सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, मुसलमानों को संपत्ति मामलों में शरिया का पालन हर हाल में करना होगा?

नई दिल्ली। पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर बहस चल रही है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक अहम सवाल पूछा है। सवाल यह है कि क्या मुस्लिम परिवार में जन्मा व्यक्ति संपत्ति के मामलों में धर्मनिरपेक्ष कानूनों का पालन कर सकता है? या उसे शरिया, यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन करना ही होगा? मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 5 मई को होगी।

Jan 28, 2025 - 18:41
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा,  मुसलमानों को संपत्ति मामलों में शरिया का पालन हर हाल में करना होगा?


इस मामले में याचिकाकर्ता केरल की सफिया पीएम हैं। उन्होंने कहा है कि वह अपनी पूरी संपत्ति अपनी बेटी को देना चाहती हैं। उनका बेटा ऑटिस्टिक है और उनकी बेटी ही उसकी देखभाल करती है। शरिया कानून के अनुसार, अगर माता-पिता की संपत्ति का बंटवारा होता है, तो बेटे को बेटी के हिस्से से दोगुना मिलता है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि अगर उनके बेटे की डाउन सिंड्रोम के कारण मृत्यु हो जाती है, तो उनकी बेटी को संपत्ति का केवल एक तिहाई हिस्सा मिलेगा। बाकी संपत्ति किसी रिश्तेदार को चली जाएगी।

सफिया ने अपनी याचिका में कहा है कि वह और उनके पति प्रैक्टिसिंग मुस्लिम नहीं हैं। इसलिए उन्हें भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के दिशानिर्देशों के अनुसार अपनी संपत्ति बांटने की अनुमति दी जानी चाहिए। फिलहाल, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम मुसलमानों पर लागू नहीं होता है। सफिया की याचिका इसी बात को चुनौती देती है। जब केस कोर्ट में आया, तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह एक 'बहुत ही दिलचस्प मामला' है।

यह मामला बीजेपी की तरफ से समान नागरिक संहिता को लागू करने के प्रयासों के बीच सामने आया है। बीजेपी चाहती है कि सभी नागरिकों के लिए चाहे वो किसी भी धर्म के हों, एक समान नागरिक कानून हो। जहां आपराधिक कानून सभी के लिए एक जैसे हैं, वहीं विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार से जुड़े कानून अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग हैं। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि ऐसा कदम धार्मिक स्वतंत्रता को कम करेगा और भारत की विविधता के लिए खतरा होगा।

उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह राज्य के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कानून जाति, धर्म या लिंग के बावजूद नागरिकों को समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। उन्होंने कहा, 'यूसीसी कानूनी भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक संवैधानिक उपाय है। इसके माध्यम से सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करने का प्रयास किया गया है।'

स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता के संबंध में कई निर्देश दिए हैं। सफिया का मामला इस बहस को और आगे ले जाता है। यह देखना होगा कि सरकार इस पर क्या जवाब देती है और कोर्ट का क्या फैसला आता है।

यह फैसला देश के भविष्य के लिए काफी अहम साबित हो सकता है। क्या सभी धर्मों के लोगों के लिए एक ही कानून होगा? क्या व्यक्तिगत मामलों में धार्मिक कानूनों की जगह धर्मनिरपेक्ष कानून लेंगे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब आने वाले समय में मिलेंगे। यह मामला निश्चित रूप से देश के कानूनी इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा। इससे समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने की चुनौती भी सामने आएगी।