जयंती पर विशेषः मेरा छात्र जीवन और अटल जी की यादें
आज हम एक ऐसे राजनेता, राष्ट्र नेता और महान देशभक्त, जिसके रग-रग में देश बसता था, एक ऐसे प्रखर वक़्ता, जो अपनी एक विशेष शैली के सृजनकर्ता थे, को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, जिनकी रिक्तता को भर पाना लगभग असम्भव है। पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ मुझे अपने जीवन में नज़दीक बैठने एवं अनेक बार सुनने का मौक़ा मिला। उनसे जुड़े कुछ संस्मरण रख रहा हूं, उनकी शैली देखिए-
अटल जी ने जब गुस्से को ठहाकों में बदल दिया
वर्ष 1972 थी। आगरा के सुभाष पार्क में उनकी सभा थी। निर्धारित समय से ढाई घंटा देरी से आये। इंतज़ार में जनता धूप से बिलबिला रही थी। अटल जी ने भाषण शुरू किया..मुझे मालूम है कि मैं ढाई घंटा देर से पहुंचा हूं। मुम्बई से फ़्लाइट दो घंटा देरी से उड़ी। बर्ड हिट बताया गया। जांच का विषय हो सकता है, लेकिन इंतज़ार का भी अपना मज़ा है। सुना है परसों इंदिरा जी भी इसी मैदान पर थीं। अभी मैं मुम्बई था, वहां से भी होकर निकल गयीं थीं। पता नहीं वो मेरे आगे आगे चल रही हैं या मैं उनके पीछे-पीछे।
अटल जी की इस भाषण शैली से सभास्थल पर ठहाके ही ठहाके सुनने को मिलते हैं। इंतज़ार का ग़ुस्सा समाप्त। यह बात अलग है कि उनके इस कथन पर लगभग एक माह तक अखबारों मं सम्पादक के नाम पत्रों का सिलसिला चला, जिसका एक बड़ा हिस्सा मैं भी था।
अटल जी का जुनून ऐसा था कि...
अटल जी को अपने जन्म दिन पर बटेश्वर आना था। शाम को भाषण और रात्रि में कवि सम्मेलन का कार्यक्रम था। मेरे पास लंब्रेटा स्कूटर था। बटेश्वर की दूरी का अंदाज़ा नहीं था। विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता राधेश्याम उपाध्याय और मैंने तय किया कि चलो बटेश्वर चल रहे हैं। लंब्रेटा स्कूटर से ही चल दिए। बटेश्वर पहुंचते-पहुंचते रात हो चली थी। घर पर भी बताकर नहीं गए थे। तब फ़ोन की सुविधा भी नहीं थी। बटेश्वर की सभा में साम्यवादियों का हुड़दंग हुआ। राजनीति का जूनून और युवा जोश, बटेश्वर का इलाक़ा, फिर भी टूट पड़े थे।
देर रात सभा समाप्त हुई। शाह रेडियो की एक टीम रात्रि में ही वापस जा रही थी। उनसे अनुरोध किया कि आगरा पहुंचकर उनके घर पर सूचना दे दें। इधर आगरा में घर वाले रात्रि भर उनकी तलाश में जुटे रहे। वे दिन ठिठुरती ठंड के थे। भोर में चार बजे हम बटेश्वर से आगरा के लिए वापस चले। रास्ते में स्कूटर पंचर हो गया। पंचर बनाने की कोई दुकान नहीं थी। स्कूटर को घसीटते हुए कई किलोमीटर चले। इसके बाद पंचर वाला मिला। पंचर बनवाने के बाद फिर चले तो थोड़ी दूर चलने के बाद हवा कम होती गयी। खैर किसी तरह 11 बजे आगरा पहुंच ही गए।
जब साम्यवाद की पोल खोली
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लगभग दो तिहाई विश्व साम्यवादी हो चुका था। कार्ल मार्क्स की थ्योरी सिर पर चढ़ कर बोल रही थी। अटल जी रूस से लौटे थे। साम्यवाद पर उनकी उत्सुकता स्वाभाविक थी। अटल जी ने रूसी दौरे के दो वाक़ये पेश किये, जो पूरे साम्यवाद की पोल खोलकर रख देने वाले थे।
अटल जी ने ये दो वाकये अपने ही अंदाज में बयां किए। उन्होंने तब बताया कि रूस में यूरी गेगरिंन अंतरिक्ष में गये थे। उन्होंने सोचा कि यूरी गेगरिंन को बधाई दे दी जाये। उनके घर पहुंचे तो घर में न तो बच्चे थे और न माता-पिता। पूछा तो बताया कि पिता अंतरिक्ष में गये हैं और मां राशन लेने गई हैं। पूछने पर बताया कि अंतरिक्ष से पिता पहले आ जायेंगे। मां का पता नहीं, राशन की लाइन में कितने दिन लगेंगे।
बकौल अटल जी, विदेशियों के लिये सीमित और नियत होटेल थे। सभी में आप रह नहीं सकते थे। वे होटेल पहुंचे। थोड़ी देर में देखा कि भीड़ की भीड़ भागी जा रही है। सभी भाग रहे हैं। मैंने वेटर से पूछा ये क्या है और लोग क्यों भागे जा रहे हैं। कोई जवाब नहीं, एक दम चुप्पी।
कुछ देर बाद मैं कमरे में पहुंचा। वहां लड़की वेटर थी। उसने इधर-उधर देखा, फिर अंदर से चटकनी लगा दी। मैं डर गया कि क्या करने वाली है। उसने बताया कि आज मार्केट में ब्रेड कई दिन बाद आई है। यह पता चलने पर कि सब ब्रेड की लाइन के लिये भाग रहे हैं। चूंकि बोलने की इजाज़त नहीं है। होटेल के चप्पे-चप्पे पर केजीबी के एजेंट हैं, इसलिये मौक़ा देखकर कमरा बंद कर आपको यह सब बताया है।
अटल जी ने यह वाकया बताकर पूरे साम्यवाद का ख़ाका खींचकर रख दिया था। कितनी दूरदर्शिता थी उनके अंदर। आज हम देख रहे हैं कि साम्यवाद विश्व से समाप्त हो चुका है।
अटल जी के ऐसे अनेक भाषण हैं जो मुझे छात्र जीवन में सुनने को मिले। ऐसे राष्ट्रभक्त, दूरदर्शी और राजनीति के अजातशत्रु को मेरी भावभीनी श्रधांजलि! उनकी कविताओं में गहराई-
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं।
गीत नया गाता हूं....
हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा।
What's Your Reaction?