रतन टाटा का गैर पारसी रीति से किया जाएगा अंतिम संस्कार
देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली श्मशान घाट में किया जाएगा, जहां पारसी समुदाय का प्रेयर हॉल है। यहां उनका दाह संस्कार गैर पारसी रीति से किया जाएगा।
मुंबई। वर्ली श्मशान में पारसी-जोरास्ट्रियन समुदाय के ऐसे लोगों का अंतिम संस्कार होता है, जिनके परिजन मालाबार हिल्स स्थित टॉवर ऑफ साइलेंस यानी दखमा में पारंपरिक रीति दोखमेनाशिनी के लिए शवों को गिद्धों के लिए नहीं रखते हैं। 2022 में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का भी वर्ली के श्मशान घाट में दाह संस्कार किया गया था। तब उनका दाह संस्कार भी सुर्खियों में रहा था। हालांकि टाटा समूह के चेयरमैन रहे जेआरडी टाटा को भी पेरिस के पेरे लाचेज कब्रिस्तान में दफनाया गया था।
80 के दशक में हुई पारसी परंपरा को बदलने की शुरुआत
मुंबई समेत पूरे देश में जब गिद्धों की तादाद कम हो गई तो डूंगरवाड़ी के दखमा में महीनों तक शव सड़ते रहते थे। फिर पारसी समुदाय के बीच अंतिम संस्कार के परंपरागत तरीके बदलने पर बहस शुरू हुई थी। मुंबई की प्रतिष्ठित पारसी परिवारों ने डिस्पोजल ऑफ डेड विद डिग्निटी यानी सम्मान के साथ संस्कार का अभियान चलाया। इस अभियान में तत्कालीन बंबई के नगर आयुक्त जमशेद कांगा भी शामिल हुए। इस समूह ने अंतिम संस्कार के लिए टावर ऑफ साइलेंस के बजाय वैकल्पिक व्यवस्था पर जोर दिया। इन लोगों ने साइलेंस ऑफ टावर के 50 एकड़ वाले इलाके में दफनाने के लिए जमीन मांगी। बॉम्बे पारसी पंचायत (बीपीपी) ने इसका विरोध किया। मगर 80 के दशक में बदलाव की शुरुआत हो गई।
जेआरडी ने सबसे पहले की थी श्मशान घाट की मांग
80 के दशक में एक मौका ऐसा आया, जब टाटा समूह के चेयरमैन जेआरडी टाटा ने चाहे-अनचाहे दखल दी। उनके भाई डीआरडी टाटा का निधन हो गया, तब उन्होंने अंतिम संस्कार के लिए बॉम्बे के नगर आयुक्त जमशेद कांगा को फोन किया। वह अपने भाई को दखमा में नहीं रखना चाहते थे। उन्होंने कांगा से अंतिम संस्कार के लिए ऐसे श्मशान घाट की डिमांड रखी, जहां अंतिम विदाई देने के लिए गणमान्य लोग पहुंच सकें। नगर निगम ने कई जगहों पर चर्चा की, अंत में दादर के श्मशान घाट को दाह संस्कार के लिए चुना गया। इसके बाद नगर निगम ने पारसी रीति से इतर तरीके से अंतिम संस्कार करने वालों के लिए प्रेयर हॉल बनाने का फैसला किया। दो दशक तक इस पर काफी वाद-विवाद होता रहा। गैर पारसी तरीके को अपनाने वालों को प्रेयर मीट के लिए जगह नहीं दी गई।
वाडिया ने श्मशान के साथ प्रेयर हाल बनाने के लिए दिया था अनुदान
2013 में वर्ली में श्मशान के साथ प्रेयर हॉल बनाने की शुरुआत हुई। एएच वाडिया ट्रस्ट ने डेढ़ करोड़ रुपये का अनुदान दिया। प्रार्थना हॉल में धार्मिक सेवाओं के प्रभारी जोरास्ट्रियन नियुक्त किए गए। मुंबई के वर्ली श्मशान को 2015 में खोला गया था। शुरुआत में यहां कम ही लोग अपने परिजनों के प्रेयर मीट के लिए आए। बताया जाता है कि मुंबई में हर साल पारसी समुदाय के 650 से 700 लोगों की मौत होती है। उनमें से 10 फीसदी ही शव का दाह संस्कार करते हैं। अब इसकी तादाद बढ़ रही है। इसके बनने के बाद एक बदलाव और आया है। दाह संस्कार का विकल्प चुनने वाले परिवारों को प्रेयर हॉल और अंतिम संस्कार के रस्मों के लिए पुजारी आसानी से मिल जाते हैं।
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