विधवाओं के लिए उम्मीद की होली: परंपरा को धता बताकर सम्मान अपनाया
-बृज खंडेलवाल- मथुरा। सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए वृंदावन में विधवाओं ने एक बार फिर सदियों पुरानी परंपराओं को धता बताते हुए बुधवार को ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर में होली मनाई। खुशी और सशक्तीकरण के जीवंत प्रदर्शन में सैकड़ों विधवाओं ने रंग-गुलाल उड़ाए, कृष्ण भजनों पर नृत्य किया और फूलों की पंखुड़ियों और गुलाल (सूखे रंगों) के साथ त्योहार मनाया।

विधवाओं के लिए होली की परंपरा 2013 में शुरू हुई, जब जाने-माने समाज सुधारक और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक स्वर्गीय डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने हाशिए पर पड़ी इन महिलाओं को संगठित करने और उन्हें सामाजिक जीवन में फिर से शामिल करने की पहल की। उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था, उनके जीवन में गरिमा और सामान्यता बहाल करना।
डॉ. पाठक ने 2013 में कहा था, "वृंदावन में होली मनाने का मेरा विचार विधवाओं और समाज को एक स्पष्ट और मजबूत संदेश देना था कि उनकी भी हमारी तरह ही मानवीय गरिमा है। उन्हें गाने, हंसने, नाचने और सामान्य जीवन जीने का अधिकार है।"
अपनी विरासत को आगे बढ़ाते हुए सुलभ इंटरनेशनल के अध्यक्ष श्री कुमार दिलीप ने विधवाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने कहा, "यह उत्सव सामाजिक धारणाओं को बदलने में हमारी प्रगति का प्रमाण है। होली जैसे पारंपरिक अनुष्ठानों में विधवाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ती सामाजिक स्वीकृति का संकेत देती है। सुलभ में हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रयास जारी रखेंगे कि वे सम्मान, खुशी और उम्मीद के साथ रहें।"
वृंदावन में बदलाव की शुरुआत 2012 में हुई, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया और सुलभ इंटरनेशनल को इन परित्यक्त महिलाओं की देखभाल और कल्याण का काम सौंपा। तब से उनके जीवन में काफी सुधार हुआ है। उन्हें बेहतर रहने की स्थिति, वित्तीय सहायता और सामाजिक समावेशन की सुविधा मिली है।
विधवा सशक्तिकरण की विरासत
भारत में विधवा अधिकारों के लिए सक्रियता का एक लंबा इतिहास रहा है। 19वीं शताब्दी में, राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया और पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवाओं के पुनर्विवाह के अधिकार के लिए अभियान चलाया। इस विरासत से प्रेरित होकर डॉ. पाठक ने विधवाओं के इर्द-गिर्द सामाजिक कलंक को खत्म करने और उनकी समानता की वकालत करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।