मां ही नहीं पिता भी दे सकते हैं नवजात को कंगारू मदर केयर

समय से पहले बच्चे का जन्म हुआ हो (प्री-टर्म बर्थ), जन्म के वक्त कम वजन हो (लो बर्थ वेट) या हाइपोग्लेसिमिया से बचाव हेतु चिकित्सक मां के स्पर्श को औषधि के रूप में उपयोग करते हैं। इसे कंगारू मदर केयर कहा जाता है। लेकिन जब मां ही कठिन परिस्थिति में हो तो पिता भी केएमसी दे सकते हैं।

Nov 20, 2024 - 16:12
Nov 20, 2024 - 16:21
 0  69
मां ही नहीं पिता भी दे सकते हैं नवजात को कंगारू मदर केयर


आगरा।समय से पहले बच्चे का जन्म हुआ हो (प्री-टर्म बर्थ), जन्म के वक्त कम वजन हो (लो बर्थ वेट) या हाइपोग्लेसिमिया से बचाव हेतु  चिकित्सक मां के स्पर्श को औषधि के रूप में उपयोग करते हैं। इसे कंगारू मदर केयर कहा जाता है। लेकिन जब मां ही कठिन परिस्थिति में हो तो पिता भी केएमसी दे सकते हैं। 


जिला महिला चिकित्सालय (लेडी लॉयल) स्थित केएमसी यूनिट में वर्ष 2024 में अब तक 896  से ज्यादा बच्चों को केएमसी के जरिए स्वस्थ किया गया है। इनमें से 25 बच्चों को उनके पिता, ताऊ, चाचा इत्यादि ने केएमसी दिया है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि कंगारू मदर केयर एक नर्सिंग तकनीक है, विशेष रूप से समय से पहले जन्मे शिशुओं सहित विभिन्न परिस्थितियों में नवजात की जान बचाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। 


जिला महिला चिकित्सालय में अलग से केएमसी यूनिट बनाई गई है, जहां पर नवजात को केएमसी दी जाती है और इसका प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस प्रक्रिया में नवजात को उसकी मां के साथ सीधे त्वचा से त्वचा संपर्क में रखा जाता है, जिससे शारीरिक और भावनात्मक समर्थन मिलता है। यह तकनीक शिशु के स्वास्थ्य और विकास को बढ़ाने में मदद करती है। जब मां कठिन परिस्थिति में होती हैं तो पिता भी इसे दे सकते हैं।

जिला महिला चिकित्सालय (लेडी लॉयल) की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. खुशबू केसरवानी बताती हैं कि जिला महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले औसतन 15 से 18 प्रतिशत बच्चे कम वजन के होते हैं। इन्हें केएमसी यूनिट में रखा जाता है। कंगारू मदर केयर ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिये, बच्चों के वजन को बढाया जा सकता है, साथ ही यह शरीर का तापमान व श्वास प्रक्रिया को स्थिर रखने में सहायक होता है। इसमें मां बच्चे को अपने से इस तरह से चिपकाकर रखती हैं जैसे कंगारू अपने बच्चे को अपने शरीर से चिपकाकर रखता है।

 केएमसी में मां बच्चों को कम से कम छह से आठ घंटे तक अपनी त्वचा से लगाकर रखती हैं और धीरे धीरे इस समय को बढ़ाना होता है। इससे बच्चे और मां का जुड़ाव बढ़ता है। बच्चा मां की खुशबू को पहचानने लगता है। मां बच्चे की धड़कन को पहचानने लगती है। इससे मां को दूध भी आने लगता है। इससे छह माह तक केवल स्तनपान भी सुनिश्चित होता है। 

उन्होंने बताया कि जब बच्चे का वजन ढाई किलोग्राम हो जाता है तो बच्चा वातावरण में सर्वाइव करने लायक हो जाता है। कई बार मां की तबियत खराब हो या वो नवजात को केएमसी न देने की स्थिति में हो तो पिता या परिवार का कोई और सदस्य भी नवजात को केएमसी दे सकता है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow