जीएसटी की सुझाई एमनेस्टी स्कीम हवा में उड़ गई
जीएसटीएन पोर्टल पर पंजीकृत डीलर्स को जीएसटी अधिनियम की धारा-16 उपधारा (4) के तहत आईटीसी का क्लेम किये जाने में बहुत सी तकनीकी समस्याओं को सामना करना पड़ा रहा था। यहां तक कि विभाग के सक्षम अधिकारियों द्वारा उक्त क्लेम को त्रुटिपूर्ण एवं कपटपूर्ण क्लेम मानते हुए डीलर्स को धारा-61 के नोटिस जारी किये गए। तत्पश्चात धारा-70 के तहत समन भी जारी हुए। इसी क्रम में उक्त वादों को धारा-73 अथवा 74 में शामिल करते हुए अधिक क्लेम की गई राशि को वापसी के करने साथ उक्त राशि पर ब्याज भी वसूलने की कार्यवाही की गई और तो और अर्थदंड की भी कार्यवाही की जाने लगी।
जीएसटी परिषद ने संस्तुत की थी एमनेस्टी स्कीम
उधर जीएसटी परिषद ने इस समस्या का संज्ञान लेते हुए 23 जून 2024 को सम्पन्न बैठक में इस समस्या को प्रभावहीन करने और बढ़ते विवादों को रोकथाम के उद्देश्य से केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार को धारा-16 उपधारा (4) के अतिरिक्त उपधारा (5) एवं (6) जोड़कर राहत देने की संस्तुति की है।
चूंकि जीएसटी परिषद के पास अधिनियम की किसी भी धारा में संशोधन अथवा परिवर्तन करने का अधिकार समाहित नहीं है, अतः उक्त संस्तुति को बजट 24 में शामिल करते हुए घोषित एमनेस्टी स्कीम का लाभ देने हेतु अधिनियम में संशोधन करते हुए अधिनियम की धारा-74 की ‘ए’ एवं धारा-128 ‘ए’ को जोड़ते हुए प्रस्तावित किया, जो कि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है।
केन्द्र द्वारा राजाज्ञा जारी परन्तु राज्यों द्वारा अभी तक लागू नहीं की गयी, ऐसा क्यों?
प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किये जाने के पश्चात राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करते हुए राजाज्ञा 16 अगस्त 2024 जारी कर दी गई।
उल्लेखनीय है कि यह संशोधन केन्द्रीय माल और सेवाकर अधिनियम, 2017 में प्रभावी और लागू हो गया, किन्तु राज्य माल और सेवाकर अधिनियम, 2017 में भी उक्त संशोधन होना है, जैसा कि विधायी नियम है, परन्तु खेदजनक स्थिति रही कि किसी भी राज्य सरकार द्वारा उक्त संशोधन को लेकर न तो कोई राजाज्ञा जारी की गई और न ही कोई निर्णय लेकर उक्त संशोधन को लागू एवं प्रभावी करने के लिए कोई अधिसूचित किया गया।
एमनेस्टी स्कीम की प्रकिया को राज्यों द्वारा भी शीघ्र ही अधिसूचित किया जाना चाहिए ताकि पंजीकृत डीलर्स के साथ प्रोफेशनल्स को इस विषय में व्यापक जानकारी मिल सके और सक्षम अधिकारियों को भी। जिससे घोषित एमनेस्टी स्कीम का वास्तव में लाभ मिल सके और सरकार का राहत देने उद्देश्य पूर्ण हो सके।
एमनेस्टी स्कीम का लाभ देने को समय सीमा भी बढ़ायी जानी चाहिए
31 अगस्त 2024 के बाद बढ़ने वाले विभाग बनाम पंजीकृत डीलर्स वादों पर रोक लगाने का गंभीरता से समुचित प्रयास किया जाना चाहिए। इसके लिए 9 सितम्बर 2024 को प्रस्तावित जीएसटी परिषद की बैठक में इस बिन्दु पर राज्यों को एकमत ठोस निर्णय लेकर विवाद बढ़ने से विभाग एवं पंजीकृत डीलर्स को राहत प्रदान करनी चाहिए, क्योंकि वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 के वाद भी विभाग बनाम पंजीकृत डीलर्स के मध्य विभिन्न सक्षम न्यायालयों में विचाराधीन चल रहे हैं। अब वर्ष 2019-20 के विवाद भी विचाराधीन पंजीकृत हो जाएंगे।
वर्ष 2019-20 हेतु कर निर्धारण करने की अंतिम तिथि 31 अगस्त 2024 निर्धारित है। लगभग यह स्थिति वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 के लिए भारी संख्या में की गई। अब वर्ष 2019-20 के लिए भी यह नीति विभाग द्वारा अपनायी गई और निर्धारण हेतु राज्य मुख्यालयों द्वारा अंतिम तिथि 31 अगस्त 2024 निर्धारित कर दी गई, जोकि अब व्यतीत हो चुकी है।
चूंकि जैसा कि वर्ष 2019-20 की कार्यवाही हेतु निश्चित तिथि 31 अगस्त 2024 तक कर दी गई थी, जिससे घोषित ‘एमनेस्टी स्कीम’ का समुचित लाभ पंजीकृत डीलर्स को प्राप्त नहीं हो पाया। प्रत्येक पंजीकृत डीलर उच्च न्यायालय की शरण में जाने में सक्षम नहीं, अधिकरणों का अभी तक गठन नहीं हुआ है।
सरकार को ध्यान देना होगा कि वाद-विवादों के लम्बे समय तक निर्णय नहीं हो पाते, क्योंकि अभी स्थानीय स्तर पर जीएसटी अधिकरणों का भी गठन नहीं हो पाया, और जब निर्णय होंगे तब तक विवाद से पूर्व दिखने वाली राशि कुछ और होगी और निर्णय के पश्चात वास्तविक राशि कुछ सामने आएगी। विभाग के वाद-विवाद में कितना राजस्व खर्च हो जाएगा, इस बिन्दु पर भी विचार करना होगा।
इस संदर्भ में एसोसिएशन आफ टैक्स पेयर्स एंड प्रोफेशनल ने प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री के साथ सभी सम्बन्धित पक्षों को पत्र भी भेजा है। अतः केन्द्र सरकार के स्तर से सभी राज्यों को यह निर्देशित किया जाना चाहिए कि ‘विभाग बनाम पंजीकृत डीलर्स’ के बीच विवादों को समाप्त करने अथवा न्यूनतम संख्या में लाने हेतु आवश्यक है कि डीलर्स और राजस्व हित में ‘एमनेस्टी स्कीम’ का लाभ देने के लिए इसकी समयसीमा को बढ़ाने का निर्णय लिया जाना अति आवश्यक हो गया है।
साथ ही धारा-61 के वादों में पुनः व्यापारियों का पक्ष रखने एवं एमनेस्टी स्कीम का लाभ दिया जाना चाहिए। इसके लिए भी राज्य सरकारों को आवश्यक निर्णय लेना होगा।
यह कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा घोषित एमनेस्टी स्कीम हवा के गुबार में उड़ गई। इस विषय में सरकार के कार्यकलाप के बारे में कहा जा सकता है कि सरकार की नीति है कि पंजीकृत डीलर्स को राहत देने की ‘नीयत’ नहीं दिख रही है। मुझे ध्यान है कि जब 3 जुलाई 24 को केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल से उनके निवास पर भेंट की थी तब उनका कहना था कि सरकार इस बिन्दु पर अवगत है कि जीएसटी से डीलर्स को क्या-क्या दिक्कत है और सरकार शीघ्र ही सभी समस्याओं का निवारण करने जा रही है, शीघ्र ही राहत मिलेगी। परन्तु समय पर लाभ न देना इसी श्रेणी में आता है कि नीति तो है परन्तु नीयत नहीं है।
-पराग सिंहल, आगरा
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