कश्मीर के निर्दलीय प्रत्याशी कर सकते हैं बड़ा उलटफेर

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में हाफिज सिकंदर मलिक नामक एक शख्स पैदल घूम कर अपने चुनावी वादों के पर्चे बांटता है। हाफिज प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी के डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट रहे हैं। अभी जमानत पर हैं। निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। हाफिज के दाहिने पैर में एक डिवाइस लगा है। इस डिवाइस से पुलिस उनका हर मूवमेंट ट्रैक करती है। ऐसे और भी प्रत्याशी मैदान में हैं, जिन पर आतंकी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप है। जमात के ही दस उम्मीदवार चुनावी भाग्य आजमा रहे हैं।

Sep 28, 2024 - 15:37
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कश्मीर के निर्दलीय प्रत्याशी कर सकते हैं बड़ा उलटफेर

तीन तरफ पहाड़ और चौथी तरफ वुलर झील से घिरे बांदीपोरा में एक अक्टूबर को वोटिंग है। यहां की चुनावी लड़ाई दो किरदारों की वजह से खास है। एक तो हाफिज सिकंदर मलिक हैं, दूसरे हैं उस्मान मजीद। पांचवीं बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे उस्मान 90 के दशक में आतंकवादी हुआ करते थे। फिर इख्वान-उल-मुस्लिमीन नाम के संगठन में शामिल हो गए। ये संगठन कश्मीर में आतंकवाद को खत्म करने के लिए भारतीय सुरक्षाबलों और इंटेलिजेंस एजेंसियों की मदद करता था।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के तीसरे फेज में 40 सीटों पर वोटिंग होनी है। इनमें जम्मू की 24 और नॉर्थ कश्मीर की 16 सीटें हैं। नॉर्थ कश्मीर में बांदीपोरा, कुपवाड़ा, बारामुला और किश्तवाड़ जैसे जिले आते हैं। ये सभी आतंकवाद से प्रभावित रहे हैं। हाफिज सिकंदर मलिक जम्मू-कश्मीर के इकलौते कैंडिडेट हैं, जिनके पैर में जीपीएस ट्रैकर लगा है। 2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने के दौरान गिरफ्तार किए गए संदिग्ध लोगों पर नजर रखने के लिए पुलिस ने जीपीएस ट्रैकर लगाए हैं। इसके लिए बाकायदा कोर्ट ने आदेश जारी किया है।

हाफिज सिकंदर मलिक को जमात-ए-इस्लामी का सपोर्ट है। जमात पर फरवरी, 2019 से बैन लगा है। इसलिए जमात-ए-इस्लामी के सपोर्ट वाले कैंडिडेट निर्दलीय चुनाव चुनाव लड़ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में जमात ने 10 कैंडिडेट उतारे हैं।

लोकसभा चुनाव से 8-10 दिन पहले ही कोर्ट ने ट्रैकर लगाने का आदेश दिया था। इसके बाद पुलिस ने ट्रैकर लगा दिया। किसी इंसान के हर मूवमेंट पर कोई नजर रख रहा है। उसका चाल-चलन देखा जा रहा है। आवाज सुनी जा रही है। उसने कहा कि डेमोक्रेसी में ऐसा नहीं होना चाहिए। जिस एफआईआर पर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जीपीएस ट्रैकर लगाया है, उस केस में उसे अक्टूबर, 2020 में जमानत मिल गई थी।

उसने कहा कि अब तक सरकार की तरफ से मुझसे कुछ नहीं कहा गया है। ये डिवाइस कब हटेगी, ये भी नहीं पता। एक बार मैं सरकारी अफसरों के पास गया था। उनसे कहा कि इसकी वजह से पैर में दर्द हो रहा है। इसे दूसरे पैर में डलवा दीजिए। वे तो मुझ पर बरस पड़े। अब ऐसे में क्या करें।

जम्मू संभाग की जिन सीटों पर एक अक्टूबर को वोटिगं होनी है, वहां स्वाभाविक रूप से भाजपा को लोग मजबूत मान कर चल रहे हैं। हालांकि उत्तरी कश्मीर के कतिपय क्षेत्रों में निर्दलीय प्रत्याशियों के बारे में बताया जाता है कि वे भाजपा की बी टीम का हिस्सा हैं। यदि इन क्षेत्रों से निर्दलीय प्रत्याशी जीत पाते हैं तो भाजपा को सरकार बनाने में मदद कर सकते हैं। कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस को इसी बात का डर है। बहरहाल आठ अक्टूबर को आने वाले नतीजे कश्मीर के हालात बयां कर देंगे।

 

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