केजरीवाल का कोई दांव नहीं चला, किसी गारंटी पर भी भरोसा नहीं किया हरियाणा ने
हरियाणा के चुनाव में आम आदमी पार्टी की दुर्गति के बाद यह सवाल उठने लगे हैं की क्या अरविंद केजरीवाल लोगों को पहले की तरह प्रभावित नहीं कर पा रहे। हरियाणा में केजरीवाल ने हर दांव चला। गारंटीयां भी दीं, लेकिन वहां के लोगों ने फिर भी उन्हें बुरी तरह नकार दिया।
एसपी सिंह
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का जादू क्या अब नहीं चल पा रहा? हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन के बाद ये सवाल पूछे जाने लगे हैं। पंजाब में अपनी सरकार बनाने के बाद आम आदमी पार्टी ने कई राज्यों में चुनाव लड़े हैं, लेकिन कहीं पर भी केजरीवाल करिश्मा नहीं दिखा पाए हैं। 'हरियाणा में आप के बगैर सरकार नहीं बनेगी', का ऐलान करने वाले अरविंद केजरीवाल की पार्टी इस राज्य में दो प्रतिशत वोट भी हासिल नहीं कर पाई है।
हरियाणा में आम आदमी पार्टी ने राज्य की 90 में से 88 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने हर चंद कोशिश की कि कांग्रेस से चुनावी समझौता हो जाए, लेकिन पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने आप को कोई भाव नहीं दिया। हुड्डा पर भरोसा कर कांग्रेस हाईकमान ने भी आप के साथ समझौत में कोई रुचि नहीं दिखाई थी।
शराब घोटाले में कई माह जेल में रहने के बाद अरविंद केजरीवाल को हरियाणा चुनाव के दौरान ही जमानत मिली थी। उनके जेल से बाहर आते ही आम आदमी पार्टी में भी उत्साह का संचार हो गया था। सबको लग रहा था कि हरियाणा में आप अब बड़ा उलटफेर करेगी। केजरीवाल ने हरियाणा के चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार खुद को इसी राज्य का बेटा बताते हुए भावनात्मक कार्ड खेला। मुफ्त की रेबड़ियों वाली पांच गारंटियों को लेकर भी खूब भरोसा दिलाया था।
जब हरियाणा में चुनाव के नतीजे आए तो साफ हुआ कि जो केजरीवाल खुद को हरियाणा का बेटा बता रहे थे, उन्हें उन्हीं के गृह राज्य के लोगों ने बुरी तरह नकार दिया है। केजरीवाल की पार्टी को महज 1.79 प्रतिशत ही वोट मिल पाए। यही नहीं, आम आदमी पार्टी के 88 उम्मीदवारों में से 87 की जमानत जब्त हो गई।
वैसे यह बात तो सही है कि अगर कांग्रेस और आप के बीच समझौता होने पर आम आदमी पार्टी को मिले 1.79 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिल गए होते तो शायद हरियाणा के चुनाव नतीजे और ही होते। राज्य में बहुत सी ऐसी सीटें हैं, जो बीजेपी बहुत ही कम अंतर से जीती है।
बता दें कि हरियाणा से पहले लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली की चार सीटों पर भी आप को करारी हार मिली थी। पंजाब में जरूर चार सीटें जीत लीं। इससे पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में भी आप ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी इन तीनों राज्यों में अपनी प्रभावी मौजूदगी का भी अहसास नहीं करा पाई।
हरियाणा दिल्ली से सटा हुआ राज्य है। हरियाणा में आप की दुर्गति का असर दिल्ली विधान सभा के अगले साल के शुरुआत में होने वाले चुनाव पर भी दिख सकता है। दिल्ली का इस बार का विधान सभा चुनाव निश्चित रूप से केजरीवाल के लिए बड़ी चुनौती होगा क्योंकि इसी दिल्ली राज्य में हुए कथित शराब घोटाले में उन्हें कई माह जेल में गुजारने पड़े हैं।
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