हाईकोर्ट की टिप्पणी- डॊ. अनुराग शुक्ल का कंडक्ट ही खराब, स्टे नहीं मिला
आगरा। आगरा कॊलेज के प्राचार्य पद से हटाए जा चुके डॊ. अनुराग शुक्ल को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से फिलहाल राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट में आज हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने डॊ. अनुराग शुक्ल को लेकर एक टिप्पणी भी की। यह टिप्पणी थी, डॊ. अनुराग शुक्ल का कंडक्ट ही खराब है। इसी टिप्पणी के साथ न्यायालय ने डॊ. शुक्ल को स्टे देने से इंकार कर दिया।
-आगरा कॊलेज के पूर्व प्रिंसिपल की याचिका पर हाईकोर्ट में आज हुई सुनवाई
- हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग से मांगा काउंटर
डॊ. अनुराग शुक्ल ने खुद के अभ्यर्थन को शून्य करने संबंधी उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग प्रयागराज के निर्णय के साथ ही उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा आगरा कॊलेज के प्राचार्य पद की आसन व्यवस्था रिक्त घोषित किए जाने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। आज हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने इन दोनों आदेशों को स्टे नहीं किया। अब इस मामले की सुनवाई आगामी तीन जनवरी 2025 को होगी।
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद न्यायमूर्ति प्रकाश पहाड़िया ने टिप्पणी की कि किसी भी सरकारी पद को पाने 50 प्रतिशत आचरण देखा जाता है। डॊ. अनुराग शुक्ल का कंडक्ट ही खराब है। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग को आदेश दिया कि वह आगामी तीन जनवरी 2025 को अपना काउंटर दाखिल करे।
न्यायमूर्ति पहाड़िया ने पिछले सप्ताह मंगलवार को मामले की अल्प सुनवाई की थी। उस दिन इस मामले की सुनवाई के लिए 16 दिसंबर की तिथि नियत कर दी थी। 16 और 17 दिसंबर की बजाय आज इस पर सुनवाई हुई।
आज की सुनवाई में डॊ. अनुराग शुक्ल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे ने कहा कि डॊ. अनुराग शुक्ल को प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री ने साजिश कर हटवाया है क्योंकि आगरा कॊलेज उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय के विधान सभा क्षेत्र में ही आता है। अधिवक्ता खरे का कहना है कि डॊ. शुक्ल को साजिश कर हटाया गया है।
इसके जवाब में उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग और सरकार तथा अन्य प्रतिवादियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जीके सिंह और जीके तिवारी ने कहा कि यह मामला साजिश का नहीं, फर्जी दस्तावेजों का है। डॊ. अनुराग शुक्ल ने प्राचार्य पद पर चयन के लिए आयोग में जो दस्तावेज दाखिल किए थे, वे जांच में फर्जी पाए गए हैं।
दोनों अधिवक्ताओं ने कहा कि अलवर की जिस सनराइज यूनिवर्सिटी के शोध संबंधी दस्तावेज हैं, वह यूनिवर्सिटी लिखकर दे चुकी है कि संबंधित दस्तावेज फर्जी हैं। पुलिस की जांच में भी यूनिवर्सिटी ने यही लिखकर दिया है।
दोनों अधिवक्ताओं ने अब तक हुई समस्त जांचों का हवाला देकर बताया कि कैसे डॊ. अनुराग शुक्ल के दस्तावेज फर्जी सिद्ध हुए हैं। सनराइज यूनिवर्सिटी के नाम से फर्जी मेल मंगवाए जाने का भी कोर्ट के समक्ष जिक्र किया।
बता दें कि पिछले माह उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग, प्रयागराज ने फर्जी दस्तावेज लगाकर प्राचार्य पद पर चयन कराने के लिए डॊ. अनुराग शुक्ल का अभ्यर्थन शून्य घोषित कर दिया था। इसके बाद प्रदेश के उच्च शिक्षा निदेशक ने प्राचार्य पद की आसन व्यवस्था को रिक्त घोषित कर दिया था। इसी के साथ डॊ. अनुराग शुक्ल का प्राचार्य पद पर चयन निरस्त हो गया था।
डॊ. अनुराग शुक्ल ने आयोग और उच्च शिक्षा निदेशक के इसी फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। पिछले सप्ताह मंगलवार को हुई सुनवाई में डॊ. शुक्ल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे ने डॊ. शुक्ल का पक्ष रखते हुए दलील दी थी कि वे उच्च न्यायालय के स्टे पर चल रहे हैं और इस बीच उनका अभ्यर्थन शून्य कर उन्हें पद से हटा दिया गया है।
इस पर न्यायमूर्ति प्रकाश पहाड़िया के पूछने पर उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा था कि ये हमने किया है। ये इसलिए किया गया है क्योंकि डॊ.अनुराग शुक्ल द्वारा आयोग में लगाए गए दस्तावेज फर्जी पाए गए हैं।
डॊ. शुक्ल ने इन्हें बनाया है पार्टी
डॊ. अनुराग शुक्ल द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा, निदेशक उच्च शिक्षा, आगरा कॊलेज प्रबंध समिति की अध्यक्ष (मंडलायुक्त) ऋतु माहेश्वरी, ऒगरा कॊलेज के कार्यवाहक प्राचार्य रह चुके डॊ. सीके गौतम आदि को पार्टी बनाया है।
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