19 साल पहले मिला सूचना का अधिकार घोटालों का पर्दाफाश करने में कितना कामयाब रहा ? केसी जैन की नजर और अब तक का सफर

सूचना का अधिकार न सिर्फ सरकारी विभागों पर जवाबदेही का दबाव है बल्कि आम आदमी के लिए जानकारी हासिल करने का महत्वपूर्ण माध्यम है, जिनका उनकी जिंदगी से सीधा वास्ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में इसे सबसे धारदार कानूनी हथियार माना गया। साल 2005 में 12 अक्टूबर यानि आज ही के दिन शुरू हुआ यह अधिनियम 19 साल का हो गया है। क्या है यह कानून, किस तरह से तैयार हुआ, सूचना आयुक्तों की क्या भूमिका है, न्याय दिलाने में अब तक कितना कामयाब रहा है और कितने मामले केंद्र व राज्य में लंबित हैं ? आईये इन सब सवालों के जवाब ढूंढते हैं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता केसी जैन की नजर से।

Oct 12, 2024 - 14:32
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19 साल पहले मिला सूचना का अधिकार घोटालों का पर्दाफाश करने में कितना कामयाब रहा ? केसी जैन की नजर और अब तक का सफर

आरटीआई की शुरुआती सफलता और मौजूदा चुनौतियां  

आरटीआई (सूचना का अधिकार) अधिनियम, 2005 की 19वीं वर्षगांठ के अवसर पर इसका अब तक का सफर मिलाजुला रहा है। इस अधिनियम ने नागरिकों को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम प्रदान किया है। इसकी मदद से कई भ्रष्टाचार के मामलों का पर्दाफाश हुआ है, और आम जनता को अपने अधिकारों और सरकारी नीतियों के बारे में जानने का अवसर मिला है। शुरुआती दौर में, आरटीआई ने लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाया और इसका उपयोग बड़े पैमाने पर हुआ। इसके माध्यम से कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आईं, जिनसे शासन में सुधार हुआ।  


सक्रिय प्रकटीकरण की विफलता  

धारा 4, उपधारा (1), खंड (ख) के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा जानकारी का सक्रिय प्रकटीकरण करने में विफलता एक गंभीर समस्या बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता के.सी. जैन की जनहित याचिका सं. 990/2021 में ऐसे प्रकटीकरण के लिए निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसके बावजूद भी कई लोक प्राधिकारी अपनी महत्वपूर्ण जानकारियों को वेबसाइट पर प्रकाशित करने में असफल रहे हैं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि अधिनियम के इस प्रावधान का उद्देश्य जनता को स्वतः जानकारी देना था ताकि उन्हें आरटीआई के लिए आवेदन करने की आवश्यकता ही न पड़े।


वर्चुअल सुनवाई और ई-फाइलिंग में अवरोध  

सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता जैन की जनहित याचिका संख्या 360/2021 में सूचना आयुक्तों को वर्चुअल सुनवाई करने और इलेक्ट्रॉनिक नोटिस जारी करने के निर्देश भी दिए थे। इन आदेशों के तहत ई-फाइलिंग को प्रोत्साहित करने का भी निर्देश था, जिससे आरटीआई आवेदकों को सुविधा मिल सके और प्रक्रियाओं में तेजी आए। लेकिन यह दुखद है कि सुप्रीम कोर्ट के इन आदेशों के बावजूद कई सूचना आयोग (जैसे पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश) वर्चुअल सुनवाई नहीं कर रहे हैं और न ही ई-नोटिस भेज रहे हैं।  


आरटीआई पोर्टल की कमी  

एक और महत्वपूर्ण समस्या यह है कि अनेकों लोक प्राधिकरणों के पास आरटीआई आवेदनों के लिए कोई ‘फंक्शनल पोर्टल’ उपलब्ध नहीं है। कई सरकारी विभाग न तो आरटीआई फाइल करने के लिए उचित ऑनलाइन पोर्टल संचालित कर रहे हैं और न ही उनके पास जानकारी के प्रकटीकरण के लिए खुद का पोर्टल है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश का आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल पिछले कुछ समय से तकनीकी खामी के कारण ऑनलाइन भुगतान स्वीकार नहीं कर रहा है। 


लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि  

केंद्रीय सूचना आयोग में लगभग 29,995 मामले और उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में 52,326 मामले लंबित हैं। यह देरी आरटीआई आवेदकों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिससे समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है। सूचना आयुक्तों की भूमिका आरटीआई अधिनियम की योजना में महत्वपूर्ण है, लेकिन दुर्भाग्य से, स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यक्तियों को सूचना आयुक्तों के रूप में नियुक्त नहीं किया जा रहा है।  


सूचना आयुक्तों की नियुक्ति और ब्यूरोक्रेसी की मानसिकता  

हमें ऐसे ईमानदार, स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यक्तियों को सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त करने की आवश्यकता है, जो बिना किसी दबाव या पक्षपात के आरटीआई अधिनियम के उद्देश्यों को सही मायनों में पूरा कर सकें। सूचना आयुक्तों के पदों की रिक्तता भी सूचना अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन को प्रभावित कर रही है। इसके अलावा, ब्यूरोक्रेसी का मानसिकता भी एक बड़ी बाधा है जब तक उसकी मानसिकता में पारदर्शिता के प्रति पूर्ण बदलाव नहीं आता, सरकारी विभाग पूरी पारदर्शिता के साथ काम करने से कतराते रहेंगे।  


समाधान और भविष्य की दिशा  

इसके समाधान के लिए, केंद्रीय स्तर पर ‘एक निरीक्षण समिति’ की जरूरत है, जो आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन की निगरानी कर सके और सुनिश्चित कर सके कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ताओं के प्रति सरकारी विभागों का रवैया भी संतुलित नहीं है। कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश कार्यकर्ता पारदर्शिता के लिए काम कर रहे हैं, और उनकी विसिल ब्लोअर के रूप में भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।  


समाप्ति  

संक्षेप में, आरटीआई अधिनियम ने देश में पारदर्शिता बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसकी राह में चुनौतियां भी कम नहीं रही हैं। यदि सरकार और समाज इसके मूल उद्देश्यों को समझकर इसे सही रूप में लागू करते हैं, ईमानदार व स्वतंत्र सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की जाती है, वर्चुअल सुनवाई, ई-नोटिस और फाइलिंग पोर्टल के आदेशों का पालन किया जाता है, तो यह लोकतंत्र को और भी मजबूत बना सकता है।

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SP_Singh AURGURU Editor