मोदी जी, सीखो जी!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नौकरशाही को सीमित करने की पहल से प्रेरणा लेनी चाहिए। सरकार के आकार और भूमिका में कटौती होनी चाहिए और प्राइवेट सेक्टर के दायरे का विस्तार हो।

-बृज खंडेलवाल-
भारत की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के रास्ते में एक बड़ी रुकावट है- एक अकुशल और फूली हुई नौकरशाही, जिसका आकार और प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हालांकि मोदी सरकार ने कई सुधारों की पहल की है, लेकिन शासन को और अधिक सुव्यवस्थित करने और देश की क्षमता को पूरी तरह से उजागर करने के लिए एक कट्टरपंथी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस मामले में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में किए गए सुधारों से भारत को काफी कुछ सीखने को मिल सकता है।
ट्रम्प के कार्यकाल में अनेकों विवाद हुए हैं, लेकिन उनकी नीतियों में एक बात साफ थी, सरकारी मशीनरी को छोटा करने और निजी क्षेत्र को सशक्त बनाने का उनका साहसिक प्रयास। भारत के लिए यह एक मूल्यवान खाका हो सकता है। ट्रम्प ने नौकरशाही की "चर्बी" को कम करने और सरकार के आकार को सीमित करने पर जोर दिया है, जो भारत जैसे देश के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है।
नौकरशाही: एक विशाल डायनासोर
पब्लिक कॉमेंटेटर प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि भारत की नौकरशाही, जो औपनिवेशिक काल की विरासत और राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है, आज एक विशाल डायनासोर की तरह बन गई है। यह संसाधनों को बर्बाद कर रही है, लेकिन उसके बदले में कोई उचित प्रतिफल नहीं दे रही है। कई मंत्रालय और विभाग ऐसे हैं जिनके कार्य और भूमिकाएं एक-दूसरे से ओवरलैप होती हैं। यह न केवल धन की बर्बादी है, बल्कि यह चुस्त और प्रभावी शासन में भी बाधा डालता है।
"मोदी सरकार को इस मामले में अधिक निर्मम दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अनावश्यक विभागों और भूमिकाओं की पहचान करके उन्हें समाप्त करना होगा। ट्रम्प ने अमेरिका में ऐसा ही किया है। उन्होंने कई अनावश्यक एजेंसियों को बंद कर दिया और सरकारी खर्च में कटौती की है। भारत को भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए।"
ट्रम्प के कार्यकाल में किए गए सुधारों में से एक महत्वपूर्ण पहल थी—10-से-1 पहल। इसके तहत, हर नए विनियमन को लागू करने से पहले दस पुराने विनियमन को समाप्त करना अनिवार्य था। इसका उद्देश्य लालफीताशाही को कम करना और व्यापार के अनुकूल माहौल बनाना था। भारत को भी ऐसी ही रणनीति अपनानी चाहिए। नवाचार और आर्थिक विकास को बाधित करने वाले अनावश्यक नियमों की व्यवस्थित समीक्षा करके उन्हें समाप्त करना होगा।
इसके अलावा, ट्रम्प ने संघीय कार्यबल को कम करने पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने भर्ती पर रोक लगाई और स्वाभाविक रूप से कर्मचारियों की संख्या को कम करने की नीतियां लागू कीं। भारत को भी इसी तरह के उपायों पर विचार करना चाहिए। सरकारी पदों का विकेंद्रीकरण करके दिल्ली में सत्ता के संकेंद्रण को कम किया जा सकता है।
बेंगलुरू की सोशल एक्टिविस्ट मुक्ता कहती हैं "सरकारी नौकरशाही के बोझ को कम करने का एक और तरीका है निजी क्षेत्र को सशक्त बनाना। ट्रम्प ने निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर सरकारी संसाधनों पर निर्भरता को कम किया। भारत को भी इसी रास्ते पर चलना चाहिए। मोदी सरकार को बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में निजी खिलाड़ियों के साथ साझेदारी बढ़ानी चाहिए।"
उदाहरण के तौर पर, स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में निजी अस्पतालों और क्लीनिकों को प्रोत्साहित करके सरकारी अस्पतालों पर बोझ को कम किया जा सकता है। इसी तरह, शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों को बढ़ावा देकर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।
समाज शास्त्री टीएन सुब्रमनियन कहते है "भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभांश का एक बड़ा अवसर है, लेकिन यह अवसर एक फूली हुई और अक्षम नौकरशाही के कारण बर्बाद हो रहा है। नौकरशाही की "चर्बी" को कम करने और निजी क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए ट्रम्प के साहसिक दृष्टिकोण से प्रेरणा लेकर, मोदी सरकार भारत की वास्तविक क्षमता को उजागर कर सकती है।"
यह अंधी नकल के बारे में नहीं है, बल्कि एक ऐसे नेता से सीखने के बारे में है जिसने जड़ता पर कार्रवाई को प्राथमिकता दी। ट्रम्प ने राजनीतिक सुविधा के बजाय दक्षता को चुना और यही भारत के लिए भी आवश्यक है। हुकूमत का बोझ कम करना और निजी सेक्टर को ताकत देना ही असली हल है।
भारत की नौकरशाही को सुधारने और सरकार के आकार को कम करने की दिशा में मोदी सरकार को ट्रम्प के दृष्टिकोण से सीख लेनी चाहिए, व्यवसाई राजीव गुप्ता कहते हैं।
सिर्फ रोजगार देने के लिए लोगों की बेमतलब भर्ती करने से सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है और करप्शन की गुंजाइश भी बढ़ती है। जहां एक की जरूरत है वहां दस लोग भर्ती कर रखे हैं। हां, कुछ क्षेत्र हैं जहां निश्चित तौर पर कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, जैसे सफाई विभाग, पुलिस सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र। लेकिन अधिकांश लोगों का रुझान प्रशासनीय पदों पर काबिज होने का रहता है। ये मनोवृति बदलनी चाहिए।
बेशक, अनावश्यक विभागों को समाप्त करना, निजी क्षेत्र को सशक्त बनाना और लालफीताशाही को कम करना, ये कदम भारत को एक समृद्ध और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने में मदद कर सकते हैं। यह समय की मांग है कि हम जड़ता को तोड़ें और देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं।