आत्मा का ज्ञान ही है वास्तविक मुक्तिः अतुल कृष्ण
− कथा के अंतिम दिन ब्रज की फूलों की होली से बरसा भक्तिमय आनंद, गुरुवार को हवन संग होगा समापन
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आगरा। मित्रता की परिभाषा यदि कहीं देखनी है तो श्रीकृष्ण−सुदामा की मित्रता को देखें। करुणा, प्रेम और अपनत्व की पराकाष्ठा है श्रीमद् भागवत के इस कथा प्रसंग में। कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज ने जब श्रीमद् भागवत कथा आयोजन के सातवें दिन सुदाम चरित्र का वर्णन किया तो हर नेत्र सजल हो गया।
डिफेंस एस्टेट फेस−1 स्थित श्रीराम पार्क में राजेंद्र प्रसाद गोयल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन श्रीकृष्ण विवाह, सुदामा चरित्र एवं शुकदेव विदाई कथा का वर्णन हुआ।
मुख्य यजमान सुनील एवं श्वेता गोयल ने व्यास पूजन किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हरिशंकर शर्मा, प्रमोद चौहान, डीजीसी क्राइम एडवोकेट वसंत गुप्ता ने आरती उतारी।
कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान श्रृदालुओं के समक्ष भामासुर के विषय में कथा प्रारम्भ करते हुए बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने भामासुर राक्षस द्वारा अपहृत की गईं सोलह हजार एक सौ कन्याओं को युद्ध करके छुड़ाया। समाज द्वारा उनका तिरस्कार ना हो, इसीलिए स्वयं भगवान ने उनसे विवाह किया। भगवान श्री कृष्ण से बड़ा दयालु ओर कौन होगा, जिनको दुनिया वाले त्याग देते हैं, उसको स्वयं भगवान की शरण में जाना चाहिए। भगवान स्वयं उसका वरण कर लेते हैं।
कथा व्यास ने कहा कि सुदामा ब्राह्मण थे परन्तु दरिद्र नहीं। जीवन में गरीबी होना अलग बात है, दरिद्र होना अलग बात है। कोई धनवान भी दरिद्र हो सकता है। ब्राह्मण दान लेने का अधिकारी तो है, परन्तु भीख मांगने का नहीं। गरीबी होने पर सुदामा जी भीख नहीं मांगते। पूजा-पाठ एवं कथा में जो आ जाए उसी को भगवत कृपा मानकर स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन प्रसन्न रहते हैं। सुदामा संतोषी हैं। वह भगवान श्रीकृष्ण से मिलने गए और श्री कृष्ण ने उन्हें सिंहासन पर बैठाया। चरणों में बैठ गए भगवान, खूब रोए। ये स्वागत ब्राहम्ण का है, किसी दरिद्र का नहीं। समाज को सुदामा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि गरीबी हो या अमीरी, भगवान का प्रसाद समझकर जीवन जीना चाहिए।
कथा व्यास ने कहा कि दत्तात्रेय के 24 गुरू थे, उनका वर्णन करके बहुत ही सरल ढंग से समझाया कि छोटे-छोटे जीव का सम्मान करके उसमें परमात्मा का दर्शन करें। प्रत्येक पशु-पक्षी भी जीवन में मार्गदर्शक हो सकते हैं, उनसे सीख लेनी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण का परिवार बहुत बड़ा हो गया, उनके आग्रह पर पितृ आत्मा की शान्ति के लिए पूरा परिवार पितर-तर्पण हेतु सोमनाथ गया, जहां तर्पण पश्चात भोग प्रसादी के समय परिवार के सदस्यों ने मदिरापान किया। भगवान श्री कृष्ण के बहुत मना करने पर भी नहीं माने और फिर नशे में आपस में लड बैठे। देखते ही देखते भंयकर युद्ध होने लगा, परिणाम स्वरूप पूरा परिवार नष्ट हो गया।
अंत में परिक्षित के मोक्ष का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से किया। मृत्यु उसे कहते हैं, जब शरीर शान्त हो जाए। मुक्ति, माया क्या है-भ्रम, जो दिख रहा है, वह सत्य लगता है, यह भी भ्रम है, शरीर सब कुछ है, यह भी भ्रम है। नष्ट होने वाली वस्तुएं शास्वत हैं, यह भी भ्रम है, मकान, जायदाद, मेरा, तेरा भ्रम है, रिश्ते-नाते सत्य हैं, यह भी भ्रम है। यही तो माया है, मैं मेरा, तू तेरा। जो व्यक्ति इससे अलग होकर स्वयं को देखता है, उसका भ्रम तो मिटना है, लेकिन वह सत्य के नजदीक पहुंच जाता है और सत्य वह है, जो भगवान कह रहे हैं, जो मुझसें अलग है. मुझसे भिन्न है, वही माया है और जो मुझमें रमा है, मुझसे जुड़ा है, वो मेरा है।
कथा के समापन पर बृज के कलाकारों ने फूलों की होली की मनमोहक प्रस्तुति जब दी तो उपस्थित श्रद्धालु झूम उठे।
पंकज बंसल ने बताया कि गुरुवार को प्रातः हवन, कन्या पूजन एवं दोपहर 12 बजे से प्रसादी का आयोजन होगा। कथा में दीपक गोयल, तनु गोयल, रवि गोयल, आरती गोयल, मनमोहन गोयल, पवन गोयन, भगवान दास बंसल, विष्णु दयाल बंसल, कल्याण प्रसाद मंगल, राजेश मित्तल आदि उपस्थित रहे।