संभल में अब बहुत कुछ खोजा जा रहा, शास्त्रों में है तीर्थों और कूपों का वर्णन
संभल। संभल के मुस्लिम बहुल इलाके में 46 साल से बंद शिव मंदिर के खुलने के बाद अब यहां बहुत कुछ खोजा जा रहा है। शास्त्रों में संभल के तीर्थों और 22 कुओं का जिक्र है। अब इनकी खोज कर इन्हें सहेजने की कसरत चल रही है। सम्भल की धार्मिक महिमा रही है और उस महिमा को फिर से बहाल करने के लिए कुछ हिंदू संगठन भी प्रयासरत हैं। इसी क्रम में सदियों पुरानी सम्भल परिक्रमा को फिर से शुरू किया जा चुका है। ऐसी मान्यता है कि इस परिक्रमा को करने से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की तरह ही पुण्य लाभ मिलता है।
-22 में से 19 कुएं खोज चुका है प्रशासन, अब इन सभी को संरक्षित किया जा रहा है
-दर्जनों धार्मिक स्थलों की खोज जारी, चंदौसी में मिला मंदिर बांके बिहारी का होने की जांच
संभल में शिव मंदिर के बाद एक और मंदिर चंदौसी में खोजा गया है। इस मंदिर के बारे में अब इस बात की जांच की जा रही है कि क्या यह वही डेढ़ सौ साल से अधिक पुराना बांके बिहारी मंदिर है, जिसका जिक्र वहां के हिंदू धर्मावलंबी कर रहे हैं। यह मंदिर संभल जिले के चंदौसी में मुस्लिम बहुल इलाके में मिला है। यह खंडहरनुमा मंदिर है। यह मंदिर करीब डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना बताया गया है। मुस्लिम आबादी से घिरा होने और रखरखाव नहीं होने के चलते इसका अस्तित्व खतरे में आ चुका है।
यह मंदिर चंदौसी लक्ष्मणगंज मोहल्ले में है। 25 साल पहले तक इस इलाके में बड़ी हिंदू आबादी थी। बाद में यहां से हिंदू आबादी पलायित होती रही और मुसलमानों की संख्या बढ़ती चली गई। 2010 तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना होने की बात कही जा रहीहै। 2010 में ही कुछ शरारती तत्वों ने मंदिर में विराजमान भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा और शिवलिंग समेत अन्य मूर्तियों को खंडित कर दिया था। उस समय पुलिस में शिकायत भी की गई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। चंदौसी के लोगों को उम्मीद है कि संभल के शिव मंदिर की तरह भगवान बांके बिहारी के मंदिर का भी अब जीर्णोद्धार हो जाएगा।
ये है संभल के बारे में मान्यता
उत्तर प्रदेश के संभल को लेकर प्राचीन मान्यता है कि यहां 68 तीर्थ और 19 कूप स्थित हें। इसी मान्यता के चलते प्रशासन यहां के अन्य कूपों को खोजने में भी जुट गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन दिन पहले विधान सभा में संभल में जिन 22 कुओं को बंद किए जाने का जिक्र किया था, उनमें से 19 कुएं प्रशासन द्वारा खोज लिए गए हैं। इन सभी कुओं पर बोर्ड लगाकर अब इन्हें संरक्षित किया जा रहा है।
संभल का धार्मिक महत्व
संभल शहर का धार्मिक महत्व है। शास्त्रों के अनुसार शहर और इससे सटे इलाके में 68 तीर्थ और 22 कूप हैं। इनमें तीर्थ और अधिकांश कुएं विलुप्त हो चुके हैं। प्रशासन के प्रयास से कूप तो चिन्हित कर लिए हैं लेकिन तीर्थों की तलाश चल रही है। मान्यता है कि सम्भल उर्फ शम्भलेश्वर की संरचना भगवान शंकर ने विश्वकर्मा से कराई और इसकी रखवाली के रूप में खुद तीन कोनों पर विराजमान हुए। इसी त्रिकोणीय परिधि में 68 तीर्थ और 22 कूपों के दर्शन मात्र से ही मानव को पापों से मुक्ति साथ-साथ चारों तीर्थो की यात्रा का पुण्य मिलने की मान्यता है। अनदेखी के चलते इनकी स्थिति अत्यंत खराब है और गिने-चुने तीर्थ और कुएं ही अस्तित्व में हैं।
शास्त्रों में है इन तीर्थों और कूपों का वर्णन
शास्त्रों में संभल में अर्क तीर्थ (सूर्य कुंड तीर्थ), हंस तीर्थ, कृष्ण तीर्थ, कुरुक्षेत्र तीर्थ, विष्णोपादोदक तीर्थ, श्वतेद्वीप तीर्थ, ताक्ष्य केशव तीर्थ, संख माधव तीर्थ, दशाश्वमेघ तीर्थ, पिशाच मोचन तीर्थ, चतुर्मुख कूप, नैमिषारण्य तीर्थ, विजय तीर्थ, उर्द्ध रेवा तीर्थ, अवंती तीर्थ, चंद्र तीर्थ, पापक्षय तीर्थ, चुर्त सागर तीर्थ, पंचाग्नि कूप, अशोक कूप, यम तीर्थ, मणिकार्णिका तीर्थ (मनोकामना), महिष्मति तीर्थ, ऋण मोचन तीर्थ, पाप मोचन तीर्थ, कालोदक तीर्थ, सोम तीर्थ, गोतीर्थ, अंगारक तीर्थ, चक्र सुदर्शन तीर्थ, रत्न प्रयाग तीर्थ, वासुकी प्रयाग तीर्थ, क्षेमक प्रयास तीर्थ, गन्धर्म प्रयाग तीर्थ, तारक प्रयाग तीर्थ, महामृत्युंजय तीर्थ, पुष्कर तीर्थ (ज्येष्ठ व कनिष्ठ), मध्य पुष्कर तीर्थ, ब्रह्मावर्त तीर्थ, नर्मदा तीर्थ, धर्म कूप, विमला तीर्थ (भविष्य गंगा), सर गोदावरी तीर्थ, वाग्भारती तीर्थ, रसोदक कूप, रेवा तीर्थ, गोपाल तीर्थ, आनन्दसर तीर्थ, चक्र तीर्थ, रत्नयुग्म तीर्थ, भागीरथी तीर्थ, त्रिसंध्या तीर्थ, मलहानि तीर्थ कूप, आदिगया तीर्थ, यज्ञ कूप, ऋषिकेश महाकूप, पारासारेश्वर कूप, अकर्ममोचन तीर्थ कूप, विमल कूप, मृत्यु कूप, यमदग्नि कूप, विष्णु कूप, सोनक कूप, कृष्ण कूप, सप्तसागर कूप, धरणी व राह कूप, वंशगोपाल तीर्थ, पुष्दम तीर्थ, कर्ममोचन तीर्थ, स्वर्गद्वीप तीर्थ, मत्स्योदरी तीर्थ, अनन्तेश्वर तीर्थ, अत्रिकाश्रम तीर्थ, देव तीर्थ और विष्णु तीर्थ का वर्णन हैं, लेकिन वास्तविक रूप में गिने-चुने तीर्थ ही बचे हैं।
पृथ्वीराज चौहान से आल्हा-ऊदल तक
किसी दौर में संभल राजा पृथ्वीराज चौहान की राजधानी रही है। यहां डाकखाना रोड पर दीवार पर टंगा चक्की का पाट भी है। कहते हैं कि आला-ऊदल में से किसी ने इस चक्की के पाट को दीवार पर कला करते हुए टांगा था। पहली बार में कील ठोकी और दूसरी बार में चक्की का पाट टांगा। इसीलिए आज भी सम्भल में नट खेल नहीं दिखाया करते।
इसी के साथ तोता-मैना की कब्र, चोरों का कुआं, फिरोजपुर और सौंधन का किला भी ऐतिहासिक है। कुल साल पहले तक शहर के चारों मार्गो पर विशाल गेट भी हुआ करते थे। यह सुरक्षा चौकियां हुआ करती थीं लेकिन अब इनका भी अता-पता नहीं है।
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