कार चलाकर आगरा पहुंचे दीपचंद्र, इस कारगिल वीर की कहानी पढ़कर रौंगटे खड़े हो जाएंगे
आगरा। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में तोप के गोले से दोनों पैर और एक हाथ गंवाने वाले हिसार के जांबाज श्री दीपचंद्र की जिंदगी बड़ी प्रेरणादायी है। उनके भीतर का योद्धा आज भी जिंदा है। वह 19 नवंबर को मथुरा होते हुए आगरा पहुंचे हैं और देशभक्ति की अलख जगा रहे हैं।
सैनिक दीपचंद्र की जिंदगी बड़ी संघर्ष पूर्ण रही है, फिर भी कभी हार नहीं मानी। वाहन निर्माता कंपनी ने उनके लिए अलग तकनीक से कार बनायी है। वह कार को सिर्फ एक हाथ से ही चलाते हैं। ब्रेक व क्लिच भी उसी हाथ से लगाते हैं। फिलहाल पुणे में रहते हैं। भारत भ्रमण पर वह 2100 किमी कार चला चुके हैं। हेलीकाप्टर चलाना भी सीख लिया है।
दिव्यांग सैनिक दीपचंद्र देशभक्ति की अलख जगाते के लिए आजकल भारत भ्रमण पर निचले हैं। युवाओं का हौसला बढ़ाते हैं। कारगिल युद्ध की दास्ताँ सुनाते हैं। उनकी जिंदगी से ऐसा लगता है मानो दिव्यांगता को वह परास्त कर चुके हों। फिलहाल उनकी जिंदगी एक प्रेरणास्रोत बन गयी है।
1999 में कारगिल में हुई जंग में हिसार के रहने वाले दीपचन्द ने पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. आज हर कोई शख्स उनकी शौर्यगाथा सुनने के लिए बेताब है. दीपचन्द बताते हैं कि कैसे हमारी सेना ने पाकिस्तान को चारों खाने चित किया था।
जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र होता है तब उन शहीदों का जिक्र बड़े गर्व के साथ होता है, जिन्होंने इस लड़ाई में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. लेकिन बहुत सारे ऐसे योद्धा आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे कर दिए थे। ऐसे ही एक वीर योद्धा हैं नायक दीपचन्द के भीतर का योद्धा आज भी जिंदा है।
कारगिल युद्ध में मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान करीब 60 दिनों तक भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ी थी। पाकिस्तान को हराकर ही हमारी सेना ने दम लिया था।
सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले नायक दीपचंद के दोनों पैर और एक हाथ नहीं हैं। कारगिल युद्ध के दौरान तोप का गोला फटने से बुरी तरह जख्मी हो गए थे। दीपचंद इस कदर जख्मी हुए थे कि उनके बचने की उम्मीद ना के बराबर थी।
उन्हें बचाने के लिए डॉक्टरों ने उनकी दोनों टांगे और एक हाथ को काट दिया था. उनका इतना खून बह गया था कि उन्हें बचाने के लिए 17 बोतल खून चढ़ाया गया। ये तब हुआ था, जब दीपचन्द और उनके साथी ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वापसी के लिए सामान बांधने की तैयारी में थे।
इस दौरान गोले के फटने से दो और सैनिक भी जख्मी हुए थे. भले ही नायक दीपचन्द के घुटने तक दोनों पैर नकली हैं, लेकिन आज भी वो एक फौजी की तरह तनकर खड़े होते हैं और दाहिने बाजू से फौजी सैल्यूट करते हैं। वह जंग के वक्त का दिलचस्प किस्सा भी सुनाते आगे
बढते जाते हैं।
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