होली का रंग, पर्यावरण का संग: मस्ती न करें भंग
होली का त्योहार दस्तक दे रहा है। आगरा शहर समेत समूचा ब्रज मंडल रंगों के इस जश्न की तैयारी में जुट गया है। होली, ब्रज क्षेत्र में मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है, जहां रंग, मस्ती और हुल्लड़ की भरपूर झलक देखने को मिलती है। फाल्गुन में जब यह पर्व आता है तो पिचकारियों से रंगों की बौछार और ठंडाई की मिठास की खासियत बढ़ जाती है।

-बृज खंडेलवाल-
आगरा में होली के पर्व की अपनी खास परंपराएं हैं, जो मुग़ल युग से चली आ रही हैं। मूर्खों का सम्मान किया जाता है। आगरा नगर निगम पालीवाल पार्क में मेला आयोजित करता है। अतीत में यहां होली का उत्सव विशेष रूप से शानदार होता था, जहां बादशाह और दरबारी रंगों में रंगते थे। आगरा के किले में होली के दिन बड़े समारोह आयोजित होते थे, जिसमें मनोहारी संगीत, नृत्य, और रंगों की बौछार होती थी।
मुग़ल बादशाह रंगों से भरे जल में अपने दरबारियों के साथ खेलते थे। आगरा के लोगों के बीच मिठाईयों का आदान-प्रदान भी होता रहा है, जिससे यह पर्व और रंगीन हो जाता है। इस प्रकार आज भी आगरा में होली का उल्लास मुग़ल काल की समृद्ध परंपराओं को जीवित रखता है।
मगर, इस बार होली की धूम में पर्यावरण की फिक्र भी जरूरी है। अब जबकि त्योहार में सिर्फ दस दिन बाकी हैं, पर्यावरण प्रेमियों ने मांग की है कि होली के दौरान प्रदूषण को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। उनका कहना है कि "गौ काष्ठ" (गाय के गोबर से बनी ईंटें) जैसे पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा दिया जाए और होलिका दहन के दौरान हानिकारक कचरे को जलाने पर पाबंदी लगाई जाए। यही नहीं, उन्होंने लोगों को जागरूक करने और प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल पर जोर देने की भी अपील की है।
होली के दौरान पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है। पर्यावरणविद् देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं कि लोग होलिका दहन के लिए पेड़ों की टहनियां काटते हैं और घरों का कचरा, प्लास्टिक, पॉलीथिन, चमड़े का कचरा और अन्य जहरीली चीजें जलाते हैं। जब यह सब जलता है तो हवा में प्रदूषणकारी गैसें फैलती हैं, जो आगरा की पहले से खराब हवा को और भी ज़हरीला बना देती हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, खासकर तब जब आगरा का वायु प्रदूषण स्तर पहले ही खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।
इस समस्या का एक और पहलू यह है कि होलिका दहन अक्सर सड़कों के चौराहों पर किया जाता है। ग्रीन एक्टिविस्ट पद्मिनी अय्यर ने बताया कि इन अलावों से सड़कों पर तारकोल जल जाता है और गड्ढे पड़ जाते हैं, जिनकी मरम्मत महीनों तक नहीं होती है। कुछ लोग तो पुराने टायर भी जला देते हैं, जिससे हवा में और भी जहर घुल जाता है। ऐसे में प्रशासन को सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि होली का जश्न पर्यावरण के लिए बोझ न बने।
आगरा का हरित क्षेत्र पहले से ही सिमटता जा रहा है। रिवर कनेक्ट कैंपेनर राहुल राज ने बताया कि शहर का हरित क्षेत्र महज नौ प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय दिशा निर्देश के मुताबिक यह 33 प्रतिशत होना चाहिए। ताज ट्रैपेज़ियम ज़ोन, जो ताजमहल के लिए बेहद अहम है, भी खतरे में है। मानसून में लगाए गए हज़ारों पौधे उपेक्षा के कारण मुरझा जाते हैं। होली के दौरान पेड़ों की कटाई से हरियाली और भी कम हो जाती है। दीपक राजपूत ने कहा कि लोगों को जागरूक करने और उन्हें पर्यावरण के अनुकूल विकल्प देने की जरूरत है।
इस मुद्दे का पैमाना देखें तो यह और भी गंभीर हो जाता है। कार्यकर्ता चतुर्भुज तिवारी के मुताबिक, आगरा में हर साल एक हज़ार से ज्यादा होलिका दहन किए जाते हैं। अगर हर जगह दस क्विंटल जलाऊ लकड़ी भी जलती है, तो पर्यावरण को होने वाला नुकसान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में लोग गोबर के उपले और विलायती बबूल की टहनियां जलाते हैं, लेकिन शहरों में जलाऊ लकड़ी महंगी होने के कारण लोग कूड़ा-कचरा जलाते हैं, जिससे हवा में जहर घुल जाता है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए कार्यकर्ताओं ने कई सुझाव दिए हैं। उन्होंने प्रशासन से जनता को प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करने और होलिका दहन के लिए जैविक कचरे जैसे विकल्पों को बढ़ावा देने की अपील की है। साथ ही, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु गुणवत्ता पर नज़र रखनी चाहिए और नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए। नगर निगम को होलिका दहन से क्षतिग्रस्त सड़कों की तुरंत मरम्मत करनी चाहिए।
होली के रंगों की बात करें तो सिंथेटिक रंगों के बजाय प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना चाहिए। सिंथेटिक रंगों में मौजूद हानिकारक रसायन त्वचा को नुकसान पहुँचा सकते हैं और पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं। प्राकृतिक रंगों से न सिर्फ त्योहार का मजा दोगुना होगा, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
आगरा की हवा पहले से ही जहरीली है। सुप्रीम कोर्ट के 1993 के फैसले के बावजूद, ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए जो उपाय किए गए, उनका असर नगण्य है। होली के दौरान अलाव और सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल इस समस्या को और भी बढ़ा देता है।
होली के इस मौके पर सरकार, नगर निगम और आम लोगों को मिलकर काम करना चाहिए। पर्यावरण के अनुकूल तरीके से होली मनाकर आगरा दूसरे शहरों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। आइए, इस होली को जीवन, प्रकृति और स्थिरता का उत्सव बनाएं। होली का रंग हो, पर्यावरण का संग हो!