जाने कैसे मां-बाप हैं निशांत के, अपाहिज बेटे को आठ साल से त्यागा, अस्पताल ने अपनाया
जानवर तक अपने बच्चे को नहीं त्यागते। जाने कैसे मां-बाप थे अभागे निशात के जो उसे अस्पताल में दाखिल कराकर चले गए। और आठ साल से देखने तक नहीं आए। इन आठ सालों में उसकी देखभाल अस्पताल ने ही की। उसकी मौत भी निर्दयी मां बाप का कलेजा न चीर सकी।
बरेली। मां जीवन का संबल होती है और पिता जीवन का हौसला। मां जीवन का सार होती है। पिता जीने की हिम्मत। मां के लिए बहुत से कवियों और शायरों ने लिखा है। मशहूर शायर निदा फाजली का शेर है
" मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार,
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार"।
वहीं मां-बाप दोनों के लिए शायर सरफराज नवाज ने कहा है, " बाप जीना है जो ले जाता है ऊंचाई तक,
मां दुआ है जो सदा साया-फिगन रहती है"।
पता नहीं बरेली के यह कैसे मां-बाप थे, जिन्होंने तमाम शायरों, कवियों, मान्यताओं, परंपराओं को झुठलाते हुए आठ साल पहले अपने बीमार बेटे को अस्पताल में भर्ती कराकर त्याग दिया। उसकी शक्ल तक देखने नहीं आए।
शुक्रवार को जब अस्पताल में उसका निधन हो गया। यह खबर भी उनके कलेजे को न दहला सकी। अपने बेटे का आखिरी बार चेहरा तक देखने और अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी तक निभाने मां-बाप नहीं आए। अस्पताल प्रशासन ने उसके अंतिम संस्कार के लिए पुलिस व प्रशासन से निर्देश की मांग की है।
बरेली के मिनी बाइपास स्थित अवधधाम कालोनी निवासी कांताप्रसाद ने अपने 15 वर्षीय बेटे निशांत को एसआरएमएस मेडिकल कालेज में भर्ती कराया था। गुलियन बैरे सिंड्रोम से पीड़ित इस बालक को अस्पताल में छोड़कर मां-बाप चले गए।
अस्पताल ने पुलिस प्रशासन को अवगत कराया। अखबारों मे प्रकाशित कराया लेकिन निशांत को देखने ना मां-बाप नाहीं कोई रिश्तेदार आए। अस्पताल प्रशासन ही आठ साल से उसके इलाज और देखभाल की जिम्मेदारी निभा रहा था।
पूरे नर्सिंग स्टाफ का लाड़ला था निशांत। दो दिन पहले उसे कार्डियक अरेस्ट हुआ। अस्पताल ने पूरे प्रोटोकाल का पालन किया किंतु उसकी जान नहीं बचायी जा सकी।
बता दें कि गुलियन बैरे सिंड्रोम एक लाइलाज बीमारी है। इससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर में दर्द होता है।धीरे-धीरे शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है। रोगी को सर्दी गर्मी और दूसरी अनुभूतियां नहीं होतीं। तंत्रिकातंत्र प्रभावित होता है।
धन्य है उस अस्पताल का प्रशासन और उसका स्टाफ जिसने पिछले आठ साल से निशांत की देखभाल अपने बच्चे की तरह की।
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