अग्निशमन विभाग ही समझ सका है आपदा को अवसर में बदलने का मतलब, सर्वे के नाम पर चल रहा मोटा खेल
आपदा में अवसर तलाशने वाले सूत्र को इस देश के नौकरशाहों ने भली भांति समझ लिया है। यही कारण है कि वे हर अवसर को आसानी से भुना लेते हैं। झांसी के अस्पताल में आग क्या लगी। अग्निशमन विभाग की चांदी हो गई।
आगरा। आपदा में अवसर तलाशने वाले सूत्र को इस देश के नौकरशाहों ने भली भांति समझ लिया है। यही कारण है कि वे हर अवसर को आसानी से भुना लेते हैं।
झांसी के अस्पताल में आग क्या लगी। अग्निशमन विभाग की चांदी हो गई। अभी तक निष्किय पड़े इस विभाग के अधिकारियों को अचानक कर्त्तव्यबोध हो गया है। फायर विभाग के सर्वे के नाम पर जमकर शोषण चल रहा है। कहीं भी पहुंच जाएं कमियां तो मिलती ही हैं। कमी ना भी हो तो निकाल ली जाती है। जैसा कि कल दिल्ली गेट के एक काम्प्लेक्स में सर्वे के नाम पर हुआ।
ज्ञात हो कि एडीए के नक्शा पास करने के जो मापदंड हैं उसमें फायर की एनओसी होना अनिवार्य है। इस काम्प्लेक्स की फायर की एनओसी है। तो फायर विभाग के काबिल अधिकारी ने यह मुद्दा उठा लिया कि इसमें चलने वाले छोटे-छोटे क्लीनिक या दो चार बैड के अस्पताल की अलग से एनओसी होनी चाहिए।
कितना हास्यास्पद है ये मानो एक पूरे भवन का इंश्योरेंस हो और हादसा होने पर इंश्योरेंस कंपनी कहे कि बेड रूम से चोरी हुई है आपने बेड रूम का अलग से इंश्योरेंस नहीं कराया।
जब भी किसी सरकारी बिल्डिंग में हादसा होता है तो सर्वे प्राइवेट का शुरू हो जाता है। इसका कारण स्पष्ट है कि सरकारी भवनों से कुछ खेल हो नहीं सकता तो तुरंत अधिकारी प्राइवेट प्रतिष्ठानों पर सक्रिय हो जाते हैं। क्योंकि वहां खेल की पूरी गुंजाइश होती है।
क्या एसएन मेडीकल कालेज और जिला अस्पताल संजय प्लेस में बने विभिन्न ब्लाक, सीडीओ कार्यालय, फायर विभाग के मापदंड़ों पर सही हैं। हादसा होने पर बड़ी मछलियां तो निकल जाती हैं गाज छोटी इकाइयों पर गिरती है। निशाने पर अब शहर मैं चल रहे 200 से अधिक छोटे अस्पताल हैं
जहां तक दिल्ली गेट के इस काम्प्लेक्स का सवाल है इस बिल्डंग को फायर विभाग के एक छोटे साहब ने अपने निशाने पर ले रखा है। पहले इस अधिकारी ने वहां कमियां गिनाई। फिर अपने ही वेंडर के माध्यम से उन कमियों को दूर कराया। चिकित्सकों ने खुद तोड़फोड़ कर अपने क्लीनिकों को विभाग के मानकों के अनुरूप तैयार किया।
बिल्डंग को फायर विभाग ने एनओसी दे दी। बड़े साहब तो शांत हो गए किंतु छोटे साहब का मन नहीं भरा। यही कारण है कि छोटे साहब बार-बार यहीं चक्कर लगाते रहते हैं। यहां एक तथ्य और है कि किसी भी विभाग के नए नियम पुराने बने भवनों पर कैसे लागू हो सकते हैं। जिस समय जो बिल्डंग बनी वह उस समय के नियम से बनायी गयी।
नियमों में बदलाव होने पर बिल्डिंग को तोड़कर तो नियम का पालन नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर सारा खेल है। जहां मलाई दिखाई देती है नियम भी वहीं समझाए जाते हैं।
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