बलिदान दिवस पर वीर गोकुला जाट का स्मरण, बेबीरानी बोलीं- जाटों का इतिहास गौरवशाली
आगरा। भारतवर्ष के इतिहास में अमर बलिदानी वीर गोकुल सिंह उर्फ गोकुला जाट के 355 वें बलिदान दिवस पर आज अखिल भारतीय जाट महासभा के बैनर तले आगरा किले के समक्ष स्थापित उनकी प्रतिमा स्थल पर गणमान्य जनों, सामाजिक संगठनों एव॔ राजनीतिक दलों के लोगों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर भावपूर्ण स्मरण किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में जाट महासभा के पदाधिकारियों ने सर्वप्रथम हवन कर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। जाट महासभा के जिला अध्यक्ष कप्तान सिंह चाहर की अध्यक्षता में विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री बेबीरानी मौर्य रहीं व मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश जाट महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक प्रताप चौधरी एवं कुं शैलराज सिंह एडवोकेट थे।
विचार गोष्ठी में अनेक इतिहासकारों ने भाग लिया और जाट महासभा की ओर से मुख्य अतिथि बेबी रानी मौर्य ने प्रसिद्ध इतिहासकार राज किशोर शर्मा राजे, पत्रकार डॉ भानु प्रताप सिंह, सुरेंद्र सिंह, राजेंद्र फौजदार व हरिमोहन माथुर का शाल उड़ाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया। विचार गोष्ठी का संचालन महामंत्री वीरेंद्र सिंह छोंकर, उपाध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राणा ने संयुक्त रूप से किया।
मुख्य अतिथि कैबिनेट मन्त्री बेबीरानी मौर्य ने कहा कि जाटों का इतिहास वीरता और बलिदान से भरा पङा है और गौरवशाली है। वीर गोकुल सिंह को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि महाराजा सूरजमल की प्रतिमा आगरा किले के समक्ष स्थापित होनी चाहिए। उन्होने मुगलों से आगरा किले पर कब्जा कर आगरा को मुक्त कराया।
उन्होंने कहा कि जाट महासभा का प्रतिनिधिमंडल उनके साथ लखनऊ चले। मुख्यमन्त्री जी मिलकर आगरा किले के समक्ष महाराजा सूरजमल जी की प्रतिमा को लगवाया जायेगा।
अध्यक्षता करते हुए जिला अध्यक्ष कप्तान सिंह चाहर ने वीर गोकुला जाट और महाराजा सूरजमल के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देश के इतिहास में जाट महावीरों के साथ इतिहास में अन्याय ही अन्याय किया गया है। वीर गोकुला ने औरंगजेब जैसे आताताई के खिलाफ सर्वप्रथम 1670 में विद्रोह कर उन्हें तीन दिन तक गढ़ी तिलपत में युद्ध कराया था और मुस्लिम धर्म न अपनाने पर अपने सहित अपने चाचा उदय सिंह के साथ बलिदान दे दिया था।
यह विद्रोह की चिंगारी ब्रज क्षेत्र में पहली थी। वीर गोकुल सिंह को कोतवाली पर चाचा उदय सिंह सहित औरंगजेब ने अंग अंग काटकर मौत की सजा दी थी और उनके शरीर से निकलने वाले खून के फब्बारे की वजह से आगरा में कोतवाली के पास फव्वारा नाम पड़ा।
मुख्य वक्ता प्रदेश अध्यक्ष प्रताप चौधरी व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष उपाध्यक्ष कुंवर शैलराज सिंह एडवोकेट ने कहा कि महाराजा सूरजमल ने 12 जून 1761 को आगरा किले पर कब्जा कर व्रज क्षेत्र से मुगलिया सल्तनत का अंत किया था, लेकिन अफसोस की बात है कि आगरा जैसे शहर में महाराजा सूरजमल की प्रतिमा नहीं है और ना ही किसी मार्ग का नाम महाराजा सूरजमल के नाम पर रखा गया है।
भरतपुर राजघराने ने 14 वर्ष तक आगरा पर शासन किया। मुगलिया अत्याचार से व्रज क्षेत्र की जनता को मुक्त कराया और अनेक विकास आगरा में कराए थे, जो आज भी जीवन्त हैं।
विचार व्यक्त करने वालों में प्रमुख रूप से पूर्व विधायक कालीचरण सुमन, किसान संघ के मोहन सिंह चाहर, यशपाल राणा, राजू ब्लाक प्रमुख, मान सिंह प्रमुख, जाट महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयप्रकाश चाहर, उपाध्यक्ष चौ नवल सिंह, सत्यवीर सिंह रावत, राधेश्याम मुखिया, डा नेत्रपालसिंह, नेपाल सिंह राना , विजय सिंह रावत, गंगाराम राम पैलवार, रन्धीर सिंह काका, चौ गुलवीर सिंह, विजय पाल नरवार ,नरेश इन्दौलिया, मेघराज सोलंकी, देवेंद्र चौधरी, उदयवीर सिंह चाहर, भरत सिंह, मथुरा जाट महासभा के जिलाध्यक्ष राजेश चौधरी, फिरोजाबाद के जिलाध्यक्ष देवेन्द्र बैनीवाल आदि थे।
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