यादें: हिकी की निडर कलम ने अंग्रेजी औपनिवेशिक अत्याचार का डटकर मुकाबला किया था
जनवरी 1780 में भारत का पहला समाचार पत्र प्रकाशित हुआ था। बंगाल गजट नामक इस समाचार पत्र की स्थापना जेम्स ऑगस्टस हिकी ने की थी। हिकी के छोटे लेकिन प्रभावशाली करियर ने भारत में जुझारू और विपक्षी पत्रकारिता की नींव रखी।
ऐसी दुनिया जहां स्वतंत्र पत्रकारिता निहित स्वार्थों से खतरे में है और हिंसक दमन और प्रौद्योगिकी के "बिग ब्रदरली" चालों से घिरी हुई है, वहां इतिहास की गूंज फिर सुनाई दे रही है। याद कीजिए जब अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने प्रेस को "लोगों का दुश्मन" करार दिया था? उनके शब्द ईस्ट इंडिया कंपनी के वायसराय वॉरेन हेस्टिंग्स के औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाते हैं, जिन्होंने भारत के पहले समाचार पत्र के अग्रदूत जेम्स ऑगस्टस हिकी को "एक मूर्ख, अज्ञानी दुष्ट" के रूप में खारिज कर दिया था।
फिर भी अत्याचार के सामने जे ए हिकी निडर होकर खड़े रहे। उनकी विरासत साहस और दृढ़ विश्वास की एक किरण है, जो हमें लगातार एक स्वतंत्र प्रेस की अपरिहार्य भूमिका की याद दिलाती है जो लोकतंत्र की आधारशिला है। पत्रकारिता की प्रतिपक्षी विविधता की शुरुआत करते हुए, हिकी की साहसिक यात्रा ने दो शताब्दियों से अधिक समय तक भारतीय पत्रकारिता का मार्गदर्शन और पोषण किया है।
स्वतंत्र भारत में पत्रकारों की कई पीढ़ियों ने हिकी की विरासत को जीवित रखा है जो साहस और दृढ़ विश्वास का एक चमकदार उदाहरण है। एक स्वतंत्र प्रेस की शक्ति का एक स्थायी सर्टिफिकेट लोकतंत्र के लिए एक शर्त है।
जन्म से आयरिश और आत्मा से विद्रोही, हिकी ने जनवरी 1780 में बंगाल गजट की स्थापना की। यह भारत का पहला समाचार पत्र था। संपादक और प्रकाशक हिकी ने “सत्य और तथ्यों के प्रति कठोर पालन” का वादा किया था, लेकिन उनके मार्ग को जल्द ही शक्तिशाली औपनिवेशिक प्रशासन ने बाधित कर दिया। इससे विचलित हुए बिना उन्होंने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र को "निरंकुश और मनमाने तानाशाहों का अभिशाप" बनाने के अपने मिशन की घोषणा की। हिकी की कलम, स्याही की जगह जहर से भरी हुई थी, जिसने उनके बंगाल गजट को असहमति के हथियार में बदल दिया।
हफ़्ते दर हफ़्ते उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी और हेस्टिंग्स के प्रशासन के भीतर भ्रष्टाचार और कुप्रथाओं को निडरता से उजागर किया, जिससे वायसराय की छवि धूमिल हुई और कलकत्ता भर में बहस छिड़ गई। यहां तक कि कारावास भी उन्हें चुप नहीं करा सका। नौ महीने तक हिकी ने जेल से अपना अखबार प्रकाशित किया। प्रत्येक अंक औपनिवेशिक अत्याचार के खिलाफ़ एक विद्रोही गर्जना थी।
वायसराय ने मानहानि के मुकदमों के साथ जवाबी कार्रवाई की और कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय ने 1782 में उनके प्रिंटिंग प्रेस को जब्त करने का आदेश दिया। हिकी के अखबार को चुप करा दिया गया, लेकिन उनके साहस ने एक अमिट छाप छोड़ी। हेस्टिंग्स को लंदन में महाभियोग का सामना करना पड़ा। उनकी प्रतिष्ठा एक अकेले पत्रकार की अथक कलम से धूमिल हुई।
हिकी की कहानी दृढ़ विश्वास की कहानी है। एक ऐसे पथप्रदर्शक जिन्होंने दिखाया कि प्रेस एक निडर प्रहरी हो सकता है, जो सत्ता को जवाबदेह ठहरा सकता है। उनके छोटे लेकिन प्रभावशाली करियर ने भारत में जुझारू और विपक्षी पत्रकारिता की नींव रखी।
बंगाल गजट सिर्फ़ एक प्रकाशन नहीं था, यह न्याय और सत्य के लिए एक स्पष्ट आह्वान था, जो सेंसरशिप और नियंत्रण के युग में उत्पीड़न को चुनौती देता था। आज, जब दुनिया भर के पत्रकार प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरों का सामना कर रहे हैं, हिकी का दृढ़ संकल्प लिखित शब्द की शक्ति की याद दिलाता है।