लाड़ली जी के मंदिर से अष्टसखियों की मूर्तियां दो घंटे में ही हटानी पड़ीं
बरसाना (मथुरा)। यहां के श्री लाड़ली जी के मंदिर में आज सुबह विराजमान की गई आठ सखियों की मूर्तियों को विरोध होने की वजह से हटाना पड़ा। चेन्नई के जय हनुमान ट्रस्ट ने मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर आठ सखियों की स्वर्ण-रजत जड़ित मूर्तियां आज मंदिर प्रबंधन को सौंपी थीं। इन्हें विधि विधान से मंदिर में विराजमान भी करा दिया गया था। श्रद्धालुओं ने पूर्व से ही राधारानी के साथ स्थापित दो सखियों के साथ ही इन आठ सखियों के दर्शन भी कर लिए, लेकिन बाद में ऐसा विरोध हुआ कि दो घंटे बाद ही अष्टसखियों की मूर्तियां हटानी पड़ीं।
-आज राधारानी के संग अष्ट सखियों के दर्शन भी कर लिए थे श्रद्धालुओं ने
-चेन्नई के एक ट्रस्ट ने मंजूरी लेकर तैयार कराई थीं अष्टसखियों की मूर्तियां
शनिवार की पूर्णिमा के मौके पर जय हनुमान ट्रस्ट के अधय़क्ष मुरलीधर स्वामी ने ट्रस्टियों के साथ श्री जी मंदिर पहुंचकर स्वर्ण रजत मिश्रित अष्टसखियों को राधारानी के संग विराजमान कराया था। सेवायतों ने छप्पन भोग लगाकर श्रृंगार दर्शन कराए तो समूचा मंदिर राधारानी के जयकारों से गूंजने लगा।
ट्रस्ट के अध्य़क्ष मुरलीधर स्वामी ने अष्टसखियों की मूर्तियां सेवायत दाऊ दयाल गोस्वामी के सुपुर्द किया था। सेवायत दाऊ दयाल गोस्वामी ने गोस्वामी समाज को बुलाकर अष्ट सखी समाज को ये मूर्तियां सुपुर्द कर दीं। इसके बाद सेवायतों ने अष्टसखियों को मंदिर के पट्ठा पर दर्ज कर सुबह श्रृंगार आरती के मौके पर राधारानी के साथ दसों सखियों (पहले से स्थापित दो सखियों समेत) को पीली पोशाक धारण कराई और छप्पन भोग के साथ भक्तों को दर्शन कराए। राधारानी के साथ अष्टसखियों व पुरानी दो सखियों के दर्शन पाकर श्रद्धालु आनन्द से सराबोर होकर राधारानी के जयकारे लगाने लगे।
ट्रस्ट के अध्यक्ष मुरलीधर स्वामी व उमाशंकर गोस्वामी ने बताया कि आठों सखियों को ललिता, विशाखा,चित्रा, रंग देवी, सुदेवी, तुंग विद्या, इंदुलेखा, चम्पकलता आदि सखियों को दक्षिण भारत के सेंगनोर में एक करोड़ की कीमत से तैयार कराया गया है। उन्होंने बताया कि राधारानी के सबसे पुराने मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया जा रहा है।
अष्टसखियों की मूर्तियां विराजमान होने के बाद गोस्वामी समाज के कुछ लोगों के विरोध शुरू कर दिया। विरोध इतना बढ़ा कि दो घंटे बाद ही इन अष्टसखियों की मूर्तियां हटानी पड़ीं। मूर्तियां हटने से ट्रस्ट के पदाधिकारी मायूस हो गए। मंदिर के रिसीवर ने मामले की जानकारी होने के प्रति अनभिज्ञता बताई।
अष्टसखियों की मूर्तियां स्थापित करने का विरोध करते हुए रसिक मोहन गोस्वामी ने कहा कि अष्टसखियों की मूर्तियों के विराजमान होने से मंदिर की मर्यादा टूट रही थी। इसके बाद सेवायत ने मंदिर में विराजमान की गई अष्टसखियों को हटा दिया। मंदिर में सखियों की मूर्तियों को हटाने को लेकर काफी गहमागहमी भी हुई, जिसके चलते श्रद्धालु विचलित होने लगे।
उमाशंकर गोस्वमी ने बताया कि महीनों पहले गोस्वमी समाज से अष्टसखियों को विराजमान करने की स्वीकृति लिखित में ली गई थी। इसके बावजूद कुछ लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया।
मंदिर के रिसीवर प्रवीन गोस्वामी ने कुछ लोगों के विरोध पर कहा कि अगर मूर्तियां नहीं लगवानी थीं तो महीनों पहले समाज ने इसके लिए मंजूरी ही क्यों दी। मूर्तियों को विराजमान करने से पूर्व ही रोकना चाहिए था। विराजमान होने कर बाद इस तरह से मूर्तियों को नहीं हटाना चाहिए।
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