा करो कि सरकार दे क्या रही है। 
यही कारण है कि 2014 में देश की कुल 125 करोड़ की आबादी में मात्र तीन करोड़ आईटीआर दाखिल होते थे, जिनमें मात्र 1 से 1.50 लाख लोग ही टैक्स जमा करते थे। इसमें भी मुख्य वर्ग वह था, जिनकी आय अथवा वेतन रिकार्ड पर होता था, जिसको छिपाना मुश्किल होता था। 
इसके अलावा अधिकतर आईटीआर निल का दाखिल कर स्वयं को आयकरदाता की श्रेणी में गिनकर गर्वित होते थे। वर्ष 2024-25 में 7.28 करोड़ आईटीआर दाखिल हुए और वास्तविक करदाताओं की संख्या में अपेक्षा से अधिक वृद्धि देखने को मिली। 
हमारा मानना है कि देश और काल-परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन अति आवश्यक है। देश में कोई भी कर प्रणाली हो, उसके नियम आदि में प्रति 20 वर्ष में समय के अनुसार सुधार होता रहना चाहिए।
                                              -पराग सिंहल

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