हरियाणा के एक और 'लाल' की तीसरी पीढ़ी आमने-सामने

एक समय तक हरियाणा की राजनीति बंसीलाल के इर्द-गिर्द घूमती थी। उन्होंने हरियाणा में तीन बार मुख्यमंत्री का पद संभाला। लेकिन आज राज्य के विधान सभा चुनाव में ऐसे हालात बन रहे हैं कि बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी एक सीट से चुनाव मैदान में आमने-सामने दिख सकती है। राजनीतिक परिवार, वारिस और विरासत के क्रम में पढ़ें खास परिवार में राजनीतिक विभाजन की कहानी...

Sep 7, 2024 - 16:47
Sep 7, 2024 - 19:32
 0  148
हरियाणा के एक और 'लाल' की तीसरी पीढ़ी आमने-सामने

-एसपी सिंह-
चंडीगढ़। हरियाणा की राजनीति में एक और बड़ा नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है। यह नाम है चौधरी बंसीलाल का। हरियाणा आज भी उन्हें विकास पुरुष के नाम से याद रखता है। चौधरी बंसीलाल हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री थे। चौधरी देवीलाल की तरह चौधरी बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही है। चौधरी देवीलाल की तरह ही चौधरी बंसीलाल का परिवार भी राजनीति के मोर्चे पर दोफाड़ हो चुका है। बंसीलाल के बड़े बेटे का परिवार जहां कांग्रेस से जुड़ा हुआ है तो दूसरे बेटे के परिवार ने हाल ही में कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा की सदस्यता ले ली है। राज्य के विधान सभा चुनाव में ऐसे हालात बन रहे हैं कि बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी एक सीट से चुनाव मैदान में आमने-सामने दिख सकती है। 

विकास पुरुष माने जाते हैं वंशीलाल

1966 में पंजाब से काटकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को अलग राज्य बनाया गया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस आलाकमान ने चौधरी बंसीलाल को हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था। वह राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री थे और चार बार मुख्यमंत्री रहे। मुख्यमंत्री बनते ही बंसीलाल ने पहली कलम से ऐसा फैसला किया कि राज्य की जनता उनकी मुरीद हो गई। उनका फैसला था कि हरियाणा के सभी गांवों में बिजली पहुंचाई जाएगी। यह वह दौर था जब गांव के लोगों के लिए बिजली सपने की तरह थी। उनका दूसरा फैसला था राज्य के हर गांव को सड़क मार्ग से जोड़ना। तीसरा फैसला किया कि हर गांव के परिक्रमा मार्ग को पक्का किया जाएगा। इन तीनों फैसलों ने लोगों के बीच बंसीलाल को बहुत लोकप्रिय बना दिया था। बंसीलाल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के बहुत विश्वासपात्र थे। हालांकि 1975 में देश में इमरजेंसी लागू होने के बाद वंशीलाल का नाम विवादों में भी घिर गया था। 

दोनों बेटों को अपने सामने ही राजनीति में ले आए थे

चौधरी बंसीलाल कई बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अपने समय में ही अपने दोनों बेटों रणवीर महेंद्रा और चौधरी सुरेंद्र सिंह को राजनीति में आगे बढ़ा दिया था। बड़े पुत्र रणवीर महेंद्रा कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी चुने गए थे। इसके बाद वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में रुचि लेने लगे थे। लम्बे समय तक वे क्रिकेट की दुनिया से जुड़े रहे। इसी दरम्यान वंशीलाल के छोटे पुत्र चौधरी सुरेंद्र सिंह ने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाल लिया। राज्य की तोसाम सीट से विधायक चुने जाने के बाद चौधरी सुरेंद्र सिंह भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। मंत्री पद पर रहते चौधरी सुरेंद्र सिंह की हेलीकाप्टर दुर्घटना में दुखद मृत्यु हो गई थी। बेटे की असमय मौत से चौधरी बंसीलाल बुरी तरह टूट गए थे। चौधरी सुरेंद्र सिंह एक प्रकार से बंसीलाल के राजनीतिक उत्तराधिकारी बन चुके थे। इसे लेकर बंसीलाल और बड़े पुत्र रणवीर महेंद्रा के बीच दूरियां भी बन गई थीं। हालांकि सुरेंद्र सिंह के निधन के बाद पिता-पुत्र एक बार फिर नजदीक आ गए थे। 

छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह की विरासत संभाल रहीं किरण

चौधरी सुरेंद्र सिंह की मौत के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनकी धर्मपत्नी किरण चौधरी ने संभाल लिया। किरण चौधरी ने प्रारंभ में दिल्ली को राजनीतिक क्षेत्र बनाया। वे दिल्ली में कांग्रेस की विधायक चुनी गईं। बाद में वे दिल्ली विधान सभा की डिप्टी स्पीकर भी रहीं। किरण चौधरी ने इसके बाद हरियाणा का रुख किया और पति स्व. चौधरी सुरेंद्र सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने लगीं। किरण चौधरी हरियाणा में पति की सीट तोसाम से कांग्रेस की कई बार विधायक चुनी गईं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में भी रहने का मौका मिला।

बेटी के भविष्य की खातिर भाजपा से नाता जोड़ा

किरण चौधरी खुद तो राजनीति में प्रतिष्थापित हो ही चुकी थीं, उन्होंने अपनी बेटी श्रुति चौधरी को भी राजनीति में आगे बढ़ा दिया। श्रुति सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में श्रुति चौधरी को कांग्रेस ने भिवानी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया। श्रुति यहां से जीतकर सांसद भी बनी थीं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी श्रुति चौधरी को कांग्रेस ने उन्हें भिवानी से चुनाव लड़ाया था और वे दोनों ही चुनाव हार गई थीं। इस समय हो रहे राज्य विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने एक पालिसी बनाई कि जो प्रत्याशी लगातार दो बार लोकसभा का चुनाव हारे हैं, उन्हें विधान सभा का टिकट नहीं दिया जाएगा। दरअसल यह वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को टिकट की रेस से बाहर करने का एक दांव था। बेटी के राजनीतिक करियर पर खतरा मंडराते देख किरण चौधरी ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और भाजपा में शामिल हो गईं। भाजपा ने भी उन्हें हाथोंहाथ लिया। किरण चौधरी को राज्यसभा का सदस्य बना दिया और अब उनकी बेटी को तोसाम विधान सभा सीट से बीजेपी का प्रत्याशी घोषित कर दिया है। 

बड़े बेटे ने भी अपने पुत्र के लिए कसी कमर

उधर चौधरी बंसीलाल के बड़े पुत्र रणवीर महेंद्रा इस विधान सभा चुनाव में अपने बेटे अनिरुद्ध महेंद्रा को राजनीति में स्थापित करने में जुट गए हैं। रणवीर महेंद्रा ने कांग्रेस के समक्ष अपने बेटे को राज्य की उस तोसाम सीट से प्रत्याशी बनाने की इच्छा जताई है जहां से किरण चौधरी की बेटी श्रुति को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। दरअसल तोसाम बंसीलाल परिवार की पैतृक सीट है। इसी क्षेत्र का भोलागढ़ चौधरी बंसीलाल का पैतृक गांव है। यहां से स्वयं बंसीलाल कई बार विधायक रहे। इसके बाद उनके छोटे पुत्र सुरेंद्र चौधरी भी इसी सीट से विधायक चुनकर हुड्डा सरकार में मंत्री बनने थे। कांग्रेस अगर रणवीर महेंद्रा के बेटे अनिरुद्ध को तोसाम से टिकट देती है तो यहां का मुकाबला भाई-बहन के बीच हो जाएगा। यानि चौधरी बंसीलाल के नाती और नातिन के बीच। 

हरियाणा की राजनीति में बंसीलाल के परिवार से एक और नाम है उनके दामाद सोमवीर का। सोमवीर राज्य की लुहारू सीट से विधायक रह चुके हैं। सोमवीर ने कांग्रेस से जुड़ाव रखा हुआ है और वे इस चुनाव में टिकट भी मांग रहे हैं।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

SP_Singh AURGURU Editor