आगरा में सौ वर्ष पूरे कर चुकी श्रीकृष्ण लीला इस बार और भव्य होगी
आगरा। आगरा में श्रीकृष्ण लीला महोत्सव ने सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं। 1924 में आगरा में बेलनगंज से यह महोत्सव शुरू हुआ था और 1938 से यह वाटर वर्क्स चौराहा स्थित गौशाला के प्रांगण में हो रही है। इस वर्ष श्रीकृष्ण लीला समिति अपना शताब्दी वर्ष भी मना रही है।
- 1924 में बेलनगंज से रामबाबू अग्रवाल ने शुरू कराया था यह महोत्सव, 1938 से गौशाला में होता है मंचन
शताब्दी वर्ष में महोत्सव को और ऊंचाई पर ले जाने के लिए इस बार का आयोजन और अधिक भव्य होने जा रहा है। आगामी पांच नवंबर से शुरू होने जा रहे श्रीकृष्ण लीला महोत्सव में इस बार वृंदावन के विख्यात रासाचार्य और श्री रास बिहारी कृपा ट्रस्ट के निर्देशक प्रदीप श्रीकृष्ण ठाकुर के निर्देशन में शताब्दी वर्ष का लीला मंचन होगा।
श्रीकृष्ण लीला महोत्सव समिति के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर कंस वध तक की लीला के मंचन का इस बार का स्वरूप नया होगा। विख्यात भजन गायक पं. मोहन शर्मा की भजन संध्या भी होगी।
14 साल बेलनगंज में हुआ था लीला मंचन
1924 में रामबाबू अग्रवाल ने बेलनगंज में श्रीकृष्ण लीला का मंचन शुरू कराया था। पूरे 14 साल बेलनगंज में ही लीला का मंचन हुआ। बाद में रामबाबू अग्रवाल ने वाटर वर्क्स चौराहा पर पड़ी अपनी जमीन गौशाला के लिए दान दे दी। इसके साथ ही 1938 से श्रीकृष्ण लीला का मंचन वाटर वर्क्स चौराहा स्थित गौशाला परिसर में होने लगा।
सिकुड़ता जा रहा है लीला मंचन का स्थल
इस धार्मिक आयोजन की सौ साल की यात्रा में लीला स्थल के भौगोलिक स्वरूप में भी काफी बदलाव आ गया है। पहले लीला के लिए गौशाला परिसर में बड़ा मैदान हुआ करता था। तीन तरफ दर्शकों के लिए बैठने के लिए सीढ़ीनुमा स्थान बनाए गए थे, जहां दूर-दूर से आने से आने वाले दर्शक शाम होने से पहले ही जगह घेरकर बैठ जाया करते थे।
मैदान के बाड़े में लीला का मंचन होता था। रथों पर विराजमान होकर भगवान श्रीकृष्ण और कंस का युद्ध होता था। एक मंच से जहां भगवान कृष्ण की लीला का मंचन होता था तो सामने के मंच पर कंस का दरबार सजा होता था। दोनों मंचों के बीच कंस का कारागार भी बनाया जाता था, जहां कंस द्वारा ऋषि मुनियों को कैद कर रखे जाने का दृश्य दर्शाया जाता था।
लीला स्थल के मैदान पर ही एक विशाल वृक्ष और तालाब भी ही हुआ करता था, जहां चीरहरण की लीला का मंचन किया जाता था। समय के साथ लीला क्षेत्र संकुचित होता जा रहा है। आयोजन समिति अब सीमित क्षेत्र में ही यह महोत्सव कराती है।
बुजुर्गों के सपने को जिंदा रखना है
श्रीकृष्ण लीला समिति के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल कहते हैं, हमारे जिन बुजुर्गों ने श्रीकृष्ण लीला महोत्सव की नींव डाली थी, उनका सपना रहा होगा कि उनके बाद भी गौशाला प्रांगण में लीला का निर्विघ्न रूप से मंचन चलता रहे। हम सभी का उत्तरदायित्व बनता है कि हम बुजुर्गों के सपनों को जीवित रखें। श्री अग्रवाल ने लीलांजलि में दिए गए श्रीकृष्ण लीला महोत्सव के नित्य के कार्यक्रमों के अनुरूप लीला देखने आने का आग्रह शहरवासियों से किया है।
जब संकट में आ गई थी लीला
वर्ष 2005 में ऐसा भी मौका आया जब श्रीकृष्ण लीला महोत्सव संकट में आ गया था। तब श्रीकृष्ण लीला कमेटी बहुत शिथिल हो चुकी थी। अध्यक्ष मनीष अग्रवाल बताते हैं कि तब मैं श्रीकृष्ण लीला कमेटी के तत्कालीन संयोजक और अपने पुरोहित पं. महेश चंद शर्मा से बल्केश्वर के यमुना तट पर पितरों का तर्पण कराया करता था।
बकौल मनीष, पं. महेश चंद शर्मा ने मेरे हाथों में यमुना का जल देकर सजल नेत्रों से उन्हें संकल्प कराया था कि अब से श्रीकृष्ण लीला का संचालन तुम्हें करना है। मनीष अग्रवाल के अनुसार वे चौंके थे, लेकिन पंडित जी ने उनसे त्रिवाचा भरवा लिया। मैं उनके अनुरोध को टाल नहीं सका।
इसके बाद में मैंने विनोद कुमार अग्रवाल (कोयले वाले, जो अब दिवगंत हैं) से अध्यक्ष पद स्वीकारने का अनुरोध किया। इसके बाद से श्रीकृष्ण जी की अनुकंपा से लीला निरंतर ऊंचाइयों की ओर जा रही है और आयोजन समिति भी अब बहुत सक्रिय है।
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