अनिवार्य शिक्षा वाले बच्चों की उपस्थिति भी सुनिश्चित करे सरकार
आगरा। नीसा के उपाध्यक्ष एवं नेशनल ग्रीन एंबेसेडर डॉ. सुशील गुप्ता ने केंद्र सरकार द्वारा बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम में किए गए संशोधन का स्वागत करते हुए कहा कि नीसा के द्वारा लंबे समय से शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को आखिरकार सफलता प्राप्त हो गई है।
-केंद्र सरकार के बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम में संशोधन का नीसा ने किया स्वागत
डॊ. गुप्ता ने बताया कि नीसा के द्वारा इस विषय पर शिक्षा विभाग से वार्ता भी की गई थी। इसके साथ-ही-साथ उन्होंने सरकार से एक निवेदन और भी किया है कि इस लक्ष्य को पाने में सबसे बड़ी बाधा विद्यालय में छात्रों की अनुपस्थिति है। निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिनियम के अंतर्गत प्रवेश लेने वाले बच्चों की सामान्यतः कक्षा में उपस्थिति न के बराबर होती है। इस दिशा में सरकार से सहयोग की अपेक्षा है।
ज्ञातव्य है कि केंद्र सरकार द्वारा निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 38 की उपधारा (2) के खंड (च) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर इससे संबंधित नियम 2010 में और संशोधन किए गए हैं। इससे संबंधित अधिसूचना विगत 16 दिसंबर को ही जारी की गई है।
नवीनतम संशोधन के माध्यम से सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार का प्रयास किया गया है। इसमें उल्लेख किया गया है कि कक्षा पाँच एवं आठ के शैक्षणिक वर्ष की समाप्ति पर नियमित परीक्षा होगी। यदि कोई बालक/बालिका समय-समय पर अधिसूचित प्रोन्नति के मापदंड पूरा करने में असफल रहता है, तो उसे परिणाम घोषित होने की तारीख के बाद दो महीने का समय दिया जाए, जिसमें उसको अतिरिक्त मार्गदर्शन एवं विशेषज्ञ की सहायता दी जाएगी। उसके उपरांत पुनः परीक्षा ली जाएगी।
यदि छात्र पुनः परीक्षा देने के उपरांत भी असफल हो जाता है तो उसे पांचवीं/आठवीं कक्षा में ही रोक दिया जाएगा। बालक के बहुमुखी विकास के लिए आयोजित की जाने वाली परीक्षा/पुनः परीक्षा सक्षमता पर आधारित होगी न कि केवल रटने पर। साथ ही प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बालक को स्कूल से नहीं निकाला जाएगा।
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