मथुरा की डीजीसी पॊक्सो को फांसी वाली मैडम बोलने लगे हैं लोग

मथुरा। जिले के पॉक्सो न्यायालय में स्पेशल डीजीसी श्रीमती अलका उपमन्यु एडवोकेट अपने सवा चार साल के कार्यकाल में ऐतिहासिक निर्णय कराकर देश की पहली सरकारी अधिवक्ता बन गई हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख गृह सचिव एवं डीजीपी द्वारा पुलिस मेडल एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया है। अलका उपमन्यु को जेल के कैदियों ही नहीं, आम लोग ने भी फांसी वाली मैडम नाम दे दिया है।

Feb 11, 2025 - 20:19
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मथुरा की डीजीसी पॊक्सो को फांसी वाली मैडम बोलने लगे हैं लोग
मथुरा की डीजीसी पॊक्सो श्रीमती अलका उपमन्यु एडवोकेट।

-अलका उपमन्यु ने चार साल में चार को दिलाई फांसी की सजा, 42 मामलों में उम्र कैद व कठोर सजा, डेढ़ सौ केस में त्वरित फैसला कराया

 

चार साल में चार को फांसी की सजा कराई

श्रीमती अलका उपमन्यु एडवोकेट ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण मामलों में सजा कराई है, जिनमें एक फांसी की सजा घटित घटना के कोर्ट के 22वें वर्किंग डे में, दूसरी फांसी की सजा 35 दिन में और तीसरी फांसी की सजा 42 दिन में और चौथी फांसी की सजा 14 महीने में कराई। इसके अलावा, उन्होंने 42 घटनाओं में अपराधियों को आजीवन एवं कठोर सजा कराई और डेढ़ सौ से अधिक केसों में 22 पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत जुर्माना आदि की सजा कराकर सरकार को लाखों का राजस्व जमा कराया है।

गृह सचिव व डीजीपी ने दिया मेडल एवं प्रशस्ति पत्र

उनके कार्य की प्रशंसा करते हुए उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख गृह सचिव एवं डीजीपी ने उन्हें पुलिस मेडल एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया है। इसके अलावा उन्हें लगातार दो बार से गणतंत्र दिवस की परेड में सरकार के कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण सिंह द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर के सम्मानित किया जा चुका है। जिले की सांसद हेमा मालिनी द्वारा भी प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। अभियोजन विभाग के डीजीपी, अपर पुलिस महानिदेशक, कमिश्नर, डीआईजी और डीएम भी उन्हें प्रशस्ति पत्र दे चुके हैं।

आसान नहीं था महिला वकील के रूप में पहचान बनाना

अपने सवा चार साल के कार्यकाल पर बात करते हुए श्रीमती उपमन्यु ने कहा कि समाज में न्याय दिलाने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। वकालत के क्षेत्र में महिला के रूप में जगह बनाना आसान नहीं था, क्योंकि यह धारणा थी कि गंभीर आपराधिक मामलों को पुरुष वकील ही बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं। इन चुनौतियों के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी।

चार साल में कई चुनौतीपूर्ण केस आए

उन्होंने कहा कि मेरे करियर के कई ऐसे केस हैं, जो बेहद चुनौतीपूर्ण और यादगार रहे। सबसे महत्वपूर्ण मामलों में चार फांसी की सजा वाले केस शामिल हैं। एक तो सबसे तेज फांसी की सजा, इस मामले में मैंने महज कोर्ट के,22 कार्य दिवस के भीतर अपराधी को फांसी की सजा दिलाई। यह मेरी अब तक की सबसे तेज और महत्वपूर्ण जीत रही, जिसके लिए मुझे डीजीपी और गृहसचिव से पुलिस मेडल प्रशस्ति पत्र और सम्मान मिला

बयान से पलटने वालों को भी दंड दिलवाया

उन्होंने कहा कि आज न्याय व्यवस्था में सबसे बड़ी समस्या यह है कि कई फरियादी दबाव या लालच में आकर अपने बयान से पलट जाते हैं। जब ऐसा होता है तो अभियोजन पक्ष की पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है। अपराधी बच निकलते है और समाज में अपराध बढ़ता है। मैंने ऐसे डेढ़ सौ से अधिक मामलों में जहां फरियादी अपने बयान से पलट गए, उनके खिलाफ कार्रवाई सहित 22 पॉक्सो एक्ट के तहत सजा और आर्थिक दंड की कार्रवाई कराई है।

अपराध होने पर डटकर लड़ें मुकदमा

श्रीमती उपमन्यु ने कहा कि मैं लोगों से यही कहना चाहती हूं कि अगर कोई अपराध आपके साथ या आपके परिवार के साथ होता है तो डरने के बजाय डटकर मुकदमा लड़िए। रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद किसी के दबाव में आकर अपने बयान से पीछे न हटें। न्याय पाने के लिए संघर्ष करना जरूरी है, क्योंकि अपराधी को सजा तभी मिलेगी जब पीडित मजबूती से खड़ा रहेगा।

जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी सहायता

अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हुए श्रीमती उपमन्यु ने कहा कि मेरा लक्ष्य यह है कि जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाए। मैं चाहती हूं कि गरीब और वंचित वर्ग के लोग भी कानूनी लड़ाई लड़ सकें। समाज में न्याय को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सामाजिक कानूनी जागरुकता कार्यक्रम चलाने पर ध्यान दूंगी।

SP_Singh AURGURU Editor