हरियाणा: अपने घर में अब तक तो विफल रहे हैं केजरीवाल
-एसपी सिंह- चंडीगढ़। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल दिल्ली पंजाब समेत दूसरे राज्यों के लिए कितने भी बड़े नेता क्यों न हों, लेकिन अपने गृह राज्य हरियाणा में उनकी पार्टी अभी तक पैर जमाने के लिए ही जूझ रही है। हरियाणा में आम आदमी पार्टी की हैसियत एक से लेकर दो प्रतिशत मतों की पार्टी से आगे नहीं बढ़ सकी है। हरियाणा में इस समय विधानसभा के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। एक बार फिर अरविंद केजरीवाल के समक्ष वही सवाल है कि वह अपने गृह राज्य में अपनी पार्टी की जन स्वीकार्यता करा पाएंगे या नहीं।
हरियाणा के चुनावी समर में आम आदमी पार्टी अकेले खड़ी है। कांग्रेस नीत 'इंडिया' का एक घटक आम आदमी पार्टी भी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप के बीच चुनावी तालमेल हुआ था लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दलों के बीच गठबंधन की बात नहीं बन सकी।
पिछले हफ्ते ही अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में जमानत पर जेल से बाहर आए हैं। उनके समक्ष अपने गृह राज्य हरियाणा में पार्टी का जनाधार साबित करने की चुनौती है। आम आदमी पार्टी का गठन करने के बाद अरविंद केजरीवाल तीन बार दिल्ली में सरकार बना चुके हैं।
पंजाब की जनता पर भी अपना जादू दिखाकर आप को सत्तारूढ़ करा चुके हैं। गुजरात, गोवा, उत्तराखंड समेत कई अन्य राज्यों में आप के खाते में उल्लेखनीय मत प्रतिशत जोड़ चुके हैं, लेकिन हरियाणा में अभी तक कोई करिश्मा दिखाने में कामयाब नहीं हुए हैं।
गठन के बाद से ही आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में विधानसभा और लोकसभा का हर चुनाव लड़ा है और प्रायः हर चुनाव में आप को मिले मतों का प्रतिशत एक से दो फ़ीसदी ही रहा है। इससे अरविंद केजरीवाल की गृह राज्य में उनकी खुद की पार्टी की दयनीय स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है।
आम आदमी पार्टी ने अब तक जितनी भी चुनावी सफलताएं हासिल की हैं, वे सामाजिक समीकरण साधने के बजाय अरविंद केजरीवाल द्वारा जनता को दी गई गारंटीयों पर आधारित रही हैं। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि हरियाणा में सामाजिक समीकरण आम आदमी पार्टी के पक्ष में न होने के कारण पार्टी को वहां सफलता नहीं मिल पा रही है।
यह देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल हरियाणा के मतदाताओं को लुभाने के लिए इस बार कौन सा दांव चलते हैं और उसमें सफल रहते हैं या फिर उनकी पार्टी की स्थिति पूर्ववत ही रहेगी।
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