महाराष्ट्र सरकार के सारे कामकाज रोके गए
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की कि रतन टाटा का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के सारे कामकाज रोक दिए हैं। इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उनके अंतिम संस्कार के मौके पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे। रतन टाटा को श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों की संख्या प्रमुख व्यक्ति पहुंच रहे हैं।
कोई यूं ही रतन टाटा नहीं हो जाता
कोई यूं ही रतन टाटा नहीं हो जाता है। 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के वक्त उन्होंने जो कुछ किया, उसे देख-समझ कर तो ऐसा ही लगता है। इससे पता चलता है कि रतन टाटा अलग ही मिट्टी के बने थे। होटल ताज में आतंकियों की गोलियां तड़तड़ा रही थीं और उसी तड़तड़ाहट के बीच न सिर्फ टाटा वहां पहुंच गए बल्कि डटे रहे। आतंकी हमले के पीड़ितों की मदद के लिए जो किया, उसकी सदियों तक मिसालें दी जाएंगी।
होटल ताज नस्लभेद के विरोध में बनवाया गया था
वर्ष 2008 में देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाली मुंबई पर पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने हमला कर दिया। तीन दिनों तक आतंकियों ने जहां-जहां तांडव किया, उनमें से एक था मशहूर ताज होटल। वही जिसे 1903 में रतन टाटा के दादा जमशेद जी टाटा ने इसलिए बनवाया था कि नस्लभेद की वजह से उन्हें मुंबई के वाटसंस नाम के एक होटल में जाने से रोक दिया गया था। उनसे कहा गया था कि कुत्तों और भारतीयों को वाटसंस होटल में जाने की इजाजत नहीं है। इससे उनके सम्मान को ठेस पहुंची। वह काफी स्वाभिमानी व्यक्ति थे और उन्होंने वाटसंस होटल से कहीं बेहतरीन होटल बनवाया। मुंबई हमले के दौरान सबसे आखिर में जिस जगह पर आतंकियों का सफाया हुआ, वह था ताज होटल।
गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच होटल में डटे रहे रतन टाटा
रतन टाटा को जैसे ही ताज होटल पर हमले की जानकारी मिली, वह आतंकियों की गोलीबारी की परवाह किए बिना तुरंत वहां पहुंच गए। होटल गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्रा रहा था और उसी बीच वह वहां पहुंच गए। सिर्फ पहुंचे ही नहीं, तीन दिन और तीन रात तक वहां डटे रहे। उस वक्त होटल में स्टाफ के अलावा करीब 300 गेस्ट थे। उन्होंने ये सुनिश्चित करने की भरपूर कोशिश की कि सभी सुरक्षित रहे।
होटल के पीड़ितों की हर संभव मदद की थी
मुंबई आतंकी हमले के बाद ताज होटल के पीड़ितों के लिए टाटा ने जो किया, वह सिर्फ वही कर सकते थे। सिर्फ ताज होटल पर हमले में मारे या घायल हुए पीड़ित ही नहीं, बल्कि कई दूसरे पीड़ितों और उनके परिजनों की मदद सुनिश्चित की। रतन टाटा होटल के 80 कर्मचारियों के परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिले जो या तो मारे गए थे या जख्मी हुए थे। ऐसे कर्मचारी जिनके परिजन मुंबई से बाहर रहते थे, उन्हें टाटा ने मुंबई बुलवाया और ध्यान रखा कि उनका मेंटल हेल्थ प्रभावित न हो। उन सभी को होटल प्रेसिडेंट में तीन हफ्तों तक ठहराया गया।
कर्मचारियों की राहत के लिए बनवाया था ट्रस्ट
सिर्फ 20 दिनों के भीतर टाटा की तरफ से एक नया ट्रस्ट बनाया गया जिसका मकसद कर्मचारियों को राहत पहुंचाना था। रतन टाटा ने आतंकी हमले के पीड़ितों के 46 बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी ली। मारे गए हर कर्मचारी के परिवार को 36 लाख से लेकर 85 लाख रुपये तक का मुआवजा सुनिश्चित किया। इतना ही नहीं, मारे गए कर्मचारियों के परिवारों के एक-एक सदस्य को आजीवन हर महीने उतने पैसे देने की व्यवस्था की जितनी कि कर्मचारी की लास्ट सैलरी थी।
अन्य लोगों को भी दिया था मुआवजा
सिर्फ ताज होटल के कर्मचारियों की नहीं बल्कि आतंकी हमले के पीड़ित रेलवे कर्मचारियों, पुलिस स्टाफ, वहां से गुजर रहे राहगीरों जैसे दूसरे लोगों को भी मुआवजा दिया। इनमें से सभी को 6 महीने तक 10 हजार रुपये महीने की मदद दी गई।
आतंकी हमले में घायल बच्ची का पूरा इलाज करवाया
आतंकी हमले के दौरान पास में एक रेहड़ी-पटरी वाले बुजुर्ग की 4 साल की बेटी को 4 गोलियां लगी थीं। बच्ची जख्मी थी लेकिन परिवार के पास इलाज का पैसा नहीं था। अस्पताल में बच्ची के शरीर से सिर्फ एक गोली ही निकल पाई थी। रतन टाटा ने सुनिश्चित किया कि बच्ची पूरी तरह स्वस्थ हो चाहे जितना पैसा लग जाए। टाटा ग्रुप ने बच्ची को बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया और उसके इलाज पर लाखों रुपये खर्च किए। बच्ची पूरी तरह स्वस्थ हुई।
युवाओं के लिए भी किए थे अहम काम
उद्योग जगत में बड़े कीर्तिमान बनाने के साथ ही रतन टाटा ने युवाओं के लिए भी अहम काम किए। ये सभी कार्यक्रम टाटा ट्रस्ट के तहत हुए, जिसकी स्थापना टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी नुसरवानजी ने 1892 में की थी। युवाओं के लिए रखे गए इन कार्यक्रमों में भारतीय छात्रों को विदेशों में मास्टर्स, पीएचडी और पोस्टडॉक्टरल फेलोशिप के लिए स्कॉलरशिप से लेकर स्पेक्ट्रम ग्रांट्स तक शामिल हैं।
जेएन टाटा एंडोमेंट स्कॉलरशिप
विदेश जाकर पढ़ने वाले छात्रों के लिए 'जेएन टाटा एंडोमेंट स्कॉलरशिप' के जरिए आर्थिक मदद दी जाती है। किसी भी विषय में पढ़ाई के लिए यह लोन स्कॉलरशिप सिर्फ योग्यता के आधार पर दी जाती है और इसका मकसद 'प्रतिभाशाली युवाओं' को आगे बढ़ाना है। यह लोन अधिकतम 10 लाख रुपये तक का होता है, जिसे सात साल के अंदर चुकाना होता है। इस लोन की रकम तीसरे साल के अंत से 5 बराबर किस्तों में ली जाती है।
पूर्व राष्ट्रपति नारायणन भी टाटा के स्कालर थे
जेएन टाटा के कई स्कॉलर न सिर्फ नामी संस्थानों में रिसर्च कर रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों में लीडरशिप की भूमिका भी निभा रहे हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन, जाने-माने खगोल विज्ञानी जयंत नार्लीकर और टाइटन के संस्थापक जेरक्सेस देसाई जेएन टाटा स्कॉलर रह चुके हैं।
What's Your Reaction?