शरदपूर्णिमा पर ताजमहल में गूंजती थी ये चमकी, वो चमकी,
1984 से पहले ताजमहल मे शरदपूर्णिमा पर सात दिनों का मेला लगता था। शहर के हजारों लोग प्रतिरात्रि ताजमहल पर चमकी देखने जाते थे। दरअसल फुल मून की किरणें जब किसी विशेष कोण से ताजमहल में लगे प्रीसियस सेमी प्रीसियस स्टोन पर पड़ती थीं तो वह पत्थर चमक उठता था। उसे ही चमकी कहते थे।
आगरा। ये चमकी, वो चमकी, अहा क्या चमकी जैसे शब्द आजकल के आगरा के युवा शायद ही जानते हों। आगरा की पुरानी पीढ़ी इन शब्दों का अर्थ बखूबी जानती है। वह पीढ़ी ये शब्द जानती ही नहीं है बल्कि इनको बोलने के लिए, चमकी का आनंद लेने के लिए हर साल इंतजार करती थी।
दरअसल 1984 से पहले ताजमहल रात में भी खुला करता था। तब शरद पूर्णिमा पर ताजमहल परिसर में मेला लगता था। उस समय शहर के लोग और पर्यटक रात में चमकी देखने जाते थे। इस दौरान ताजमहल परिसर में पूरी रात बच्चों, युवा और बड़ों की यही आवाज गूंजती थी कि ये चमकी, वो चमकी।
असल में शरद पूर्णिमा पर सुपर मून की किरणें ताजमहल के संगमरमरी बदन पर अठखेलियां करती हैं तो ताजमहल में जड़े सेमी प्रीसियस और प्रीसियस स्टोन अचानक चमकते हैं। कभी किसी जगह का स्टोन चमकता है तो कभी किसी किसी जगह का। इसी को देखकर पहले लोग चिल्लाया करते थे कि वो चमकी। 1984 से पहले सात दिनों तक चमकी देखी जाती थी।
वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल उन दिनों की याद ताजा करते हुए बताते हैं कि 1984 से पहले ताजमहल में कोई टिकट नहीं लगती थी। शरद पूर्णिमा के सात दिनों तक ताजमहल में मेला लगता था। चाट पकौड़ी वाले, तमाशे वाले पूरी रात ताजमहल में रहते थे। शहर के सैकड़ों लोग बच्चे, महिलाएं, युवक युवतियां चमकी देखने जाते थे।
चमकी देखने जाना नक्शेबाजी का प्रतीक माना जाता था। दूसरे दिन जो चमकी देखकर आया है अपने दोस्तों में कालर खड़े करके बताता था कि रात तो मजा आ गया। चमकी देखी। श्री खंडेलवाल बताते हैं फुल मून की रात किसी विशेष कोण से चंद्रमा की किरणें जब ताजमहल में लगे सेमी प्रीसियस प्रीसियस स्टोन पर पड़ती थीं तो वह स्टोन चमक पल भर के लिए चमक उठता था। उसे ही चमकी कहते थे
। शरारती युवाओँ के लिए ये दिन युवतियों को छेड़ने के होते थे। वे लोग ताजमहल के बजाय किसी सुंदर युवती को देखकर चिल्लाते थे कि ये चमकी, वो चमकी। उस समय पूरी रात ताजमहल खुलता था। तफरीबाजी के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचा करते थे।
शहर के प्रमुख चिकित्सक डा. अरुण तिवारी बताते हैं कि वह उन दिनों स्कूल में पढ़ते थे तथा हर साल अपने परिवार के साथ चमकी देखने जाते थे। डा. तिवारी बताते हैं कि उस समय बहुत भीड़ होती थी रात में । कभी कभी ऐसा होता था कि कोई युवक राजकपूर जैसा हैट लगाकर आया है तो चांदनी रात में उसकी चेहरा दिखता नहीं था।
भीड़ उसे राजकपूर समझ कर उसकी तरफ ही दौड़ पड़ती थी। डा. तिवारी ने बताया कि चमकी के दिनों में ताजमहल के दाहिनी ओर की पीछे की मीनार के पास लकड़ी की सीढ़ियां बनायी जाती थीं जो ताज के दायीं ओर की इमारत जिसे मस्जिद का जवाब कहा जाता है, वहां उतरती थीं।
चमकी देखने वाले चढ़ते सामने की ओर से थे तथा ताजमहल से उतरते लकड़ियों की सीढ़ियों से थे। जब कोई स्टोन चमक उठता था तो ये चमकी वो चमकी जैसी आवाजें गूंज उठतीं थीं।
बहरहाल इस बार यह चमकी चार दिन की है। मंगलवार रात आठ बजे से शुरू होकर शनिवार रात तक चलेगी। ताजमहल रात आठ से 12 बजे तक ही खुलेगा। इस दौरान 30-30 मिनट के आठ स्लाट में अधिकतम 50 पर्यटक चमकी देखेंगे। कुल मिलाकर एक रात में 400 पर्यटक चमकी देखेंगे। भारतीय लोगों के लिए टिकट 510 रुपये का विदेशी पर्यटक के लिए 750 रुपये का टिकट है।
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