पितृ अमावस्याः कल भी मौका है पितरों के श्राद्ध का

यदि आप श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों का भूलवश या अन्य किसी वजह से श्राद्ध न कर पाए हों तो कल यानि दो अक्टूबर को ऐसा कर सकते हैं। कल पितृ अमावस्या है।

Oct 1, 2024 - 11:28
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पितृ अमावस्याः कल भी मौका है पितरों के श्राद्ध का

आश्विन मास की अमावस्या ही पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से विख्यात है। इस अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या भी कहते हैं। यह इस वर्ष 2 अक्टूबर बुधवार के दिन पड़ रही है। इस दिन ब्राह्मण को भोजन तथा दान देने से पितर तृप्त होते हैं। वे अपने पुत्रों और परिजनों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है, उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या को कर देने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। 

इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं, जिसका अर्थ है कि पितृ जाते समय भूखे न रह जाएं। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित और प्रकाशित करना है। इस दिन अपने पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध अवश्य करें। अमावस्या को किया गया श्राद्ध विशेष श्रेष्ठ एवं पुण्य फलदाई माना गया है।

श्राद्ध आवश्यक क्यों हैं और पितर अथवा पितृ कौन होते हैं। अपने प्रियजनों में अतिशय मोह करने वाले मृत्यु के उपरांत अपनी प्रबल मोह भावना के वशीभूत होकर प्रेत योनि पाते हैं और अपने उसी घर के आस-पास फिरते रहते हैं। अपने बाल बच्चों को हंसता खेलता देखकर प्रसन्न होते हैं। वृद्धजन अक्सर इस कोटि में आते हैं, वह किसी को हानि नहीं पहुंचाते। वरन समय पर अपने कुटुंबियों को आपत्तियों से सचेत किया करते हैं और विपत्ति निवारण में सहायता करते हैं। इन्हें ही पितर अथवा पितृ कहते हैं।

जो तरुण अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होते हैं और जिनकी लालसाएं अत्यंत उग्र एवं स्वार्थपूर्ण होती हैं, वे अपने प्रियजनों को अपनी जैसी प्रेत व्यवस्था में ले जाकर साथ रखने की इच्छा करते हैं और उसी भावना से वह अपने प्रियजनों को मार डालने का भी आयोजन करते हैं। तरुण स्त्रियां जो अपने बाल बच्चों को छोटी अवस्था में अनाश्रति छोड़कर मर जाती हैं, वे इस प्रकार के कार्य अधिक करती हैं। अपने बच्चों को अपने साथ रखने की मोहमई लालसा उनसे इस प्रकार का कार्य कराती है।

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मरने के बाद भी दिवंगत आत्मा का घर के प्रति मोह और ममता का भाव बना रहता है। यह ममता उसकी भावी प्रगति के लिए बाधक है। पितरों की खाने पीने की चीजों की इच्छा अधिक होती है, इसीलिए श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की तिथि को उनकी पसन्द का भोजन अपने मान पक्ष के रिश्तेदारों जैसे, बहन, बहनोई, बुआ, फूफा, भांजे, भाँजी अथवा ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। 

आपको एक एक थाली, गाय, कोए, कुत्ता, चींटी, मछली आदि के लिए निकालकर खिलानी चाहिए। पितृ अथवा पितर हमारे घर के उपर से दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और शाम को गुजरते हैं, और यदि हम खुश हैं, अच्छे कार्य कर रहे हैं तो वे तथास्तु कहकर आशीर्वाद देते हैं। यदि हम सब कुछ होते हुए भी बोलते हैं कि हम बहुत दुःखी हैं, भूखे हैं और गलत कार्य करते हैं तब भी वे तथास्तु कहकर आशीर्वाद देते और चले जाते हैं।

-डॉ० अरविन्द मिश्र, ज्योतिषाचार्य
मोबाइल नंबर 9412343560

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