मथुरा जेल में बंदियों ने समझा गीता का सार
मथुरा। गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी ने जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों को ‘श्रीगीता: जीने की कला’ कार्यक्रम के जरिए गीता का सार समझाया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य कैदियों का हृदय परिवर्तन था। इस दौरान सभी को प्रेरणादायी साहित्य का वितरण भी किया गया।
-कैदियों के हृदय परिवर्तन के लिए हुआ अनूठा कार्यक्रम, विद्वानों के प्रवचन भी हुए, गीता साहित्य का वितरण
उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा संचालित गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी, वृंदावन ने जिला कारागार में "श्रीगीता: जीने की कला" कार्यक्रम के अंर्तगत बंदियों के समक्ष गीता का वह सार तत्व प्रस्तुत किया, जिसके माध्यम वह आगे अपने जीवन में सदमार्ग पर चल सकेंगे।
मुख्य वक्ता अवकाश प्राप्त अवर सचिव (विदेश मंत्रालय) और गीता मर्मज्ञ महेश चंद्र शर्मा ने इस मौके पर कहा कि जेल का जीवन एकांत साधना के लिए श्रेष्ठ है। आप लोग जीवन से निराश न हों। सदमार्ग पर चलें। गीता हमें यही सीख देती है।
उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद के ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डा उमेश चंद्र शर्मा ने कहा कि गीता जीने की कला से ज्यादा एक विद्या है। गीता हमें सदकर्म की प्रेरणा देती है। हमें यह संकल्प लेना होगा कि आगे से जीवन कोई गलत कम हमारे हाथ से न होने पाये।
गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी के निदेशक प्रो. दिनेश खन्ना ने कहा कि जेल प्रशासन से मिलकर भविष्य में जेल के बंदियों के मध्य रासलीला का मंचन व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कराने के प्रयास होंगे।
गीता शोध संस्थान वृंदावन के समन्वयक चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार ने भी विचार व्यक्त किए। उन्होने बंदियों को गीता प्रेस गोरखपुर का प्रेरणादायी साहित्य वितरित किया। गीता की प्रतियां जेल अधिकारियों को भी भेंट कीं।
वक्ताओं ने बंदियों को गीता के उपदेश पढ़कर सुनाए। इसके साथ ही उनका अर्थ भी समझाया। जेल अधीक्षक अंशुमन गर्ग के निर्देश पर हुए उक्त प्रेरक कार्यक्रम में जेलर सुशील कुमार वर्मा, उप कारापाल करुणेश कुमारी, रवींद्र कुमार, दुर्गेश प्रताप सिंह, सीएम तिवारी आदि अधिकारी मौजूद रहे।
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