मंगल गाडिया और सैयद हुसैन जिन्होंने 15 अक्टूबर 1857 को मुंबई में दिया था बलिदान
1857 के स्वातंत्र्य समर को भले ही अंग्रेज या उनके चाटुकार इतिहासकार कुछ भी नाम दें, पर इसमें संदेह नहीं कि वह सम्पूर्ण देश को आप्लावित करने वाला स्वयंस्फूर्त समर था। मुम्बई में भी उस समय अनेक क्रान्तिकारी हुए, जिनमें से मंगल गाडिया एवं सैयद हुसैन को 15 अक्तूबर, 1857 को तोप से उड़ाकर अंग्रेजों ने अपने मुँह पर कालिख पोती थी।
मुम्बई में आधुनिक शिक्षा का प्रणेता मान कर जिसके गुण गाये जाते हैं, वह लार्ड माउण्ट स्टुअर्ट एलफिंस्टन उन दिनों मुम्बई में ही गवर्नर था। 1853 में ब्रिटिश संसद ने विधेयक पारित किया कि भारत को ईसा के झण्डे के नीचे लाना है। अंग्रेज अधिकारियों को इसके लिए गुप्त निर्देश भी दिये गये। अतः वे सब अपने सरकारी काम के साथ इस ओर भी प्रयास करने लगे।
इन अधिकारियों के प्रयास से मुम्बई में 1856 में धर्मान्तरण की गतिविधियाँ जोर पकड़ने लगीं। अनेक हिन्दू, मुस्लिम तथा पारसी युवकों को जबरन ईसाई बना लिया गया। इससे पूरे शहर में हलचल मच गयी। इन समुदायों के प्रभावी लोगों ने मुम्बई के नाना जगन्नाथ शंकर सेठ को इसकी शिकायत की। नाना का अंग्रेज अधिकारियों के बीच भी उठना-बैठना था। यों वह प्रखर देशभक्त थे और अंग्रेजों को देश से बाहर देखना चाहते थे।
नाना ने हजारों लोगों से इस विषय में हस्ताक्षर संग्रह किये और गर्वनर एलफिंस्टन को दिये, पर उसकी योजना से तो सब हो ही रहा था। अतः उसने ज्ञापन लेकर रख लिया। 10 मई को जब मेरठ में भारतीय वीर सैनिकों ने क्रान्ति का सूत्रपात किया, तो एलफिंस्टन ने भावी खतरे को भांपते हुए छावनी से 400 सैनिकों को मुम्बई बुला लिया। उसे सन्देह था कि नाना भी क्रान्तिकारियों से मिला हुआ है, अतः उसने मुम्बई के पुलिस कमिश्नर चार्ल्स फोरजेट को नाना की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा।
इधर नाना साहब पेशवा भी देश से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के प्रयास में लगे थे। इसके लिए 31 मई की तिथि निर्धारित हुई थी, पर उससे पूर्व क्रान्ति का वातावरण बनाने के लिए साधु, सन्त, ज्योतिषी और कीर्तनकार के रूप में देश भर में उनके लोग घूम रहे थे। ऐसे जो लोग मुम्बई आते थे, वे नाना की ताड़देव स्थित धर्मशाला में ही ठहरते थे। इसी प्रकार मुम्बई में नाखुदा मोहम्मद रोगे नामक एक देशभक्त मुसलमान था। वह ऐसे लोगों को सहर्ष अपने घर में टिका लेता था।
पर देशप्रेमियों के साथ ही देशद्रोहियों की भी भारत में कभी कमी नहीं रही। इन सब गतिविधियों की सूचनाएं एलफिंस्टन को भी मिल रही थीं। एक बार मुखबिर की सूचना पर उसने इन दोनों स्थानों पर छापा मारा और अनेक क्रान्तिवीरों को पकड़ लिया। मुकदमा चलाकर उनमें से दो को मृत्युदंड और छह को आजीवन कारावास की सजा दी गयी।
एलफिंस्टन ने इन दोनों को सार्वजनिक रूप से मृत्युदंड देने का निर्णय लिया, जिससे पूरे नगर में भय एवं आतंक का वातावरण बने। इसके लिए एस्तालेनेड कैम्प (वर्तमान आजाद मैदान) में दो तोपें लगायी गयीं। शाम को 4.30 बजे अंग्रेज अधिकारी कैप्टेन माइल्स के निर्देश पर तोपें दाग दी गयीं। अगले ही क्षण भारत माँ के वीर सपूत मंगल गाडिया और सैयद हुसैन चिथड़े होकर भारत माँ की गोदी में सदा के लिए सो गये।
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