किरण को हल्के में लेना बहुत भारी पड़ा कांग्रेस को, भिवानी में लगा तगड़ा झटका

हरियाणा के दिग्गज नेता रहे स्व. बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी के कांग्रेस छोड़ने की कीमत पार्टी को चुकानी पड़ी है। भूपेंद्र हुड्डा कैंप की ओर से यह कहते हुए किरण चौधरी का मखौल उड़ाया गया था कि उनके जाने से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। हुड्डा की ओर से शायद यह संदेश दिया जा रहा था कि जाटों के नेता तो वे स्वयं हैं। किरण के जाने का खामियाजा कांग्रेस ने भिवानी जिले में भुगता है।

Oct 12, 2024 - 14:04
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किरण को हल्के में लेना बहुत भारी पड़ा कांग्रेस को, भिवानी में लगा तगड़ा झटका

एसपी सिंह

चंडीगढ़। हरियाणा के दिग्गज नेता रहे स्व. बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी का कांग्रेस छोड़ना पार्टी के लिए बहुत घाटे का सौदा रहा। किरण चौधरी के पार्टी छोड़ते समय उन्हें रोकना तो दूर, कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड़्डा कैंप ने यह दर्शाने की कोशिश की कि वे जनाधारविहीन हैं। इनके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हुड्डा कैंप एक प्रकार से खुश था कि किरण चौधरी खुद ही पार्टी से बाहर हो गईं। 

चुनाव नतीजों ने हुड्डा कैंप की यह गलतफहमी दूर कर दी है। स्व. बंसीलाल के गृह जनपद भिवानी की चार में से तीन सीटें भाजपा ने जीती हैं। यही नहीं, किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी भी इसी जिले की तोसाम सीट से विधायक चुनी गई हैं। 

स्व. बंसीलाल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे। वे कई बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे और हमेशा नेहरू गांधी परिवार के विश्वासपात्रों में उनकी गिनती होती रही। बंसीलाल अपने जीवन काल में ही दोनों बेटों को राजनीति में ले आए थे। पहले उन्होंने बड़े बेटे रणवीर महेंद्रा को विधान सभा में भिजवाया था। रणवीर महेंद्रा बाद में क्रिकेट की दुनिया में दिलचस्पी लेने लगे। बीसीसीआई से जुड़ने के बाद उनकी हरियाणा की राजनीति में सक्रियता शून्य हो गई थी। 

बड़े भाई के बीसीसीआई में बिजी होने पर स्व. बंसीलाल के दूसरे पुत्र चौधरी सुरेंद्र सिंह राजनीति में सक्रिय हुए। वे अपने पिता की परंपरागत सीट तोसाम से विधायक चुने गए। सुरेंद्र सिंह राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहे थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पहली सरकार में वे कैबिनेट मंत्री भी रहे। हेलीकाप्टर दुर्घटना में असामयिक निधन होने के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने उनकी पत्नी किरण चौधरी आगे आ गईं थीं। 

किरण चौधरी पहली बार तो दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं, लेकिन बाद में उन्होंने हरियाणा में सक्रिय होकर पति की विरासत को संभाल लिया। किरण चौधरी कई बार भिवानी की तोसाम सीट से विधायक चुनी गईं। वे भूपेंद्र सिंह हुड्डा की दूसरी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहीं। 

किरण चौधरी की कांग्रेस के प्रति वफादारी में कोई कमी नहीं थी, लेकिन 2024 के विधान सभा चुनाव में अपनी बेटी श्रुति चौधरी के राजनीतिक भविष्य पर खतरा देख उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। दरअसल इस बार के चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा हावी थे। उन्होंने पार्टी नेतृत्व से एक नियम बनवा लिया कि जो नेता लगातार दो चुनाव हारे हैं, उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा। 

किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुकी थीं। इस नियम की वजह से श्रुति को कांग्रेस से विधान सभा का टिकट न मिलना तय था। इसी वजह से किरण ने कांग्रेस को बाय-बाय बोल दिया। 

भाजपा ने किरण चौधरी को हाथोंहाथ लिया। इनाम बतौर उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। किरण चौधरी के कांग्रेस छोड़ते समय हुड्डा कैंप ने एक प्रकार से खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि उनके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। चुनाव के नतीजे आए तो मालूम पड़ा कि किरण के जाने से कांग्रेस पर बहुत फर्क पड़ा। कांग्रेस भिवानी जिले की चार में से तीन सीटें हार गई। 

जिन श्रुति चौधरी को कांग्रेस टिकट नहीं देना चाहती थीं, वे भिवानी की तोसाम सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं। कांग्रेस ने यहां लोहे से लोहा काटने की रणनीति के तहत श्रुति के भाई अनिरुद्ध महेंद्रा (ताऊ रणवीर महेंद्रा के बेटे) को चुनाव लड़ाय़ा। अनिरुद्ध महेंद्रा चुनाव हार गए। श्रुति जीत गईं। 

भिवानी जिले की लोहारू सीट से भाजपा प्रत्याशी जेपी दलाल की हार भाजपा के लिए झटका रही क्योंकि दलाल भाजपा सरकार में मंत्री थे। जाहिर है कि जनता ने मंत्री होने पर भी उन्हें हराया तो इसका मतलब यही है कि उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता का भी ख्याल नहीं रखा। शेष तीन सीटें तोसाम, बवानीखेड़ा और भिवानी पर भाजपा के प्रत्याशी जीते। माना जा रहा कि तीन सीटें जीतने में किरण चौधरी का भाजपा से जुड़ना भी एक वजह बना। 

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