विकास की कुंजी भारतीय भारतीय ज्ञान परंपरा में ही मिलेगी
आगरा। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा और अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी तथा इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ़ बिज़नेस अमेरिका के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को भारतीय ज्ञान परंपरा पर विस्तार से चर्चा की गई। इसके साथ ही देश-विदेश से आए हुए तमाम विद्वतजनों ने अपने-अपने विचार रखे।
-डॊ. आंबेडकर विवि और हार्वर्ड विवि की संयुक्त अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी में दूसरे दिन विद्वतजनों ने भारतीय पर्यावरण संरक्षण, पारिवारिक जीवन, मूल्यों और विकास पर की चर्चा
द्वितीय सत्र का उद्घाटन प्रोफेसर प्रमोद वर्मा कुलपति महर्षि योगी विश्वविद्यालय जबलपुर तथा प्रोफेसर विजय कुमार कर्ण नव नालंदा विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से किया। संगोष्ठी में भारतीय परंपराओं में पर्यावरण संरक्षण, पारिवारिक जीवन मूल्य तथा विकास के संदर्भ में विस्तृत चर्चा हुई।
प्रोफेसर प्रमोद वर्मा ने कहा कि हमारी भारतीय परंपराओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण है जो सामाजिक आर्थिक और पर्यावरण हर तरह की चुनौतियों से निपटने में सक्षम है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य रहा कि एक लंबी गुलामी की दास्तां के बाद हमारे ज्ञान को कमतर करके पूरे विश्व में आंका गया और वह लगातार आज भी चल रहा है।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के सलाहकार प्रो. रविंन्द्र शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में गुलामी को बढ़ावा देने वाली शिक्षा व्यवस्था से आने वाली पीढियों को निकालने के लिये भारत सरकार ने पूरा प्रयास किया है। इन प्रयासों का सार्थक परिणाम आने में समय लगेगा क्योकि कोई भी परिवर्तन जो बड़े पैमाने पर होता है तो उसमे समय भी लगता है।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के प्रो. संदीप कुलश्रेष्ठ ने कहा कि भारत में धार्मिक व अध्यात्मिक पर्यटन की असीम सम्भावनायें है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी के प्रो. सुनील काबिया ने कहा कि बुंदेलखंड क्षेत्र में हर कोस पर इतिहास सिमटा हुआ है और पर्यटन को बढ़ावा दिया जाये तो क्षेत्रीय विकास में सहायक होगा। देव संस्कृति विश्वविद्यालय के डॊ. अरुणेश पराशर ने कहा कि उत्तराखण्ड में अध्यात्मिक पर्यटन में काफी कुछ किया है, परंतु अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
इस अवसर पर डॊ. अरुणेश पाराशर व डॊ. पंकज मिश्रा को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में छात्रों में शोध के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिये उन्हे भी सहभागिता के लिये अवसर प्रदान किया गया। रुद्रा रघुवंशी व दिव्यांश मिश्रा आदि ने अपनी प्रस्तुति दी।
संगोष्ठी के अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रोफेसर लवकुश मिश्रा ने कहा कि फतेहपुर सीकरी में जोधाबाई की रसोई के ऊपर लगभग 200 प्रकार से महिलाओं के झुमके की डिजाइन प्रदर्शित किए गए हैं। दिल्ली में विष्णु स्तम्भ में आज तक जंग नहीं लगता। इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में भी भारत हर क्षेत्र में कितना उन्नत था।
प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि उत्तर भारत के तमाम मंदिर आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए, परंतु दक्षिण के मंदिरों में भारतीय शिल्प कला की तत्कालीन उन्नति को देखा जा सकता है। तब का भारत कितना उन्नत था, इसका अंदाजा उन मंदिरों के आर्किटेक्ट से लगाया जा सकता है जहां गर्भ गृह में पूरे वर्ष में एक निश्चित तिथि को ही सूर्य का प्रकाश मूर्तियों पर पड़ता है। ऐसे उन्नतशील शिल्प कला भी भारत की में विद्यमान थी।
इसके अलावा खान-पान से लेकर के पहनावे तक विश्वविद्यालय के विभागध्यक्ष पंकज मिश्रा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की खाद्यान्न विधा में बहुत वैज्ञानिकता थी। गोष्ठी में केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल के प्रोफेसर संदीप कुलश्रेष्ठ, चंडीगढ़ व पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रशांत गौतम तथा डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के डॉक्टर महेंद्र पाल, असम डाउन टाउन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संतोष उपाध्याय, एमिटी विश्वविद्यालय के डॉक्टर पंकज पांडे, देव संस्कृति विश्वविद्यालय के डॉक्टर अरुणेश पाराशर तथा सिक्किम बेंगलुरु केरल मध्य प्रदेश सहित देश के विभिन्न भागों से आए हुए प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
कक्षा 8 के छात्र दुर्विक अग्रवाल ने पानी से हाईड्रॉजन बनाने की विधि का प्रदर्शन किया, जिसके लिये उन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया गया। शहर के नामचीन वास्तुविद ऋषि बंसल व आर्थिक क्षेत्र में योगदान के लिये अनुज अशोक कंपनी सेक्रेटरी को भी सम्मानित किया गया।
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