अमुवि के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी

नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी अमुवि के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला अब सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि बेंच इस फैक्ट की जांच करेगी कि क्या अमुवि को अल्पसंख्यकों ने स्थापित किया था।

Nov 8, 2024 - 12:51
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अमुवि के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी
अमुवि के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी

 

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संवैधानिक बेंच ने आज 4:3 के बहुमत से फैसला दिया कि अमुवि संविधान के आर्टिकल 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है। खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने ही 1967 के फैसले में कहा था कि अमुवि अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का दावा नहीं कर सकती है।

उस समय अजीज बाशा केस में कोर्ट ने कहा था कि अमुवि सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। इसकी स्थापना न तो अल्पसंख्यकों ने की थी और न ही उसका संचालन किया था। सुप्रीम कोर्ट के ही तीन जजों की बेंच अब इसी पर फैसला सुनाएगी। ताजा विवाद 2005 में शुरू हुआ, जब अमुवि ने खुद को अल्पसंख्यक संस्थान माना और मेडिकल के पीजी कोर्सेस की 50 फीसदी सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कर दीं। हिंदू छात्र इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट गए।

हाईकोर्ट ने अमुवि को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना। इसके खिलाफ अमुवि सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस मामले को सात जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था।

1817 में दिल्ली के सादात (सैयद) खानदान में सर सैयद अहमद खान का जन्म हुआ। 24 साल की उम्र में सैयद अहमद मैनपुरी में उप-न्यायाधीश बन गए। इस समय ही उन्हें मुस्लिम समुदाय के लिए अलग से शिक्षण संस्थान की जरूरत महसूस हुई। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी शुरू करने से पहले सर सैयद अहमद खान ने मई 1872 में मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज फंड कमेटी बनाया। कमेटी ने 1877 में मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत की।

इस बीच अलीगढ़ में एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग तेज हो गई। इसके बाद मुस्लिम यूनिवर्सिटी एसोसिएशन की स्थापना हुई। 1920 में ब्रिटिश सरकार की मदद से कमेटी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाकर इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाए जाने के बाद पहले से बनी सभी कमेटी को भंग कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से एक नई कमेटी बनी। इसी कमेटी को सभी अधिकार और संपत्ति सौंपी गई।

अभाविप और दूसरे दक्षिण पंथी संगठनों का कहना है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए 1929 में 3.04 एकड़ जमीन दान दी थी। ऐसे में इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक सिर्फ सर अहमद खान को नहीं बल्कि हिंदू राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी हैं।

अमुवि एक्ट 1920 के सेक्शन-8 और 9 को खत्म कर दिया गया। इसके तहत मुस्लिम छात्रों को अनिवार्य धार्मिक शिक्षा देने वाली बात खत्म कर दी गई। साथ ही अब किसी भी जाति, लिंग, धर्म के लोगों की एंट्री के लिए यूनिवर्सिटी का दरवाजा खोल दिया गया।

अमुवि एक्ट 1920 के सेक्शन 23 में बदलाव किया गया। इसके जरिए यूनिवर्सिटी कोर्ट की सर्वोच्च शक्ति को घटाकर बाकी यूनिवर्सिटी की तरह ही इसके लिए एक बॉडी बना दी गई। यूनिवर्सिटी को उस समय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंदर ले लिया गया।

1967 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच के सामने पहुंचा। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने तर्क दिया कि सर सैयद अहमद खान ने इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए एक कमेटी बनाई थी। उस कमेटी ने इसे बनाने के लिए चंदा करके धन जुटाया। एक अल्पसंख्यक के प्रयासों से अल्पसंख्यकों के फायदे के लिए यूनिवर्सिटी शुरू हुई। इसलिए इसे अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- सर अहमद खान और उनकी कमेटी ब्रिटिश सरकार के पास गई। सरकार ने कानून बनाकर इस यूनिवर्सिटी को मान्यता दी और उसे शुरू किया। यही वजह है कि इस यूनिवर्सिटी को न तो मुस्लिमों ने बनाया है और न ही इसे चलाया। यूनिवर्सिटी की स्थापना उस समय भारत सरकार ने किया था। इसलिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 13 साल बाद 1981 में केंद्र सरकार ने अमुवि एक्ट के सेक्शन 2(1) में बदलाव किया गया। इस यूनिवर्सिटी को मुस्लिमों का पसंदीदा संस्थान बताकर इसके अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल किया गया। कानून में इसकी व्याख्या की गई है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पहले मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत हुई। बाद में इसे चलाने वाली कमेटी ने ही अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को शुरू करने की योजना तैयार की। इस कमेटी को सर अहमद खान ने किया था। वो एक अल्पसंख्यक थे, इसलिए इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए।