जमीन पट्टे की थी और बेच गए, दोबारा सरकार पर आनी थी, उन्होंने फिर से जोत डाली

किरावली। एक समय वह भी था जब बावरिया नाम सुनते ही अपराधी किस्म के ऐसे लोगों की छिव दिलोदिमाग में कौंध जाती थी जो आपराधिक वारदातों को अंजाम देते समय लोगों के साथ बहुत क्रूरता से पेश आते थे। 

Nov 17, 2024 - 18:24
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जमीन पट्टे की थी और बेच गए, दोबारा सरकार पर आनी थी, उन्होंने फिर से जोत डाली
सरकारी भूमि के साथ ही ग्राम प्रधान और खुद की जमीन जोतने की समाधान दिवस में शिकायत दर्ज कराते रालोद नेता मुकेश डागुर।

- रालोद नेता मुकेश डागुर ने तहसील पहुंचकर हकीकत बताई तो अफसर पल्ला झाड़ने लगे

यही बावरिया एक बार फिर से चर्चा में हैं। इस बार आपराधिक वारदातों को लेकर नहीं, जमीन को लेकर चर्चा में हैं। तहसील किरावली के गांव भड़कौल में एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां 18 बीघा वेशकीमती सरकारी जमीन को कुछ बाबरिया लोगों ने पहले बेच दिया और जब पर सरकारी निकली तो उस पर फिर से कब्जा कर ट्रैक्टर से जोत भी डाला। 

यह सब कुछ तहसील किरावली के राजस्व विभाग की लापरवाही से हुआ है। तहसील के राजस्व अभिलेखों में समय रहते जमीन सरकारी में दर्ज हो गई होती तो यह स्थिति नहीं बनती। 

किरावली में आयोजित समाधान दिवस में पहुंचे भड़कौल निवासी समाजसेवी और रालोद नेता मुकेश डागुर ने एसडीएम किरावली राजेश कुमार के सामने यह प्रकरण विद डॉक्युमेंट रखा। रिकॉर्ड और न्यायालय के आदेश देखते ही एसडीएम भी दंग रह गए। 

बावरियाओं ने न केवल 18 बीघा सरकारी भूमि जोत ली, अपितु ग्राम प्रधान ओमप्रकाश की कुछ जमीन में भी ट्रैक्टर चला दिया। ग्राम प्रधान ओमप्रकाश ने अपनी जमीन जोतने वालों के खिलाफ थाना फतेहपुरसीकरी में  एफआईआर भी दर्ज कराई है

भड़कौल में बाबरियों के कभी रहते थे दस परिवार 

तहसील किरावली के गांव भड़कौल में बाबरिया जाति के करीब 10 परिवार रहते थे। इन लोगों में करीब आधा दर्जन लोगों को जमीन के पट्टे मिले थे। ये पट्टे करीब 18 बीघा सरकारी भूमि पर काटे गए थे। 

वर्ष 2002 में कुछ बाबरिया अपराधियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें कई लोग घायल हुए। ये घायल लोग यहां से भरतपुर जिले के आजाद नगर गांव चले गए। यह गांव यूपी की सीमा से लगा हुआ है। इस गांव में उनकी बिरादरी के कुछ लोग पहले से रह रहे थे। 

आजाद नगर में रहते हुए ही भड़कौल के बाबरियों ने अपनी पट्टे की जमीन को वर्ष 2007 में प्रशासन की अनुमति के बगैर आगरा के सुशील कुमार को बेच दिया। चूंकि पट्टे की जमीन को बेचा नहीं जा सकता था, इसलिए मामले में ग्राम पंचायत और तत्कालीन ग्राम प्रधान ने तहसील और न्यायालय में कई वर्ष तक मुकदमा लड़ा। अंततः सुशील कुमार की बहन और मां के नाम हुआ पट्टे की जमीन के बैनामा को न्यायालय ने  2018 में शून्य घोषित कर सारी जमीन राज्य सरकार के अधीन कर दी। 

अधिकारी बोले- बड़ी गलती हुई है, सरकारी अभिलेखों में दर्ज होगी भूमि 

न्यायालय ने आदेश दिए थे कि तहसीलदार किरावली इस जमीन को राजस्व अभिलेखों में सरकारी जमीन के रूप में दर्ज करें, लेकिन तहसील प्रशासन की लापरवाही के चलते इस जमीन को राजस्व अभिलेखों में सरकारी जमीन दर्ज नहीं किया जा सका। 

इसी का लाभ उठाकर भरतपुर के आजाद नगर में रहे भड़कौल के बावरियों ने भड़कौल की पट्टे की बेची हुई जमीन पर फिर से कब्जा कर लिया। यही नहीं, सटी हुई ग्राम प्रधान और रालोद नेता मुकेश डागुर की जमीन भी जोत ली। बाबरियों के इसी कारनामे को रालोद नेता मुकेश डागुर ने तहसील के समाधान दिवस में अधिकारियों के समक्ष उठाया। 

लेखपाल से लेकर अधिकारियों तक सभी ने इस मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश की। तहसीलदार देवेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि इस प्रकरण का अवलोकन कर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

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